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एक रूट, अलग-अलग किराया

मनमानी. हर महीने वसूलते 2500 तक, छुट्टियों में भी करते हैं चार्ज पटना स्कूल बस और वैन चालकों की मनमानी की यह चौथी कहानी है. किराया वसूली के नाम पर जमकर लूट मची है. एक ही रूट के लिए अलग-अलग किराया वसूला जा रहा है. किराये में फर्क 1000 रुपये तक है. इतना ही नहीं, […]

मनमानी. हर महीने वसूलते 2500 तक, छुट्टियों में भी करते हैं चार्ज
पटना स्कूल बस और वैन चालकों की मनमानी की यह चौथी कहानी है. किराया वसूली के नाम पर जमकर लूट मची है. एक ही रूट के लिए अलग-अलग किराया वसूला जा रहा है. किराये में फर्क 1000 रुपये तक है. इतना ही नहीं, गरमी, दशहरा, दिवाली और सर्दी की छुट्टियों में भी अभिभावकों से किराया चार्ज किया जाता है. यह वसूली बस और वैन मालिक संगठित होकर कर रहे हैं.
कहीं भी जाएं, लगेगा अधिकतम किराया : वैन चालकों की मनमानी इस कदर बढ़ गयी है कि वे दो से तीन किलोमीटर के लिए भी अधिकतम किराया वसूल रहे हैं. पाटलिपुत्र से गांधी मैदान का किराया आम तौर पर 1500 रुपये है. दो किलोमीटर दूर नेहरू नगर के विद्यार्थियों से भी गांधी मैदान तक का अधिकतम किराया 1500 रुपये वसूला जाता है. यह वसूली लगभग हर रूटों पर हो रही है. कंकड़बाग या बाजार समिति के लिये भी 1700 रुपये लिये जाते हैं.
वैन और बस चालक स्कूलों की तरह छुट्टियों में भी अभिभावकों से किराया वसूलते हैं. गरमी की छुट्टी हो या सर्दी की, स्कूल बंद रहने पर भी घर पर उन्हें बिल देकर पैसे लिये जाते हैं. मना करने पर सर्विस बंद कर दिया जाता है. नियम न टूटे इसके लिए अन्य एजेंसियां भी सर्विस नहीं देती. यह मनमानी संगठन बनाकर किया जा रहा है.
किराया निर्धारण की कोई व्यवस्था नहीं : किराया निर्धारण का काम क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार का होता है. प्राधिकार का कहना है कि स्कूल बस और वैन के किराये का निर्धारण को कोई प्रावधान नहीं होने की वजह से मनमाना वसूली हो रही है. किराया क्या होगा, यह तय करने का जिम्मा स्कूल प्रबंधन के पास होता है.
केस वन
इशिता अपनी बेटी को लोयला हाइ स्कूल से खजांची रोड स्थित अपने घर पहुंचाने के लिए वैन चालक को हर महीने 1500 देती हैं. वहीं रंजीत रंजन अशोक राजपथ के लिए 2500 रुपये हर महीने खर्च करते हैं. अशोक कहते हैं कि वैन गाय घाट तक जाती है. गाय घाट का किराया 2500 रुपये प्रति महीने है. ऐसे में 2500 रुपये उनसे वसूला जाता है.
केस दो
गांधी मैदान इलाके में रहने वाले दिनेश कुमार की 7 साल की बेटी नोट्रेडेम एकेडमी में पढ़ती है. अपनी बेटी को स्कूल लाने, ले-जाने के लिए वह हर महीने 1200 रुपये वैन एजेंसी को किराया देते हैं. वहीं उनके इनकम टैक्स के पास उतरने पर मनोज गुप्ता को अपनी बेटी के लिए 1200 रुपये ही देने पड़ते हैं.
केस तीन
श्रेया अग्रवाल कंकड़बाग में रहती हैं. लोयला हाइ स्कूल में उनका बेटा पढ़ता है. वह अपने वैन सर्विस प्रोवाइडर को 2000 रुपये हर महीने देती हैं. वहीं उसी इलाके में रहने वाले रवि सिंह अपनी बेटी के लिए हर महीने 1500 रुपये दूसरे सर्विस प्रोवाइडर को देते हैं.
स्कूल बस और वैन के किराये का निर्धारण हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है. इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं है. वैन चालकों द्वारा मनमाना वसूली की शिकायत मिलती है, लेकिन प्रावधान न होने
के कारण उन पर नकेल नहीं कसा जा सकता.
ईश्वर चंद्र सिन्हा, क्षेत्रीय परिवहन पदाधिकारी, पटना प्रक्षेत्र
किराये संबंधी निर्देश स्कूलों को भेजे गये हैं. उनसे एजेंसी से टाइअप करने संबंधी पत्र भी भेजा जा चुका है. किराया निर्धारण का काम हमारा नहीं है. भाड़ा निर्धारण और अन्य समस्याओं के समाधान के लिये स्कूल वाहन समिति के निर्माण के लिए भी कहा गया था, लेकिन किसी स्कूल ने रिपोर्ट नहीं किया.
सुरेंद्र झा, डीटीओ, पटना
हमें ड्राइवरों को पूरे साल वेतन देना होता है. गाड़ियों का मेंटेनेंस चार्ज भी होता है. बच्चे कहीं भी उतरें, सीट खाली रह जाने पर किसी और को नहीं बिठाया जा सकता. ऐसे में हमें अधिकतम किराया लेना पड़ता है. छुट्टियों में भी पैसे लेने पड़ते हैं.
संतोष, एजेंसी संचालक

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