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क्या आप जानते हैं गोरैया बाबा बंदी माई व सोखा बाबा को

पुष्यमित्र pushyamitra@prabhatkhabar.in पटना : अगर आपको लगता है कि दुर्गा, लक्ष्मी, महादेव, हनुमान और विष्णु जैसे देवता ही हिंदुओं के सबसे प्रिय और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देव हैं तो आपको अपनी जानकारी पर पुनिर्वचार करने की जरूरत है. ज्यादातर लोगों के कुलदेवता और ग्रामदेवता इन नामों से इतर हैं. हाल ही में एक […]

पुष्यमित्र
pushyamitra@prabhatkhabar.in
पटना : अगर आपको लगता है कि दुर्गा, लक्ष्मी, महादेव, हनुमान और विष्णु जैसे देवता ही हिंदुओं के सबसे प्रिय और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देव हैं तो आपको अपनी जानकारी पर पुनिर्वचार करने की जरूरत है. ज्यादातर लोगों के कुलदेवता और ग्रामदेवता इन नामों से इतर हैं.
हाल ही में एक अध्येता ने जब उत्तर बिहार के गांवों में इस मामले में शोध किया तो बड़े चौंकाने वाले परिणाम सामने आये. इस इलाके के 140 विधानसभा क्षेत्र के 140 अलग-अलग गांवों का सर्वेक्षण करने पर उन्होंने इस इलाके के जिन पापुलर कुलदेवताओं और ग्रामदेवताओं के नाम अपनी रिपोर्ट में शामिल किये हैं, वे हैं, गोरैया बाबा, बंदी माय, सोखा बाबा, कारिख, सलहेस, दीना भदरी, बरहम बाबा, गिहल, विषहरा, काली, बामती आदि.
रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों को पूजने वालों की संख्या करोड़ों में है. रोचक तथ्य यह है कि अगर आपका नाता ग्रामीण जनजीवन से नहीं है तो इनमें से ज्यादातर देवी-देवताओं के आपने नाम नाम तक नहीं सुने होंगे.. इंडियन कॉउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च के लिए उत्तर बिहार के ग्रामदेवता एवं कुलदेवता विषय पर शोध करने वाले प्रदीपकांत चौधरी इन दिनों बिहार सरकार के उच्च शिक्षा विभाग में कंसल्टेंट हैं. वे कहते हैं, आपको यह जानकर हैरत होगी कि गोरैया बाबा जिनकी पूजा गोपालगंज से लेकर वैशाली तक के इलाके में की जाती है उनको पूजने वाले लोग करोड़ में हैं. यूपी तक में लोग इनकी अाराधना करते हैं.
140 गांवों में सर्वेक्षण के दौरान 65 फीसदी लोगों ने इन्हें अपना कुलदेवता बताया. जबकि शहरों में काफी लोगों ने इनका नाम तक नहीं सुना होगा, गांवों में भी अगड़ी जाति के कई लोग इन नाम से अनिभज्ञ हों तो कोई हैरत की बात नहीं. पहले इनकी पूजा पासवान जाति के लोग करते थे, अब सभी पिछड़ी और दलित जातियों में इनकी पूजा होती है. इनके साथ बन्नी माई या बंदी माई की भी पूजा बड़ी संख्या में लोग करते हैं. गोरैया बाबा को रक्षक माना जाता है और बन्नी या बंदी माई कुलदेवी होती हैं.
प्रदीपकांत कहते हैं, इसी तरह सोखा बाबा और कारिख धर्मराज के उपासक भी उत्तर बिहार में बड़ी संख्या में हैं. बरहम बाबा या डिहबार बाबा का स्थान तो तकरीबन हर गांव में मिल जाता है.
गिहल चारागाह के देवता हैं और यादव समुदाय के लोग इनके उपासक हैं, राजा सल्हेस और दीना भदरी का नाम तो अपेक्षाकृत पापुलर है और दलित जातियों में इनका भरपूर सम्मान है. बामती शमशान की देवी हैं. वे कहते हैं, काली मां को भी बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी कुलदेवी बताया है, मगर यह प्रचिलत देवी दक्षिणेश्वर काली से भिन्न लगती हैं. लोग गहवर में इनके नाम से सात पिंडा बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं. इन्हें सतिबहनी कहना ज्यादा उचित होगा.
