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सबने मूंदीं आंखें, तन गये अवैध मकान
पड़ताल. गंगा की गोद में अवैध निर्माण के लिए डीएम से लेकर अंचल कर्मी तक दोषी पटना : गंगा का जल स्तर भले ही कम गया हो, लेकिन इसने अपने पीछे कई सवाल छोड़ दिये हैं. सबसे बड़ा सवाल गंगा की गोद में हुए अवैध निर्माण का है. दानापुर से गांधी मैदान तक बनाये गये […]
पड़ताल. गंगा की गोद में अवैध निर्माण के लिए डीएम से लेकर अंचल कर्मी तक दोषी
पटना : गंगा का जल स्तर भले ही कम गया हो, लेकिन इसने अपने पीछे कई सवाल छोड़ दिये हैं. सबसे बड़ा सवाल गंगा की गोद में हुए अवैध निर्माण का है. दानापुर से गांधी मैदान तक बनाये गये गंगा सुरक्षा बांध के अंदर बड़ी संख्या में पक्के मकान व अपार्टमेंट के निर्माण दिखायी पड़ते हैं.
लेकिन, ये निर्माण एक दिन में नहीं हुए हैं. शहर से दूर होती गंगा की धारा ने सबसे पहले इसकी आधारशिला रखी. रही-सही कसर प्रशासन ने आंख मूंद कर पूरी कर ली. प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण के पीछे आम लोगों से अधिक उन प्रशासनिक अधिकारियों की बड़ी भूमिका है, जिन्होंने सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें बंद कर लीं.
गंगा की गोद में हुए अवैध निर्माण के पीछे हर स्तर पर लापरवाही बरती गयी. थोड़े समय पहले तक यह क्षेत्र नगर पंचायत क्षेत्र का हिस्सा था, जिसकी सीधी मॉनीटरिंग जिला प्रशासन के स्तर पर होती है. गंगा के अंदर प्रतिबंधित बस्तियों में जिस अवधि में बड़े अवैध निर्माण कराये गये, उसके लिए सीधे तौर पर तत्कालीन डीएम को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
या तो उन्होंने इन निर्माणों को देखा ही नहीं या फिर अंचल से लेकर अनुमंडल कार्यालय ने उनको इस बाबत कोई जानकारी नहीं दी. प्रतिबंधित इलाके की बिना जांच रजिस्ट्री से भी कई सवाल खड़े होते हैं. कुल मिला कर इसके लिए तत्कालीन डीएम से लेकर एसडीओ, अंचलाधिकारी, अंचल निरीक्षक व रजिस्ट्री पदाधिकारी की कार्यप्रणाली भी संदेह के दायरे में है.
पटना : गंगा किनारे बांध के भीतर बने भवनों की जांच में अभी और वक्त लगेगा. नगर विकास व आवास विभाग के प्रधान सचिव के निर्देश पर निगम की टीम इन भवनों की वैधता की जांच कर रही है. नगर आयुक्त अभिषेक सिंह ने बताया कि विभागसे जांच पूरी करने के लिए और सात दिन का समय मांग गया है. इसके बाद रिपोर्ट विभाग को भेजी जायेगी.
उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में पहले से 30 बड़े भवनों पर निगरानीवाद चल रहा है. शेष 50 भवनों को रडार पर लिया गया है, लेकिन अब भी कुछ जांच करने में परेशानी आ रही है. चूंकि नया बिल्डिंग बायलाज 2014 में लागू हुआ है, इसलिए उस से पहले बने भवनों पर कुछ नये नियमों को लागू नहीं किया जा सकता. फिर भी जांच को गहनता से लिया जा रहा है. गौरतलब है कि बीते 31 अगस्त को नगर आयुक्त की अध्यक्षता में जांच टीम का गठन किया गया था.
पांच सदस्यीय टीम कर रही है जांच : नगर विकास व आवास विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद के निर्देश के बाद नगर आयुक्त अभिषेक सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय टीम का गठन किया गया है. विभाग के निर्देशन पर टीम को जिम्मेवारी दी गयी है कि नगर निगम एक सप्ताह के भीतर
गंगा बांध के भीतर बने भवनों की
वैधता की जांच करे. और फिर रिपोर्ट तैयार की जाये कि भवनों पर किस तरह की कार्रवाई की जा सकती है. निगम की टीम को जांच करने के लिए विभाग की ओर से गाइड लाइन भी जारी की गयी है. विभाग ने बकायदा सात बिन्दूओं पर निगम की टीम को जांच करना है. निगम को प्रधान सचिव ने किसी भी हालत में एक सप्ताह के विभाग में भेजने का निर्देश दिया गया है.
इन मुद्दों पर जांच
1. इन भवनों का नक्शा पास है कि नहीं. अगर पास है तो पीअारडीए से इसको सहमति कब मिली.
2. नक्शा की स्वीकृति सही है या अनियमित.
