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रोहू और नैनी मछलियां बता रहीं गंगा कितनी प्रदूषित

अनुपम कुमारी पटना : गंगा का पानी कितना प्रदूषित है, अब इसकी जांच मछलियों के ब्लड सैंपल से हो सकेगी. डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, भारत सरकार एक ऐसी ही तकनीक पर काम कर रही है. केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलाॅजी द्वारा बायो मार्कर ऑफ पॉल्यूशन पद्धति के जरिये मछलियों पर शोध किये जा रहे हैं. […]

अनुपम कुमारी
पटना : गंगा का पानी कितना प्रदूषित है, अब इसकी जांच मछलियों के ब्लड सैंपल से हो सकेगी. डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, भारत सरकार एक ऐसी ही तकनीक पर काम कर रही है. केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलाॅजी द्वारा बायो मार्कर ऑफ पॉल्यूशन पद्धति के जरिये मछलियों पर शोध किये जा रहे हैं.
2013 से पटना विवि के साइंस कॉलेज के जूलॉजी विभागाध्यक्ष आरसी सिन्हा व सीनियर रिसर्च फेलो निरझर द्वारा शोध किये जा रहे हैं. शोध दो तरह की मछलियां रोहू और नैनी पर की जा रही हैं.
अलग-अलग जल में रहनेवाली मछलियों पर हो रहा है शोध : मछलियां दो तरह के जल में रखी गयी हैं. प्रदूषित जल और दूसरे स्वच्छ जल में. इनमें रहनेवाली मछलियों के अलग-अलग ब्लड के सैंपल लेकर उसकी जांच की जा रही है. ब्लड में हारमोन्स, एंजाइम, एंटी ऑक्सीडेंट, थायराइड हारमोन्स, स्ट्रेस हारमोन्स, इंजाइम, लीवर इंजाइम आदि की जांचें की जा रही हैं. यदि मछलियों के खून में एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते हैं, तो इसका मतलब कि पानी प्रदूषित है. यदि मछलियों के बल्ड में एंटी अॉक्सीडेंट नहीं पाये जाते हैं, तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जल प्रदूषित नहीं है. इसी प्रकार कई तत्वों की जांचें की जा रही हैं. जिससे जल प्रदूषित है या नहीं या फिर अागे कितने दिनों में प्रदूषित हो जायेगी, इसकी जानकारी मिल सकेगी.
शोध के अच्छे परिणाम
जल प्रदूषण की जांच की तीसरी विधि पर शोध किये जा रहे हैं. अच्छे परिणाम आये हैं. जल में पेस्टिसाइज की मात्रा हाेने से अॉक्सीजन की कमी, लीवर में पाये जानेवाले एंजाइम व प्रोटीन लेवल में भी बदलाव पाये गये हैं. इस विधि से सही डेटा मिलेगा.
आरसी सिन्हा, विभागाध्यक्ष जूलॉजी, साइंस कॉलेज

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