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नशाबंदी पर तब और अब के नेताओं के बीच का फर्क
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक कसमकालीन नेता ने इन पंक्तियों के लेखक को बहुत पहले यह बताया था कि 1952 में जगलाल चौधरी इसीलिए मंत्री नहीं बनाये गये थे, क्योंकि वे नशाबंदी के कट्टर समर्थक थे.पर, चौधरी जी ने अपनी कुरसी को गंवा देना मंजूर किया, पर अपनी गांधीवादी जिद नहीं छोड़ी. पर आज के दलित […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
कसमकालीन नेता ने इन
पंक्तियों के लेखक को बहुत पहले यह बताया था कि 1952 में जगलाल चौधरी इसीलिए मंत्री नहीं बनाये गये थे, क्योंकि वे नशाबंदी के कट्टर समर्थक थे.पर, चौधरी जी ने अपनी कुरसी को गंवा देना मंजूर किया, पर अपनी गांधीवादी जिद नहीं छोड़ी. पर आज के दलित नेता राम विलास पासवान ने बिहार सरकार से यह मांग की है कि वह ताड़ी व्यवसाय को उद्योग का दर्जा दे. वे ताड़ी की बिक्री के पक्ष में आंदोलन पर उतारू हैं.
याद रहे कि नीतीश सरकार ने ताड़ी की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, बल्कि शर्त और नियम के साथ ताड़ी की बिक्री की छूट है. शर्त इसी तथ्य को ध्यान में रखकर सरकार ने रखी है कि सुबह की ताड़ी स्वास्थप्रद है, जबकि वही ताड़ी शाम तक नुकसानदेह बन जाती है. जगलाल चौधरी नशा से होने वाली बुराइयों के प्रति चिंतित थे. ताड़ी बेचना उनके परिवार का पुश्तैनी धंधा था. उसी पैसों से चौधरी जी ने कुछ साल कलकत्ता में मेडिकल की पढ़ाई की थी. याद रहे कि जगलाल चौधरी 1937 और 1946 में बिहार में कैबिनेट मंत्री बने थे.
आबकारी मंत्री के रूप में तब उन्होंने राज्य में नशाबंदी लागू कर दी थी. ऐसा करते समय उन्होंने इस बात की कतई परवाह नहीं की कि इससे उनके परिवार की आमदनी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. याद रहे कि 1937 की सरकार में जगजीवन राम संसदीय सचिव थे. यानी तब उन्हें जगजीवन राम से बड़ा नेता माना गया था. फिर भी उन्हें 1952 की सरकार में काम करने का अवसर नहीं दिया. नशाबंदी के कारण पटना से लेकर दिल्ली तक के कई बड़े कांग्रेसी नेतागण जगलाल चौधरी से नाराज हो गये थे.
वैकल्पिक रोजगार का बहाना : आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने से पहले हजारों लोग नेपाल की सीमा पर तस्करी के धंधे में लगे हुए थे़ तब तस्करी के खिलाफ जब शासन कड़ाई करता था, तो तस्करी से लाभान्वित कुछ लोग यह तर्क देते थे कि इससे हजारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे़ अब तस्करी का धंधा पहले जैसा नहीं रहा़ फिर बेरोजगार हुए लोग आखिर क्या कर रहे हैं ? उन्होंने वैकल्पिक रोजगार खुद ही ढूंढ़ लिया़ बिहार में शराबबंदी होने पर शराब के अनेक दुकानदारों ने सुधा के उत्पाद बेचने का निर्णय किया ही है़ ताड़ी के व्यापार में लगे लोग भी कोई बेहतर और सम्मानजनक काम की तलाश कर ही लेंगे़
सांसद आदर्श ग्राम योजना ने खोली पोल : मोदी सरकार द्वारा शुरू की गयी सांसद आदर्श ग्राम योजना ने देश में जारी सामान्य विकास की पोल खोल दी है़ इस योजना में उन्हीं पैसों को लगाने का फैसला हुआ है जो पैसे गांवों के विकास के लिए हर साल केंद्र और राज्य सरकारें गांवों में भेजती हैं.
अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि यदि सौ पैसे हम दिल्ली से भेजते हैं, तो उनमें से सिफ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंचते हैं. सांसद आदर्श ग्राम योजना की हालत देखकर यही लगता है कि अस्सी के दशक से अब तक कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.
इस याेजना का अनुभव हासिल करने के बाद अब केंद्र और राज्य सरकारों को शासन के ‘डिलिवरी सिस्टम’ को भीषण भ्रष्टाचार की गिरफ्त से निकालने के लिए निर्मम सर्जरी करने के लिए खुद में राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा करनी होगी.