3. नक्शा में किस तरह का भवन प्रस्तावित था और निर्माण किस तरह का किया गया है.इस पर निगरानीवाद चल रहा है कि नहीं.
4. अगर निगरानीवाद चल रहा है तो इसकी प्रगति क्या है.
5. क्या नक्शा पास करते समय अन्य प्रकार की स्वीकृति ली गयी थी कि नहीं. बहुमंजिली इमारत प्रकृतिक आपदा से कितनी सुरक्षित है.
6. भवन में पानी, सीवरेज, ड्रैनेज की क्या स्थिति है. कोई सीधे गंगा में पानी तो नहीं गिरा रहा.
7. गंगा टावर में पानी क्यों आ गया था.अभी क्या स्थिति है.
निर्माण पूरा, तब जागा निगम
दीघा, मैनपुरा व कुर्जी का इलाका भले ही नगर निगम में न आता हो, लेकिन इसकी भौगोलिक बनावट के हिसाब से यह बिल्कुल शहर का हिस्सा ही दिखता है. बावजूद किसी अधिकारी की इन अवैध निर्माणों पर नजर न पड़ना उनकी नीति व नियत पर बड़े सवाल खड़े करते हैं.
इन अवैध भवनों पर कार्रवाई की शुरुआत भी तब हुई जब विभाग ने इसको लेकर नगर निगम को पत्र लिखा. इसके बाद नगर निगम ने निगरानीवाद दायर कर कार्रवाई की शुरुआत की. लेकिन, तब तक काफी देर हो चुकी थी. नदी के अंदर अवैध निर्माणों की शृंखला खड़ी हो गयी थी. निगरानीवाद के साथ ही फिलहाल यह मामला हाइकोर्ट व कोलकाता स्थित नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी चल रहा है.
पटना : गोलघर से दीघा तक गंगा बांध के भीतर हजारों छोटे व बड़े मकान बनते रहे, लेकिन इसे उस वक्त रोकने के लिए कोई विभाग व अधिकारी नियुक्त नहीं थे. ऐसे में खुले आम लोगों ने वैसी जमीन पर अतिक्रमण किया और उसकी रजिस्ट्री दूसरों के नाम पर कर दी, जिस पर प्रतिबंध लगा हुआ है.
सूत्रों के मुताबिक अब ऐसी जमीनों का खतियान जिला प्रशासन के माध्यम से निकाला जायेगा. पता लगाया जायेगा कि ऐसी जमीनों पर किसका मालिकाना हक है और कहां तक है. यह भी देखा जायेगा कि अभी ये जमीनें किनके नाम पर हैं. नगर विकास विभाग ने इसकी जांच के लिए नगर निगम की टीम बनायी है. इस बाबत नगर निगम ने जांच में मदद के लिए जिलाधिकारी को पत्र भेजा है. जांच दो स्तरों पर होगी और रिपोर्ट के आधार पर अतिक्रमण करनेवालों पर कार्रवाई की जायेगी.
राजापुर पुल व कुर्जी मोड़ : राजापुर पुल व कुर्जी मोड़ से आगे देखें, तो गंगा बांध के भीतर कई कॉलोनियां बस गयी हैं. वहां हजारों परिवार रहते हैं. ये कॉलोनियां बांध के भीतर एक बड़े भूखंड में डेवलप हैं. इनमें रहनेवाले लोगों ने पक्के के मकान तक बना लिये हैं. इनमें स्थानीय लोगों से लेकर अधिकारी तक के मकान शामिल हैं.
यही कारण है कि जब भी गंगा की पेटी में बने मकान को कोई अवैध कहता है, तो वहां के रहनेवाले लोग पेपर लेकर खड़े हो जाते हैं और वे कोर्ट जाने को हर वक्त तैयार रहते हैं. इसी बात का फायदा उठा कर बिल्डरों ने भी बड़े अपार्टमेंट बनाना शुरू किया, लेकिन इन अपार्टमेंटों का काम भी रोका गया, हालांकि बाद में धीरे-धीरे इन अपार्टमेंटों में काम होता रहा और आज इनमें कई परिवार रहने भी लगे हैं. वहीं कुछ अपार्टमेंट का काम अब भी रुका हुआ है.
नासरीगंज में गंगा नजदीक, दीघा व कुर्जी में हुई दूर : नासरीगंज घाट को देखा जाये, तो वहां गंगा सड़क से काफी नजदीक है, लेकिन जैसे-जैसे सड़क दीघा, कुर्जी व गोलघर की ओर बढ़ने लगी, वैसे-वैसे गंगा दूर होती गयी.
इससे यह बात साफ है कि बांध के भीतर जहां से गंगा का पानी कम होता गया, वहां के खाली जमीन पर मकान बनता गया. यही कारण है कि जब इस बार गंगा का पानी बांध तक पहुंच गया, तो हर बांध पर पानी को सड़क पर आने से रोका गया. क्योंकि, काॅलोनियों के बीच से सड़क तक आने वाले रास्ते से ही पानी के शहर में घुसने की आशंका अधिक थी.
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