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कभी टर्म समाप्त, तो कभी इस्तीफे में गुजर रहा दिन

हाल बिहार राज्य महिला आयोग का वर्ष में छह माह बाधित रहता है टर्म, गठन का उद्देश्य नहीं हो रहा पूरा पटना : क ओर सरकार महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रही है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं को न्याय दिलाने वाली स्वतंत्र इकाइयों को भंग कर लंबे समय तक न्याय से वंचित रख रही है. […]

हाल बिहार राज्य महिला आयोग का
वर्ष में छह माह बाधित रहता है टर्म, गठन का उद्देश्य नहीं हो रहा पूरा
पटना : क ओर सरकार महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रही है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं को न्याय दिलाने वाली स्वतंत्र इकाइयों को भंग कर लंबे समय तक न्याय से वंचित रख रही है.
बिहार राज्य महिला आयोग का गठन भी इसी उद्देश्य से किया गया है, लेकिन वह अपने उद्देश्य से पीछे है, क्योंकि आयोग में कभी टर्म समाप्त होने के कारण तो कभी इस्तीफा देने जैसी प्रक्रियाओं से आयोग पांच से छह महीने तक बाधित ही रहती है. वर्ष 2014 में महिला आयोग में अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा दिये जाने के कारण दो महीने तक आयोग की कार्रवाई बंद रही. इसके बाद एक मार्च 2014 काे अध्यक्ष समेत सदस्यों की नियुक्ति की गयी. इसके बाद 27 महीने तक आयोग में रफ्तार पकड़ी ही थी कि 17 मई को अध्यक्ष समेत सभी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से पूरे चार महीने से अायोग पूरी तरह से भंग है.
चार महीने से नहीं मिल रहा महिलाओं को न्याय : चार महीने से आयोग में न तो पूर्व के दर्ज मामलों की सुनवाई की जा रही है और न नये आवेदनों पर कार्रवाई. ऐसे में इस तरह की समस्या केवल पहली बार नहीं, बल्कि पूर्व में विधानसभा चुनाव के दौरान अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा दिये जाने के कारण आयोग लंबे समय तक भंग रहा. ऐसे में आयोग में प्रति छह माह बाद कभी टर्म समाप्त होने के कारण तो कभी इस्तीफा दिये जाने पर आयोग में मामले की सुनवाई नहीं हो पाती है. अब अध्यक्ष की नियुक्ति अक्तूबर में करने की बात की जा रही है. ऐसे में यदि अक्तूबर में नियुक्ति होती है, तो फिर मार्च 2017 में टर्म समाप्त हो जायेगा. इसके बाद फिर से आयोग कुछ समय के लिए न्याय प्रक्रिया से बाधित हो जायेगा.
बीते चार माह में महिला आयोग में 2300 मामले दर्ज किये गये हैं. इन आवेदनों पर अब तक न तो किसी तरह की कार्रवाई की गयी है और न ही कोई आश्वासन पीड़िता को दिया गया है. आयोग के कर्मचारियों की मानें, तो अब आयोग में आनेवाली आवेदिकाएं भी अध्यक्ष और सदस्यों का इंतजार कर थक चुकी हैं. वे न्याय की उम्मीद खो चुकी हैं.

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