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जमीन बचाने के लिए चलती है यह ट्रेन, पढ़ें… पूरा मामला

अजब-गजब. अतिक्रमण से जमीन को मुक्त रखने के लिए रेलवे रोज करती है कवायद यह कहानी एक ऐसे डेमू ट्रेन की है, जो दो फेरे अप और दो फेरे डाउन लगाने के बावजूद पूरे दिन में बमुश्किल 25-30 यात्रियों को ढोती है. इन यात्रियों से उसे 300 रुपये रोजाना की आमदनी भी नहीं होती है, […]

अजब-गजब. अतिक्रमण से जमीन को मुक्त रखने के लिए रेलवे रोज करती है कवायद
यह कहानी एक ऐसे डेमू ट्रेन की है, जो दो फेरे अप और दो फेरे डाउन लगाने के बावजूद पूरे दिन में बमुश्किल 25-30 यात्रियों को ढोती है. इन यात्रियों से उसे 300 रुपये रोजाना की आमदनी भी नहीं होती है, जबकि इसे चलाने में रोज 200 लीटर डीजल ही जल जाता है.
अगर दो ड्राइवर, एक गार्ड और क्रॉसिंग पर मौजूद चार पांच कर्मियों का वेतन जोड़ दिया जाये तो यह खर्च रोजाना 30 हजार तक पहुंच जाता है. इसके बावजूद पिछले 12 सालों से यह ट्रेन रोज पटना शहर के बीचो-बीच से गुजरती है. महज आठ किमी की औसत रफ्तार से यह छह किमी की दूरी 45 मिनट में तय करती है. दानापुर डिवीजन के अधिकारी तो कुछ नहीं बताते, मगर कुछ रेलकर्मी कहते हैं कि अगर यह ट्रेन नहीं चलेगी तो इस रूट की पटरियों पर भी कब्जा हो जायेगी. आइये, जानते हैं इस अनोखी रेल की कहानी…
पुष्यमित्र
पटना : pushyamitra@prabhatkhabar.in
आपने शहर के हड़ताली मोड़ रेलवे क्रॉसिंग से अक्सर एक पैसेंजर ट्रेन को गुजरते देखा होगा. यह ट्रेन दिन में चार दफा इस क्रॉसिंग से गुजरती है और चार दफा बेली रोड के अतिव्यस्त मार्ग पर परिचालन बंद हो जाता है. हालांकि यह ट्रेन न भी चले तो यात्रियों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि दिन भर के चारो फेरों में यह ट्रेन मुश्किल से 25-30 यात्रियों को ही ढोती है. रोजाना महज तीन सौ रुपये की कमाई करने के बावजूद यह ट्रेन पिछले 12 सालों से लगातार चल रही है. इस ट्रेन के संचालन में रेलवे को हर साल एक करोड़ का नुकसान होता है. फिर इस ट्रेन का परिचालन बंद नहीं किया जा रहा. सूत्र बताते हैं कि रेलवे को डर है, अगर एक दिन भी ट्रेन नहीं चली तो पटरियों पर भी लोग घर बनाकर रहने लगेंगे.
यह ट्रेन सुबह पटना घाट से दीघा घाट तक चलती है और लौट कर आर ब्लॉक चौराहा तक जाती है. दोपहर के वक्त आर ब्लॉक चौराहा से दीघा घाट तक आती है और फिर दीघा घाट से चल कर पटना जंक्शन होते हुए पटना घाट तक जाती है. तीन डब्बों वाली इस ट्रेन के दोनों तरफ इंजन है. ड्राइवर बताते हैं कि इसके संचालन में रोजाना 200 लीटर डीजल की खपत होती है. इसके संचालन के लिए दो ड्राइवर, एक गार्ड और चार-पांच क्रासिंग मैन बहाल हैं. इस रूट की पटरियों के दोनों किनारे झुग्गी बस्तियां बसी हैं. जब ट्रेन नहीं चल रही होती है तो यहां के लोग और जानवर पटरियों पर काबिज हो जाते हैं.
2004 में लालू प्रसाद ने किया था शुरू
