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तटबंध हैं बिहार की सालाना बाढ़ के असली गुनहगार!
तीन गुना बढ़ गया राज्य का बाढ़ग्रस्त इलाका पुष्यमित्र पटना : राज्य का जल संसाधन विभाग मानता है कि नदियों के किनारे तटबंध बना कर बाढ़ की आपदा को रोका जा सकता है. मगर आंकड़े बताते हैं कि तटबंधों के निर्माण के बाद बाढ़ की समस्या घटने के बदले उसी अनुपात में बढ़ी है. 1954 […]
तीन गुना बढ़ गया राज्य का बाढ़ग्रस्त इलाका
पुष्यमित्र
पटना : राज्य का जल संसाधन विभाग मानता है कि नदियों के किनारे तटबंध बना कर बाढ़ की आपदा को रोका जा सकता है. मगर आंकड़े बताते हैं कि तटबंधों के निर्माण के बाद बाढ़ की समस्या घटने के बदले उसी अनुपात में बढ़ी है. 1954 में जब बिहार में तटबंधों की लंबाई सिर्फ 160 किमी थी, यहां का एक चौथाई इलाका ही बाढ़ प्रभावित था. आज जब सभी प्रमुख नदियों पर उनकी लंबाई से अधिक तटबंध बन चुके हैं, बिहार का तीन चौथाई इलाका बाढ़ प्रभावित बताया जा रहा है.
इतना ही नहीं, इन तटबंधों की सुरक्षा और मरम्मत के नाम पर 600 करोड़ से अधिक की राशि खर्च भी की जाती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बाढ़ से सुरक्षा के नाम पर बन रहे ये तटबंध बिहार में बाढ़ की समस्या के विकराल होने की असली वजह हैं. ये ऐसे रोग में तब्दील हो चुके हैं, जो नदियों को बीमार बना रहे हैं और पूरे राज्य को बाढ़ प्रभावित. इसके बावजूद राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग का इन तटबंधों से मोहभंग नहीं हो रहा. अगले साल तक 1550 किमी और तटबंध बनाये जाने की दिशा में काम चल रहा है.
दरअसल आजादी से पहले भी बिहार के इलाकों में काफी बाढ़ आते थे, मगर तब नदियों के किनारे तटबंध बनाने का रिवाज नहीं था. आंकड़े बताते हैं कि 1954 में बिहार की तमाम नदियों पर सर्फि 160 किमी लंबा तटबंध ही था. तब बिहार के कुल भू-क्षेत्र 94.16 लाख हेक्टेयर में सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर जमीन ही बाढ़ से प्रभावित होता था.
उस वक्त कोसी नदी के किनारे तटबंध बना कर पहली दफा इस तरीके से बाढ़ की आपदा को रोकने का विचार किया गया. कोसी के बाद राज्य की दूसरी नदियों पर भी तटबंध बने. हालात ये हो गये कि 1994 तक राज्य की नदियों पर 3454 किमी तटबंध का निर्माण हो गया. हालांकि, इन तटबंधों के निर्माण से बिहार में बाढ़ की आपदा पर नियंत्रण होना चाहिए था. मगर सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन के मुताबिक उस वक्त तक राज्य में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र भी बढ़ कर 68.8 लाख हेक्टेयर हो गये. आज की तारीख में विशेषज्ञ मानते हैं कि यह आंकड़ा 73 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो राज्य की कुल जमीन का तीन चौथाई हिस्सा है. वे इस आंकड़े में 2008 में आयी कोसी की बाढ़ की वजह से 4.153 लाख हेक्टेयर के नये इलाके को भी जोड़ते हैं.
तटबंधों से हैं तीन नुकसान
आखिर ऐसा क्यों हुआ? उत्तर बिहार की नदियों के विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र बताते हैं कि तटबंधों की वजह से तिहरा नुकसान हुआ. पहला नुकसान यह हुआ कि धारा अवरुद्ध होने की वजह से नदियां आक्रमक हो गयीं और वे तटबंध तोड़ कर न सिर्फ नये इलाकों में फैलने लगीं, बल्कि ज्यादा नुकसान करने लगीं. दूसरा नुकसान यह हुआ कि सिल्ट को फैलने की जगह नहीं मिली और नदियां गाद से भर गयीं. और तीसरा नुकसान आर्थिक नुकसान हुआ. आज की तारीख में हर साल जल संसाधन विभाग इन तटबंधों के रखरखाव पर सैकड़ों करोड़ की राशि खर्च करता है.
महानंदा समेत कई नदियों में बनने जा रहे तटबंध
रोचक तथ्य यह है कि इसके बावजूद राज्य का जल संसाधन विभाग तटबंधों को ही बाढ़ का एकमात्र इलाज मानता है. विभाग की वेबसाइट पर यह सूचना दर्ज है कि विभाग 2017 तक 1550 किमी नये तटबंध का निर्माण करने जा रहा है और इससे वह 19.99 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित कर लेगा. इसके तहत महानंदा नदी पर 1196 किमी तटबंध बनना है, बागमती, अवधारा, चंदन और सिकरहना नदियों के किनारे भी तटबंध बनना है.