पश्चिमी चंपारण के बगहा से लेकर किशनगंज तक 140 विधानसभा की अलग-अलग गांवों की यात्रा करते हुए प्रदीपकांत ने इस शोध में काफी वक्त लगाया है. उन्होंने लगभग 10 हजार किमी का सफर मोटरसाइकिल से किया है और बड़ी संख्या में लोगों से बातचीत की है. उन्होंने जो शोध आइसीएचआर को सबमिट किया है उसके मुताबिक उत्तर बिहार में 450 के करीब कुलदेवी-कुलदेवताओं की पूजा की जाती है. इन देवी-देवताओं की पैठ ज्यादातर पिछड़ी और दलित जातियों के बीच है, जबकि उच्च जातियां अमूमन दुर्गा-लक्ष्मी, शिव और सत्यनारायण जैसे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं.
इसके अलावा दलित और अति पिछड़ी जातियों में मनुख देवा भी कई प्रकार के हैं. जैसे बघौत. इसका अर्थ समुदाय का कोई व्यक्ति जो बाघों से लड़ता हो उसे देव मान लिया जाता है.
परिवार की कोई लड़की अगर कुंवारी मर गयी हो और उसकी मौत के बाद परेशानियां शुरू हो गयी हों तो बाद में लोग उसकी पूजा करने से लगते हैं, इस उम्मीद से कि पूजा के बाद उस लड़की की आत्मा उन्हें परेशान करना बंद कर देती. फिर आगे चल कर वही बच्ची देवी बन जाती है. अपने आब्जर्वेशन के आधार पर प्रदीपकांत बताते हैं कि इन देवों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में हनुमान की मूर्तियां भी बड़ी संख्या में मिलती हैं. मगर यह ताजा डेवलपमेंट है, इनमें से कोई मूर्ति, मंदिर या स्थान 50 साल से अधिक पुराना नहीं है.
जबकि इन कुलदेवी-देवता की पूजा कई पीढ़ियों से की जाती रही है.उनके मुताबिक ये देवी-देवता रैयतों के हैं, जो इन इलाकों के स्थायी बाशिंदे रहे हैं. लिहाजा इन देवी-देवताओं के बारे में हमें ढेर सारी जानकारी हासिल करने की जरूरत है. जैसे, बहुत कम लोगों को पता होगा कि गोपालगंज स्थित अजबीनगर में गोरैया बाबा का मंदिर है और वहां हर साल इनके बेरागन वाले दिन हजारों सूअरों की बलि चढ़ती है. सीवान जिले का गोरैयाकोठी कस्बा भी संभवत: इन्हीं गोरैया बाबा के नाम पर स्थापित है.
सच यही है कि अब तक हिंदू धर्म में कुछ हीदेवी-देवताओं और उनके नाम पर होने वाले पर्व त्योहारों के बारे में जानकारी सामने आयी है. जबकि हमें जानना चाहिए कि पिछड़ी और दलित जाति के लोग किस-किस तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. उनकी पूजा पद्धति कैसी है. उनके धार्मिक उत्सव किस तरह के हैं. इस बारे में अभी बहुत शोध किये जाने की जरूरत है. तभी हिंदू धर्म का प्लूरलिस्टिक स्वरूप सामने आ सकेगा.
शोध में आये कई रोचक तथ्य
उनके इस शोध में एक और रोचक तथ्य जो उभर कर सामने आया है, वह यह है कि जैसे-जैसे हम जातीय श्रेणी में नीचे उतरते जाते हैं, कुलदेवी या देवताओं की संख्या बढ़ती जाती है.
जैसे अमूमन सवर्ण जाति के लोगों के कुलदेवी या देवता एक होते हैं. मझोली जाति यादव, कुर्मी आदि में यह संख्या दो से तीन तक मिलती है. अति पिछड़ी जाति के परिवारों में तीन-चार कुलदेवी या देवता होते हैं. जैसे कई परिवारों में गोरैया-बंदी या गिहल-बंदी की एक साथ पूजा होती है. वहीं महादलित परिवारों में तो कुलदेवी और देवताओं की संख्या 10 से 15 तक मिलती हैं.

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