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अस्पताल, ट्रेजरी व बैंक ने मिलकर लूटा
जीपीएफ घोटाला. जांच के दौरान नये-नये लोगों के नाम आ रहे सामने पटना : स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों के जीपीएफ के साढ़े चार करोड़ रुपये को जालसाजी से निकाले जाने के मामले में सरकारी अस्पताल, ट्रेजरी कार्यालय, बैंक के अधिकारी शामिल थे. इन सभी की मिलीभगत से जालसाज सुमनकांत सिन्हा ने पैसे निकाले थे. जांच […]
जीपीएफ घोटाला. जांच के दौरान नये-नये लोगों के नाम आ रहे सामने
पटना : स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों के जीपीएफ के साढ़े चार करोड़ रुपये को जालसाजी से निकाले जाने के मामले में सरकारी अस्पताल, ट्रेजरी कार्यालय, बैंक के अधिकारी शामिल थे.
इन सभी की मिलीभगत से जालसाज सुमनकांत सिन्हा ने पैसे निकाले थे. जांच में इनकी मिलीभगत के साक्ष्य मिले हैं. गुरुवार को दानापुर ट्रेजरी कार्यालय के डाटा इंट्री ऑपरेटर नीरज कुमार, राज गौरव, सहायक ललन कुमार, राजेश कुमार वर्मा, कैशियर अजय कुमार सिन्हा व दानापुर एसबीआइ बैंक के कर्मी अवधेश कुमार सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके साथ ही पुलिस अब दानापुर के एसबीआइ बैंक में रहे बैंक मैनेजर एस एस शरण, मनींद्र व रंजीत कुमार और दानापुर के ट्रेजरी ऑफिसर अरुण कुमार को पकड़ने के लिए छापेमारी कर रही है.
बताया जाता है कि जीपीओ से जालसाजी के तहत पैसा निकालने का गोरखधंधा 2011 से ही शुरू हो गया था और इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड दनियावां स्वास्थ्य उपकेंद्र का सहायक सुमनकांत सिन्हा था.
उसे पुलिस ने पहले ही पकड़ कर जेल भेज दिया था. इस मामले में सुमनकांत सिन्हा की पत्नी, मां व दो चिकित्सक को भी जेल भेजा जा चुका है. सुमनकांत सिन्हा ने सारे पैसे अपने और परिजनों के एकाउंट में डलवाये थे. उन कागजात में संबंधित अधिकारियों व कर्मियों के हस्ताक्षर मौजूद हैं. इसका साफ अर्थ है कि वे सभी इस गोरखधंधे में शामिल हैं. सुमनकांत सिन्हा पहले दनियावां में कार्यरत था और वहीं से उसने जालसाजी शुरू कर दी थी. इसके बाद उसकी तैनाती पालीगंज सदर अस्पताल में हुई और फिर वहां भी दनियावां की तरह ही स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के जीपीएफ के पैसा गलत तरीके से अपने एकाउंट में ट्रांसफर कर लिये.
इस तरह हुआ घोटाला
सुमनकांत सिन्हा जब दनियावां में कार्यरत था, तो उसने कई कर्मियों के जीपीएफ पैसों को निकालने के लिए फर्जी आवेदन उन कर्मियों के हस्ताक्षर से बनवाये और फिर आवेदनों पर विभागीय कार्यवाही शुरू करा दी. इस दौरान उसने निकासी व व्यनन पदाधिकारी (डीडीओ) से पास कराया और उसे ट्रेजरी कार्यालय भेजवा
दिया. ट्रेजरी कार्यालय में भी पैसे
खर्च किये और फिर उसे बैंक में भेजवा दिया. उसने हर आवेदन में अपना एकाउंट नंबर डाल दिया था, ताकि उक्त राशि को बैंक उसके ही एकाउंट मेंडाल दे. बैंक ने भी पैसे उसके एकाउंट में डाल दिये. कहीं भी कागजात की जांच नहीं की गयी और उसके अनुसार काम होते गये. यही प्रक्रिया उसने पालीगंज अस्पताल में नियुक्त होने के बाद की और दनियावां, पालीगंज में रहने के दौरान उसने साढ़े चार करोड़ रुपये का घोटाला किया. पालीगंज में करीब दो करोड़ 46 लाख रुपये अपने खाते में डलवा लिये, जबकि दनियावां में उसने एक करोड़ 76 लाख का घोटाला किया.
आवेदन में 76 हजार पास हो गया पांच लाखआवेदन में कई प्रकार की गड़बड़ियां थीं, फिर भी डीडीओ, ट्रेजरी कार्यालय व बैंक में अनदेखी की गयी.वे मिले हुए थे. सुमनकांत ने आवेदन में जीपीएफ की कम राशि का दस्तावेज डाला था, लेकिन उससे अधिक की राशि भुगतान करा लिया था. मसलन एक स्वास्थ्य कर्मी राजकुमारी देवी के जीपीएफ एकाउंट में 76 हजार होने की जानकारी का कागजात लगाया गया. लेकिन उसे पांच लाख का भुगतान हुआ. उसने आवेदन में जो राशि भुगतान करने की जानकारी अंकित की थी, उससे भी अधिक एक करोड़ 90 लाख की अतिरिक्त राशि भुगतान करवाने में सफल हो गया.
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