गौरतलब है कि राज्य में बहनेवाली नदियों की कुल लंबाई 2943 किमी है, जबकि आज की तारीख में 3731 किमी लंबे तटबंध का निर्माण हो चुका है. अगर विभाग 2017 तक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो यह लंबाई 5287.7 किमी हो जायेगी, जो नदियों की कुल लंबाई की लगभग दोगुनी होगी.
तटबंध की लंबाई बढ़ती गयी, बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया
साल तटबंध की लंबाई बाढ़ प्रभावित क्षेत्र
1954 160 किमी 25 लाख हेक्टेयर
1971 1772 किमी 43 लाख हेक्टेयर
1982 2967 किमी 64.61 लाख हेक्टेयर
1994 3454 किमी 68.8 लाख हेक्टेयर
2016 3731 किमी 72.95 लाख हेक्टेयर (कोसी की 2008 की बाढ़ के नये
इलाके 4.153 लाख हेक्टेयर को जोड़ने के बाद)
बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्र 94.16 लाख हेक्टेयर है, जल संसाधन विभाग के मुताबिक.
(राष्ट्रीय बाढ़ आयोग, 1980, सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन, 1994, जल संसाधन विभाग की विभन्नि वार्षिक रिपोर्टों पर आधारित)
तटबंधों की सुरक्षा और रखरखाव पर व्यय
2016- 636 करोड़
2015- 436 करोड़
2014- 298 करोड़
नदी बेसिन के स्तर पर तटबंध और बाढ़ का प्रकोप
नदी लंबाई तटबंध बाढ़ प्रभावित क्षेत्र सुरक्षित क्षेत्र
(बिहार में) (लाख हेक्ट. में) (लाख हेक्ट. में)
1. गंगा 445 किमी 596.92 किमी 12.920 2.440
2. कोसी 260 किमी 451.21 किमी 10.150 9.720
3. बूढ़ी गंडक 320 किमी 779.26 किमी 8.210 6.730
4. पुनपुन 235 किमी 37.62 किमी 6.130 0.200
5. महानंदा 376 किमी 225.33 किमी 5.150 1.010
6. सोन 202 किमी 59.54 किमी 3.700 0.210
7. बागमती 394 किमी 650.34 किमी 4.440 अप्राप्त
8. कमला 120 किमी 190.00 किमी 3.700 अप्राप्त
9. गंडक 260 किमी 511.66 किमी 3.350 6.240
10. घाघरा 83 किमी 132.90 किमी 2.530 0.700
11. चंदन 118 किमी 18.23 किमी 1.130 0.060
12. बदुआ 130 किमी 64.95 किमी 1.050 अप्राप्त
कुल 2943 किमी 3731.96 किमी 68.8 लाख हेक्ट. 29.49 लाख हेक्ट.
( विशेषज्ञ इस आंकड़े में 2008 की कोसी बाढ़ के प्रभावित 4.153 लाख हेक्टेयर जमीन को जोड़ने की मांग करते हैं. इन्हें जोड़ने पर आंकड़ा 72.95 लाख हेक्टेयर हो जाता है. आंकड़े जल संसाधन विभाग की वेबसाइट से.)
तटबंधों से तिहरा नुकसान
1. नदियां आक्रमक हुईं, नये इलाकों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ा
2. सिल्ट को फैलने का मौका नहीं मिला, नदियां छिछली हो गयीं
3. सुरक्षा के नाम पर हर साल होता है सैकड़ों करोड़ खर्च
1987-2014 के बीच 378 बार टूट चुके हैं तटबंध. जल संसाधन विभाग की वार्षिक रिपोर्ट(2014).
2016 में मेंटेनेंस पर हो चुका है 636 करोड़ खर्च
तटबंधों की सुरक्षा और रखरखाव के मसले पर जल संसाधन विभाग ने इस साल अब तक 636 करोड़ रुपये व्यय किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 200 करोड़ अधिक है, मगर फिर भी इस साल राज्य को बाढ़ की भीषण तबाही को झेलना पड़ा. रोचक तथ्य ये हैं कि तटबंध की सुरक्षा के नाम पर सैकड़ों करोड़ खर्च करने के बावजूद 1987 से लेकर 2014 तक ये तटबंध 378 बार टूट चुके हैं.
1954 में जब तटबंध नहीं थे, तो एक चौथाई इलाके में ही आती थी बाढ़
3731 किमी लंबे तटबंधों के रख-रखाव पर हर साल होता है अरबों का खर्च
अगले साल तक 1550 किमी नये तटबंध बनाने का विभाग ने रखा है लक्ष्य
नदियों की कुल लंबाई के दोगुने होते जा रहे तटबंध फिर भी नहीं थम रहा प्रकोप
साल 1987-2014 के बीच 378 बार टूट चुके हैं तटबंध
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