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गोल्डेन ट्राइ एंगल से जुड़ रहा ड्रग्स तस्करी में बिहार का तार
तस्करों का नेटवर्क. थाईलैंड, म्यांमार, बांग्लादेश से आ रहे नशीले पदार्थ कौशिक रंजन पटना : बिहार में पिछले कुछ सालों में गांजा, अफीम या चरस की आमद काफी बढ़ी है. ड्रग्स की तस्करी में पिछले कुछ सालों के दौरान 25 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. राज्य में मुख्य रूप से गांजा, […]
तस्करों का नेटवर्क. थाईलैंड, म्यांमार, बांग्लादेश से आ रहे नशीले पदार्थ
कौशिक रंजन
पटना : बिहार में पिछले कुछ सालों में गांजा, अफीम या चरस की आमद काफी बढ़ी है. ड्रग्स की तस्करी में पिछले कुछ सालों के दौरान 25 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. राज्य में मुख्य रूप से गांजा, चरस और अफीम की ही मांग है. मादक पदार्थों की राज्य में तेजी से बढ़ती जरूरत के कारण यहां के ड्रग्स का नेटवर्क दुनिया के कुख्यात रूट ‘गोल्डन ट्राइ एंगल’ से भी जुड़ने लगा है. हालांकि अभी सीधे तौर पर इस रूट से बिहार नहीं जुड़ा है, लेकिन यहां मादक पदार्थों की खेप उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा ओड़िशा, झारखंड होते हुए पहुंच रही है.
तस्करों को बिहार ड्रग्स सप्लाइ के बड़े बाजार के रूप में दिख रहा है. इस बाजार को गिरफ्त में लेने के लिए धंधेबाजों ने अपने स्तर से कवायद भी शुरू कर दी है. हाल में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने भी इस तरफ इशारा किया है. उसने अपनी रिपोर्ट में भी बिहार में तेजी से बढ़ रही मादक पदार्थों की खपत और आमद की बात कही है.
विभागीय सूत्रों का कहना है कि अगर बिहार में ड्रग्स तस्करी के बढ़ते नेटवर्क को नहीं तोड़ा या रोका गया, तो बिहार भी उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरह सीधे तौर पर गोल्डन ट्राइएंगल से जुड़ सकता है. इसके बाद स्थिति काफी खराब साबित हो सकती है. इससे पहले नेपाल के रास्ते बिहार ड्रग्स आने की बात पहले से ही जाहिर है. यह बेहद आसान और तस्करों के बीच लोकप्रिय रास्ता है. नेपाल रूट के अलावा यह नया रास्ता बनता जा रहा है.
गांजा और चरस का बना नया बाजार
यह है तस्करों का नया रूट
दुनिया में अफीम की अच्छी खेती थाइलैंड में होती है. थाइलैंड, वियतनाम, लाओस होते हुए बांग्लादेश के रास्ते अफीम, चरस समेत अन्य मादक पदार्थों का बड़ा कारोबार होता है, जिसे गोल्डन ट्राइ एंगल कहा जाता है. यह अंतरराष्ट्रीय रूट दुनिया में ड्रग्स की तस्करी के लिए काफी कुख्यात है. पूरे एशिया महादेश में ड्रग्स का सारा कारोबार इसी रूट के जरिये होता है.
इस रूट से भारत के नाॅर्थ-इस्ट राज्यों में काफी समय से ड्रग्स की तस्करी हो रही है. कुछ समय पहले एनसीबी ने चरस की एक बड़ी खेप सिलीगुड़ी में पकड़ी थी, जिसमें कुरियर का नाम पटना का था. यानी यह खेप पटना आ रही थी. वर्तमान में इस तरह से ड्रग्स की आमद थोड़ी बहुत ही है. बड़ी खेप नहीं होने के कारण यह पकड़ में नहीं आ पाती है, परंतु खुफिया तौर पर इस बात की स्पष्ट जानकारी मिली है कि मादक पदार्थों की आमद काफी तेजी से बढ़ती जा रही है.
बिहार में इस तरह होती है इंट्री
बिहार में आने के लिए तस्कर सीधा बांग्लादेश या पश्चिम बंगाल के रूट का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि इसे ओड़िशा, झारखंड और कई बार यूपी की तरफ के रूट का उपयोग करते हैं.
पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, कटिहार, पूर्णिया, आरा, बक्सर, पटना होते हुए पूरा एनएच-31 ड्रग्स रूट के रूट बन गया है. इस रूट से रोजाना एक ट्रक गांजा बिहार आता है. यह कई हिस्सों और अलग-अलग तरीके से आता है, जिसमें अधिकांश खेप पकड़ में नहीं आती है. एनसीबी ने 23 जुलाई को जमशेदपुर में 90 किलो गांजा पकड़ा है, जिसे ओड़िशा होते हुए बिहार लाना था.
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