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क्यों न फांसी और उम्रकैद की सजा बरकरार रहे : सुप्रीम कोर्ट

आशियाना नगर फर्जी मुठभेड़. दारोगा शम्से आलम और सिपाही अरुण को सुप्रीम कोर्ट ने दिया नोटिस आशियाना नगर के सम्मेलन मार्केट में फर्जी मुठभेड़ में पुलिस ने तीन निर्दोष छात्रों को लुटेरा बता गोली मार दी थी. पटना : आशियाना नगर फर्जी मुठभेड़ मामले में नया मोड़ आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने दारोगा शम्से […]

आशियाना नगर फर्जी मुठभेड़. दारोगा शम्से आलम और सिपाही अरुण को सुप्रीम कोर्ट ने दिया नोटिस
आशियाना नगर के सम्मेलन मार्केट में फर्जी मुठभेड़ में पुलिस ने तीन निर्दोष छात्रों को लुटेरा बता गोली मार दी थी.
पटना : आशियाना नगर फर्जी मुठभेड़ मामले में नया मोड़ आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने दारोगा शम्से आलम और सिपाही अरुण कुमार सिंह को नोटिस जारी किया है. ये दोनों पुलिस पुलिसकर्मी फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपित रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इनसे पूछा है कि क्यों न निचली अदालत की सजा को बरकरार रखा जाये. निचली अदालत ने थानेदार को फांसी की सजा और सात अन्य अभियुक्तों काे उम्रकैद की सजा सुनायी थी.
सुप्रीम कोर्ट के इस नोटिस के बाद मुठभेड़ में मारे गये छात्र विकास रंजन, प्रशांत कुमार और हिमांशु यादव के परिजनों को एक बार फिर न्याय की उम्मीद जगी है, क्योंकि पटना हाइकोर्ट द्वारा दोनों पुलिस कर्मियों के बरी होने से निराशा हाथ लगी थी, हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अब कोर्ट ने नोटिस जारी किया है.
क्या है मामला
28 दिसंबर, 2002 को आशियाना नगर के सम्मेलन मार्केट में फर्जी मुठभेड़ हुई थी. इस दौरान पुलिस ने तीन निर्दोष छात्रों को लुटेरा बता कर गोली मार दी थी. घटना के बाद काफी हंगामा हुआ था.
आगजनी, सड़क जाम, बाजार बंद कर लोगाें ने गुस्सा जाहिर किया था और पुलिस का छीछालेदर हुआ था. इस मामले में पटना हाइकोर्ट ने चार नवंबर, 2015 को दारोगा शम्से आलम और सिपाही अरुण कुमार सिंह समेत सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया. हाइकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में यह फैसला सुनाया था, लेकिन इससे परिजनों को बड़ा झटका लगा था. इससे पहले सिविल कोर्ट ने दारोगा शम्से आलम को फांसी की सजा सुनायी थी.
कब क्या हुआ
28 दिसंबर, 2002 : अाशियाना के सम्मेलन मार्केट में तीन छात्रों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या.
29 दिसंबर, 2002 : दारोगा समेत आठ पर एफआइआर.
18 फरवरी, 2003 : सीबीआइ ने मामला दर्ज किया. जांच शुरू.
29 मार्च, 2003 : आठ अारोपितों के खिलाफ चार्जशीट.
31 मार्च, 2003 : कोर्ट का संज्ञान
14 दिसंबर, 2004 : कोर्ट ने सभी आरोप गठन किया.
02 दिसंबर, 2008 : अभियुक्तों का 313 के तहत बयान दर्ज.
12 जून, 2014 : सिविल कोर्ट में सभी आरोपितों को दोषी करार.
24 जून, 2014 : सिविल कोर्ट ने थानेदार को फांसी की सजा और सात काे उम्रकैद की सजा सुनायी.
04 नंवबर 2015 : पटना हाइकोर्ट ने सभी आरोपितों को बरी किया.
30 जून, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने दारोगा शम्से आलम व सिपाही अरुण को नोटिस जारी किया है.

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