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टिकट कट जाने पर हो जाती है सौदागर या जनसेवी की पहचान

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक जनीति में कौन सौदागर है और जनसेवी, इसकी पहचान बहुत आसान है. किसी विधायक या सांसद का चुनावी टिकट काट देने के बावजूद यदि वह दल में बना रहे तो समझिए कि वह जनसेवी है. यदि किसी नेता का कोई रिश्तेदार टिकट चाहता है और पार्टी उसे टिकट नहीं दे फिर […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
जनीति में कौन सौदागर है और जनसेवी, इसकी पहचान बहुत आसान है. किसी विधायक या सांसद का चुनावी टिकट काट देने के बावजूद यदि वह दल में बना रहे तो समझिए कि वह जनसेवी है. यदि किसी नेता का कोई रिश्तेदार टिकट चाहता है और पार्टी उसे टिकट नहीं दे फिर भी वह नेता दल में बना रहे तब तो उस नेता को आदर्शवादी माना जायेगा. पर सवाल है कि आज की राजनीति में ऐसे नेता कितने हैं ? बहुत ही कम. ऐसे लोग राजनीति की धारा को प्रभावित तो कतई नहीं करते. इन दिनों अधिकतर नेता तो स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह ही हैं. चूंकि अनेक ‘स्वामी प्रसाद मौर्य’ बिहार में भी हैं, इसलिए इस तरह की चर्चा मौजूं है. हालांकि इन दिनों बिहार में चुनाव नहीं हो रहे हैं.
इसलिए यहां अभी कोई ‘मौर्य’ नजर नहीं आ रहा है. हां, बिहार में उन नेताओं के खुश या नाराज होने की अब बारी है जिन्होंने राज्य सरकार के परिषदों, निगमों, आयोगों या समितियों में स्थान पाने की उम्मीद लगा रखी है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्वामी प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया था. कोई सुप्रीमो इससे बड़ा पद किसी को नहीं देगा. इसके बावजूद मनचाहा टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बसपा छोड़ दी. जब व्यक्तिगत कारणों से इतने बड़े नेता दल बदलने लगें तो समझ लेनी चाहिए कि आज की राजनीति कहां पहुंच चुकी है. ऐसी राजनीति देश को कहां ले जाएगी? अपवादों को छोड़ दें तो टिकट, पद, दौलत और वंशवाद पक्ष-विपक्ष की राजनीति के आज मूल मंत्र बन चुके हैं. सवाल यह भी है कि इससे उबरने का जनता के पास विकल्प क्या है?
चूंकि विकल्प सीमित है, इसलिए ऐसे ही आत्मकेंद्रित नेतागण ही अधिकतर जगहोंं पर हावी हैं. ऐसे लोकतंत्र की न तो स्वतंत्रता सेनानियों और न ही संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने जरूर भारत में ऐसे दिनों की भविष्यवाणी कर दी थी. उसे हमारे अधिकतर नेतागण सही साबित करने में रात-दिन लगे हुए हैं. गत साल शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया था कि बहुत ही कम अच्छे लोग राजनीति में आ रहे हैं, क्योंकि राजनीति की छवि बहुत खराब हो चुकी है. लोग समझते हैं कि राजनीति अच्छे लोगों की जगह नहीं है.
मोदी के अनुसार इससे देश को नुकसान हो रहा है. क्या मोदी और दूसरे दलों के नेतागण इस देश में कभी ऐसी स्थिति तैयार करेंगे ताकि अच्छे लोग बड़ी संख्या में राजनीति में आ सकें? फिलहाल तो यह असंभव ही लगता है. अभी तो स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता ही राजनीति पर हावी रहेंगे. स्वामी प्रसाद मौर्य तो एक ताजा नमूना हैं. इस देश में तो अनेक मौर्य हैं.
शरमा गया होगा नटवरलाल
कल्पना कीजिए कि नटवर लाल आज जीवित होता! तो टॉपर घोटालेबाजों की करतूतों को देखकर वह कैसा महसूस करता? वह कह उठता कि इन डकैतों के सामने मैं तो जेबकतरा मात्र हूं! बिहार के शिक्षा माफियाओं ने तो ऐसे कामों के लिए भी पैसे कमाए जिनकी नटवरलाल ने कल्पना तक नहीं की होगी, क्योंकि तब सिस्टम इतना सड़ा हुआ भी नहीं था. कुछ साल पहले बिहार में इंटर परीक्षा की सेकेंड टॉपर लड़की का एक इलेक्ट्रानिक चैनेल ने इंटरव्यू किया था.
इन पंक्तियों का लेखक भी वह इंटरव्यू देख रहा था. उस लड़की की परीक्षा का एक विषय सोशियोलॉजी भी था. पर वह सोशियोलॉजी की स्पेलिंग नहीं बता सकी थी. यदि शासन ने उसी साल उस खबर का संज्ञान लिया होता तो लालकेश्वर-बच्चा प्रकरण सामने नहीं आता. राज्य की शिक्षा रसातल में जाने से तभी रुक जाती. खैर जो हो, देर आए, दुरुस्त आए! टॉपर घोटालेबाजों के खिलाफ जारी कार्रवाइयां सराहनीय है.
