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कब तक धर्म के आगे होंगे बेबस

कालिदास रंगालय में एक्सीडेंट नाटक का किया गया मंचन पटना : शुरू से धर्म और मजहब इनसान को जुदा करते आया है. कई लोग इस धर्म के कारण अपने प्यार को ठुकराये हुए हैं, तो कई लोग खुद को ही धर्म के आगे बेबस हो दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, शुरू से अभी तक […]

कालिदास रंगालय में एक्सीडेंट नाटक का किया गया मंचन
पटना : शुरू से धर्म और मजहब इनसान को जुदा करते आया है. कई लोग इस धर्म के कारण अपने प्यार को ठुकराये हुए हैं, तो कई लोग खुद को ही धर्म के आगे बेबस हो दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, शुरू से अभी तक लोगों का बस यही सवाल उठता है कि आखिर कब तक लोग धर्म के आगे बेबस होते जायेंगे?
कब तक इनसान हिंदू, मुसलिम, सिख और ईसाई बन कर समाज में रहेगा? इनसान एक आम इनसान कब बन पायेंगे. ऐसे कई सवालों की चीख कालिदास रंगालय में गूंज रही थी. यहां शनिवार को मध्यम फाउंडेशन के बैनर तले समाजसेवी सीता देवी के छठी पुण्यतिथि पर एक्सीडेंट नाटक का मंचन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन कला संस्कृति व युवा विभाग के मंत्री शिवचंद्र राम ने किया. मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में समाज कल्याण विभाग मंत्री मंजू वर्मा, युवा जदयू के संतोष कुशवाहा मौजूद थे.
इस नाटक की कहानी में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले. नाटक में कई कलाकारों ने अपनी भूमिका को बखूबी अंदाज में पेश किया. वहीं नाटक के डायलॉग सुन और दृश्यों को देखते हुए तालियां बजायी. इस नाटक का निर्देशन व नाट्य रूपांतरण धर्मेश मेहता की ओर से किया गया.
नाटक की कहानी
नाटक की कहानी दो अजनबी अनजाने मुसाफिरों की है, जिनकी मुलाकात एक बस एक्सीडेंट के कारण होती है, जिसमें दो दोस्त किशोर और रितेश एक बस एक्सीडेंट का शिकार होते हैं. इस एक्सीडेंट में कई जानें जाती है. इस दौरान दोनों की मुलाकात नजमा नाम की लड़की से होती है, जो इस हादसे में बूरी तरह से घायल हो चुकी है. इनसानियत के नाते दोनों दोस्त नजमा को भागलपुर के एक अस्पताल में भरती कराते हैं.
इस दरम्यान नजमा और किशोर एक-दूसरे से करीब आ जाते हैं और दोनों को प्यार हो जाता है. नजमा ठीक होते अपने अब्बू के साथ दोनों दोस्त की गैर मौजूदगी में पटना चली आती है.
कुछ साल बाद जब दोनों दोस्त पटना में इंटरव्यू देने आते हैं, तो उन्हें नजमा की याद आती है और दोनों नजमा को सरप्राइज देने के लिए किसी तरह पता लगाते हुए उसके घर पहुंच जाते हैं. ऐसे में नजमा दोनों को देख कर खुश होती है, लेकिन अपने अब्बू के डर से रोने लगती है. इस वजह से वह अपने अब्बू से दोनों का परिचय भी नहीं करा पाती. यह बात किशोर को बुरा लगता और वह कहता है कि हमने कर्तव्य निभाया था एक इनसान बन कर न की हिंदू या मुसलमान बन कर.
मंच पर
किशोर- गुंजन कुमार
रितेश- पंकज सिंह
नजमा- सुनीता भारती
अम्मी- चित्रा श्रीवास्तव
अब्बू- आर नरेंद्र
ड्राइवर- सरविंद कुमार
डॉक्टर- मंजर हुसैन
कम्पाउडर- पारस कुमार
सवारी-1- सौरभ कुमार
सवारी-2- मो सफ्रइद्दीन
चचाजान- अजय कुमार
ग्रामीण- रणधीर, पुष्कर
पुलिस- शुभम कुमार

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