इस ट्रेन की शुरुआत 2004 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने की थी. मकसद था शहर में यात्रियों को ढोना और साथ में दियारा क्षेत्र से सब्जियों को ढोकर शहर लाने में उस इलाके के लोगों की मदद करना. हालांकि यह लक्ष्य कभी हासिल नहीं हो पाया. इस ट्रेन की धीमी गति की वजह से कभी इसे यात्रियों का प्यार नहीं मिला. इतना वक्त लग जाता है कि लोग इस पर मुफ्त यात्रा करने के लिए भी तैयार नहीं होते. सिर्फ शाम के वक्त कुछ यात्री दीघा घाट स्टेशन पर चढ़ते हैं, जिन्हें पटना स्टेशन से ट्रेन पकड़नी होती है. हालांकि इस रूट पर पटरियां 1862 से ही बिछी है. पहले इस पर मालगाड़ियां चलती थीं, जो गंगा किनारे से जहाजों से पहुंचने वाले सामान को शहर लाती थी. मगर 25-30 साल पहले वे ट्रेनें भी बंद हो गयीं.
बेली रोड, पुनाईचक जैसे मोहल्लों में स्टेशन
इस अनोखी ट्रेन और इसके रूट के बारे में कई ऐसी दिलचस्प बातें हैं, जो आपको शायद ही मालूम हो. यह ट्रेन बेली रोड स्टेशन, पुनाईचक, शिवपुरी, राजीवनगर आदि स्टेशनों पर रुकती है. आपने इन स्टेशनों का नाम भी नहीं सुना होगा. इन मोहल्लों में रहने के बावजूद. आप इस रूट की पटरियों पर आर ब्लॉक से दीघा घाट तक यात्रा भी कर लें तो शायद ही आपको ये हॉल्ट नजर आये. मगर रेलवे के रूट में इन स्टेशनों का नाम दर्ज है.
स्टेशन से सड़क तक पहुंचने का रास्ता नहीं
शिवपुरी स्टेशन का तो तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने शिलान्यास भी किया है, वह शिलापट्ट आज भी वहां मौजूद है. हालांकि उस जगह आज दर्जनों भैंस बंधे नजर आते हैं. पुनाइचक हॉल्ट पर एक जर्जन टिन का शेड मौजूद है. हालांकि उस हॉल्ट पर या बेली रोड समेत किसी भी हॉल्ट पर अगर आप ट्रेन से उतर गये तो आपके लिए सड़क तक पहुंचना काफी मुश्किल काम होगा. इस ट्रेन का सबसे रोचक
तथ्य यह है कि दीघा घाट जो इस रूट का आखिरी स्टेशन है उसका भी यही हाल है. पटरी के दोनों तरफ कीचड़ से सने गड्ढे हैं. ऐसे में ड्राइवर को ट्रेन को स्टेशन की निर्दिष्ट जगह से पहले ही रोकना पड़ता है, ताकि कोई प्रॉब्लम नहीं हो.
साइकिल से भी धीमी है ट्रेन की रफ्तार
इस ट्रेन की औसत गति सिर्फ आठ किमी प्रति घंटे है, यानी साइकिल की स्पीड से भी कम. आर ब्लॉक से दीघा घाट तक की छह किमी की दूरी तय करने में ट्रेन को 45 मिनट का वक्त लग जाता है. यह अवधि रेलवे की समय सारिणी में भी दर्ज है. ड्राइवर बताते हैं कि एक तो पटरियों की हालत खस्ता है और उस पर रूट में पटरियों पर जगह-जगह लोग बैठे रहते हैं और जानवर बंधे रहते हैं. ट्रेन को रोक कर बार-बार हॉर्न देना पड़ता है, जब लोग पटरी खाली करते हैं, तब गाड़ी आगे बढ़ती है. ऐसे में इससे तेज गति से गाड़ी चलाना तो मुश्किल है.
नीतीश इस रूट पर हाइवे बनवाना चाहते थे
कहा जाता है कि 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेलवे को प्रस्ताव दिया था कि यह जमीन राज्य सरकार को दे दी जाये. ताकि उस पर एक हाइवे बनाया जा सके. यह प्रक्रिया इसलिए पूरी नहीं हो पायी क्योंकि बदले में रेलवे ने राज्य सरकार से हार्डिंग पार्क की जमीन मांग ली, ताकि पटना जंक्शन के प्लेटफार्म की संख्या बढ़ाई जा सके. फिर यह बातें भी होने लगी कि इस रूट को पाटलीपुत्र जंक्शन से जोड़ा जा सकता है. योजनाएं कई बनीं मगर कुछ भी फाइनल नहीं हो सका. लिहाजा 12 सालों से बिना पैसेंजर के यह ट्रेन लगातार चल रही है.

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