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सम्मन में ही लग जाता है साल भर

पटना : दानापुर निवासी रीतू (परिवर्तित नाम) पिछले दो वर्षों से महिला आयोग का चक्कर लगा रही है. उसकी शादी के पांच साल हो गये हैं, पर ससुराल वाले उसे रखना नहीं चाहते हैं. इससे उसने ससुराल वालों के खिलाफ वर्ष 2014 में केस दर्ज कराया. रीतू पिछले तीन वर्षों से न्याय की गुहार लगा […]

पटना : दानापुर निवासी रीतू (परिवर्तित नाम) पिछले दो वर्षों से महिला आयोग का चक्कर लगा रही है. उसकी शादी के पांच साल हो गये हैं, पर ससुराल वाले उसे रखना नहीं चाहते हैं. इससे उसने ससुराल वालों के खिलाफ वर्ष 2014 में केस दर्ज कराया. रीतू पिछले तीन वर्षों से न्याय की गुहार लगा रही है. वह अकेली नहीं है, जो न्याय के लिए भटक रही है. खास बात यह है कि सम्मन देने में ही साल भर लग जाता है.
महिला आयोग में वर्ष 2013 से अब तक कुल 772 मामले लंबित हैं. इन मामलों में बस तारीख पर तारीख मिल रही है. कई मामलों में पीड़िता के नहीं आने पर उन मामलों को पेंडिंग में डाल दिया जाता है. जब पीड़िता आयोग पहुंच कर न्याय की मांग करती है, तो कह दिया जाता है कि आपका मामला स्वत: खारिज कर दिया गया है. आप दोबारा से आवेदन करें.
20 फीसदी मामले रह जाते हैं लंबित : वर्ष 2013 में महिला आयोग में कुल 3493 मामले दर्ज किये गये हैं. इनमें 2913 मामलों का निष्पादन तो साल भर में कर दिया गया, वहीं 578 मामलों के निबटारे में आयोग को चार वर्ष का समय लग गया. इसके बाद भी दो मामलों का निष्पादन अब तक नहीं हो पाया है.
इसी तरह 2014 में कुल 3275 मामले दर्ज किये गये. इनमें निष्पादित किये गये मामलों की संख्या 2738 रही. शेष 537 मामले ऐसे रहे, जिन पर कार्रवाई करने में आयोग को लगभग दो साल लग गये. वहीं 48 मामले अब भी लंबित हैं. वर्ष 2015 में कुल 3032 मामले दर्ज किये गये. इनमें 2310 मामले निष्पादित किये गये हैं.
शेष 722 मामले अब भी लंबित पड़े हैं.
क्या कहती हैं अध्यक्ष : महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा ने बताया कि आयोग के पास दर्ज मामलों में कार्रवाई की जाती है. कई बार पीड़िता दी गयी तारीख पर उपस्थित नहीं हो पाती है. इससे मामले में देर हो जाती है. इसके अलावा पीड़िता के आवेदन करने के कुछ दिनों बाद जब स्थिति ठीक होने लगती है, तो वह आयोग में रेस्पांस नहीं देती है. कई बार आयोग की ओर से पत्र भी भेजा जाता है, पर वह नहीं आती है. फिर कुछ सालों बाद वह आयोग में दिये उसी पुराने आवेदन पर मामले का निबटारा के लिए पहुंचती है. इससे उन मामलों के निष्पादन में देरी हो जाती है.
थाना समय पर नहीं पहुंचाता आवेदन
आयोग की मानें, तो आयोग के न्याय की प्रक्रिया के अनुसार पीड़िता के आवेदन पर प्रतिपक्ष को आयोग से आवेदन भेजा जाता है. इस प्रक्रिया के अंतर्गत कई बार छह माह से साल भर का समय लग जाता है. साथ ही थानाध्यक्ष को जब सूचना दी जाती है, तो वहां से से भी देर होती है.
पुलिस भी समय पर प्रतिपक्ष को सम्मन उपलब्ध नहीं कराती है. इससे पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता है. कई बार पीड़िता के द्वारा लगाये आरोप में प्रतिपक्षी दूसरे स्टेट में होते हैं. इससे उन्हें आयोग में उपस्थित होने में समय लग जाता है या कई मामलों में वे बाहर से आते ही नहीं हैं. ऐसे मामलों में भी समय लग जाता है.

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