पटना: जो महिलाएं मां नहीं बन सकती हैं, उनके लिए एक खास खबर है. अब बांझपन का इलाज संभव है. आइवीएफ यानी इनविट्रो फर्टिलाइजेशन और एआरटी ये बांझपन ट्रीटमेंट के क्षेत्र की एक ऐसी नयी तकनीक हैं, जो खासकर पोलिसस्टिकि ओवरियन सिंड्रोम के कारण बांझपन का शिकार होने वाली महिलाओं के उपचार में बेहद कारगार साबित हो रही है.
यह बातें स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ शांति राय ने कहीं. उन्होंने कहा कि आइवीएफ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अंडे की कोशिकाओं को मां के गर्भ से बाहर निकालते हैं और डोनर के स्पर्म के साथ देते है. इससे मां बनने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.
वहीं, डॉ हिमांशु राय ने कहा कि आइवीएफ ट्रीटमेंट में अलग-अलग डॉक्टरों द्वारा किये गये शोध में इस बात की पुष्टि हो चुकी है. तीन दिवसीय बिहार ऑब्स्ट्रेटिक गायनोकोलाॅजी सोसाइटी सम्मेलन 2016 के आयोजन के दूसरे दिन डॉ राय ने आइवीएफ तकनीक से बांझपन के दूर होने की बात कहीं. शनिवार को कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने किया. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी आयी हैं. लेकिन, मातृ मृत्यु दर पहले 216 प्रति वर्ष थी, जो 2015 से घट कर 109 हो गयी है. इस आकड़ों को पूरी तरह से कम करने के लक्ष्य से अभी भी हम पीछे है.
मोबाइल, लैपटॉप से बांझपन का खतरा : दिल्ली से आयीं डॉ मल्लिका ने बताया कि मोबाइल, मोटापा, प्रदूषण और इलेक्ट्रॉनिक सामान के इस्तेमाल करने से बांझपन का खतरा बना रहता है. खासकर इलेक्ट्रॉनिक रेडियेशन महिलाओं-पुरुषों में बच्चे पैदा करने की क्षमता पर असर डाल रहा है. डॉ बीपी पइली ने बताया कि महिलाओं में बच्चेदानी बाहर आने के मामले अधिक बढ़ गये हैं. हर 100 डिलेवरी में 60 मामले में बच्चेदानी बाहर आने की केस देखे जा रहे हैं. डॉ पइली ने कहा कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण महिलाओं में मोटापा, अधिक चार से अधिक बच्चे पैदा करना, गर्भ के दौरान एक्सरसाइज नहीं करना आदि है. उन्होंने कहा कि इसे सर्जरी के माध्यम से अंदर किया जा सकता है. मौके पर डॉ मंजू गीता मिश्रा, डॉ मोना हसन, डॉ कुमकुम सिन्हा, डॉ आभा लता
सहित कई महिला डॉक्टरों ने अपने विचार व्यक्त किया.