अब मुंह छिपाने से क्या होगा! अपनी गिरफ्तारी के बाद लालकेश्वर प्रसाद सिंह रूमाल से अपना मुंह छुपा रहे थे. जाहिर है कि उन्हें अपनी करतूतों पर शर्म आ रही होगी. कम से कम वह उन नेताओं से बेहतर हैं जो जेल जाते-आते तनिक भी नहीं शर्माते. शुक्र है कि अबतक लालकेश्वर ने यह भी नहीं कहा है कि उन्हें राजनीतिक या जातीय द्वेष के कारण फंसा दिया गया. इस देश के भ्रष्ट नेता ऐसा बहाना अक्सर बनाते रहते हैं. लालकेश्वर राज्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पटना विश्वविद्यालय के शिक्षक थे. उनकी करतूतों से वह विश्वविद्यालय भी शर्मसार हुआ है.
उन्होंने न तो बिहार की इज्जत का ध्यान रखा और न ही अगली पीढ़ियों का, न ही उन मेधावी छात्र-छात्राओं का जिनके हक मारकर उन्होंने रूबी कुमारी और सौरभ श्रेष्ठ को टॉपर बनाया. अदालत चाहे उन्हें जो सजा दे, पर उन्होंने अपना इहलोक और परलोक दोनों बिगाड़ लिया. बिहार के साथ-साथ लालकेश्वर ने राज्य सरकार का भी सिर नीचा किया जिसने उन पर भरोसा करके बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था. लालकेश्वर एंड कंपनी के साथ अदालत चाहे जो सलूक करे, पर आम धारणा वही है जैसा काम इन घोटाला मंडली ने किया है. अखिल भारतीय स्तर पर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में घोटाले के जरिए नामांकन कराने वाले एक गिरोह का सरदार बिहार का था.
कई साल पहले जब वह गिरफ्तार हुआ तो उसके जिले में उसके पक्ष में कुछ लोगों ने जुलूस निकाला था. लगता है कि वह अपने जिले के कुछ लोगों का काम कम पैसे में या मुफ्त में कर दिया करता था. लालकेश्वर के पक्ष में कहीं जुलूस नहीं निकला. आखिर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में कितना पैसा चाहिए? प्रशासन और राजनीति के क्षेत्रों में अब भी ‘सक्रिय’ लालकेश्वर के ‘समानधर्मी’ लोग लालकेश्वर प्रकरण से कोई शिक्षा ग्रहण करेंगे ?
पौधरोपण का लालकेश्वर स्टाइल
एक विदेशी कहावत है. यदि कुछ महीनों में रिजल्ट पाना हो तो धान बोओ. कुछ ही साल में फल पाना हो तो पेड़ लगाओ. पर अगले सैकड़ों साल तक फल पाना है तो मनुष्य बोओ. लालकेश्वर कैसे मनुष्य बो रहे थे? फाइलें से नहीं खुल पायी नेताजी पर रहस्य दशकों से केंद्र सरकार यह कहती रही थी कि नेताजी से संबंधित गुप्त फाइलों को सार्वजनिक करने से देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो जाएगी. मांग बढ़ने पर मोदी सरकार ने चार किश्तों में दो सौ फाइलें सार्वजनिक कर दीं. यह भी कह दिया कि अब उसके पास कोई गुप्त फाइल नहीं है.
इसके बावजूद नेता जी की मौत के बारे में जो सवाल उठते रहे हैं ,उनका जवाब नहीं मिल सका. रहस्य बना रहा. क्या वह रहस्य उन फाइलों में दफन हो गया जिन्हें कभी केंद्र सरकार ने नष्ट कर दिए थे? क्या उन्हीं नष्ट फाइलों को इंगित करते हुए रहस्य की बातें कही जा रही थीं? क्या कभी उन्हीं नष्ट की गई फाइलों को देखकर भारत सरकार कह रही थी कि यदि उन्हें सार्वजनिक किया गया तो देश में कानून-व्यवस्था बिगड़ जाएगी? कुल मिलाकर स्थिति यह है कि फाइलें सार्वजनिक करने को लेकर मोदी सरकार की उदारता दिखाने के बावजूद लोगों के दिलो दिमाग में जो सवाल थे,वे अब भी बने रह गए.
और अंत में
कई साल पहले मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘कफन में जेब नहीं होती.’ यह कह कर वह भ्रष्टाचारियों को समझाने की कोशिश कर रहे थे. पर टॉपर घोटाले के धनलोलुप आरोपी तो यह मानते हैं कि कफन में कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि काफी बड़ी जेब होती है.

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