सांसद फंड में भारी वृद्धि पर विचार : पता चला है कि सांसद फंड को पांच करोड़ रुपये से बढ़ा कर 25 करोड़ रुपये सालाना करने के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार विचार कर रही है. इस खबर पर बिहार सरकार का एक फैसला याद आया. तब राज्य सरकार ने विधायक फंड बंद कर दिया था. आखिर उस बंदी के क्या कारण थे? अधिकतर जागरूक लोग कारण जानते हैं. क्या वे कारण सांसद फंड के साथ भी नहीं है? प्रशासनिक सुधार आयोग इसे बंद करने की सिफारिश पहले ही कर चुका है़ पर बंद करने की हिम्मत किसी सरकार में नहीं है़ भाजपा के एक बड़े नेता ने सांसद फंड की बुराई के बारे में एक बात कही थी़ तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे़ भाजपा के 40 सांसद अटल जी से मिले़ उन्होंने कहा कि सांसद फंड के कारण हमारे अनेक कार्यकर्ता अर्थकामी बन रहे हैं. वे सांसद फंड के ठेकेदारी कर रहे हैं.
इसलिए इस फंड को बंद कर दीजिए. अटल जी इस पर विचार कर ही रहे थे कि सौ से अधिक सांसदों का एक दूसरा दल अटल जी से मिला. उनसे कहा कि इस फंड को बढ़ाकर दो करोड़ कर दीजिए. अटल जी ने कर दिया. तब मनमोहन सिंह ने राज्य सभा में इस बढ़ोत्तरी का सख्त विरोध किया था. पर जब सिंह खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पांच करोड़ रुपये सालाना कर दिया.
आज देश में सांसद फंड के अनेक ठेकेदार राजनीतिक कार्यकर्ता का काम कर रहे हैं. राजनीति का स्वरूप बदल रहा है. 25 करोड़ हो जाने पर इस बदलाव में तेजी आयेगी. कैसा लोकतंत्र बनाना चाहते हैं हमारे नेता? क्या कभी इस बात का सोशल ऑडिट होगा कि सांसद-विधायक फंड आने के बाद राजनीति के चाल, चरित्र व चेहरे में किस तरह का परिवर्तन हुआ है ?
गांवों में तालाब : बिहार सरकार ने हर गांव में एक तालाब खोदने का सराहनीय फैसला किया है. यदि यह काम सफलतापूर्वक कर दिया गया तो आने वाली पीढि़यां इस सरकार को याद करेगी. पर कुछ भ्रष्ट अफसरों और लुटेरे ठेकेदारों को आने वाली पीढि़यों की कोई चिंता नहीं होती. इसीलिए गांवों की अधिकतर विकास और कल्याण योजनाएं भी विफल ही साबित होती हैं, जबकि इस विकासशील देश के गांवों में विकास और कल्याणकारी योजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित करने की अधिक जरूरत है. भूजल पुनर्भरण के लिए बड़े पैमाने पर कुएं खुदवाने का सुझाव भी मौजूं है. मौजूदा उपेक्षित कुओं की उड़ाही का काम भी युद्धस्तर पर होना चाहिए. जिस तरह परीक्षा में कदाचार पर रोक और शराबबंदी लागू करने के लिए राज्य सरकार गंभीर है, उसी तरह कुओं और तालाबों के मामले में भी अलग से ध्यान देने की जरूरत है.
वेल का मतलब कुआं है तो अच्छा भी!
अंगरेजी के शब्द वेल का मतलब होता है अच्छा. वेल का मतलब कुआं भी होता है. यानी जो कुआं है वह वेल है. जो वेल है, वह कुआं है. यानी कुआं अच्छा है.
आधुनिक जलापूर्ति योजनाओं के आने से पहले कुआं का इतना अधिक महत्व था कि अंगरेजों ने इसका नाम वेल रखा. हमने इस अच्छे के साथ अत्यंत खराब व्यवहार किया. कुओं और तालाबों की उपेक्षा से भी भूजल स्तर नीचे जा रहा है. कभी मेरा गांव जगलाल चौधरी के चुनाव क्षेत्र में पड़ता था।वे अक्सर गांव में जाते थे. जब उनसे लोग सिंचाई के लिए बोरिंग कराने की मांग करते थे तो वे साफ मना कर देते थे. उनका तर्क था कि इससे भूजल स्तर नीचे चला जायेगा. इसलिए नदी, कुआं और तालाब के पानी से ही खेतों की सिंचाई होनी चाहिए.लोगों ने ऐसे गांधीवादी नेताओं की बात नहीं सुनी. नतीजा सामने है.
और अंत में : 1948 के जीप आयात घोटाले के दोषियों को सजा मिल गयी होती तो 1987 में बोफोर्स घोटाला नहीं होता. बोफोर्स घोटाले की जांच को यदि तार्किक परिणति तक पहुंचा दिया गया होता, तो हेलीकॉप्टर घोटाला नहीं होता. अब इस घोटाले के कसूरवारों को सजा नहीं होगी तो आगे इससे भी बड़ा कोई और घोटाला होगा. जीप घोटाला 80 लाख रुपये का था. बोफोर्स कांड में 64 करोड़ रुपये की दलाली खायी गयी. खबर है कि हेलीकॉप्टर घोटाला 120 करोड़ रुपये का है.
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