पटना: शिक्षा मंत्री पीके शाही ने कहा कि राष्ट्रीय संगोष्ठी का जो विषय चुना गया है, उससे हम ज्यादा सहमत नहीं है. विकलांगों को मौलिक आवश्यकता की चीजों को अब तक उपलब्ध नहीं करा पाये तो राजनीतिक सहभागिता की बात करना कहां तक जायज है? ऐसा नहीं है कि भारत या राज्य सरकार ने विकलांगों के लिए बहुत काम किया है, लेकिन अब भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है.
इसके बाद ही विकलांगों को मुख्य धारा में जोड़ कर सार्वजनिक जीवन में सहभागिता की बात कर सकते हैं. श्री शाही शनिवार को सोसाइटी फॉर डिसेबिलीटी एंड रिहेबिलिटेशन स्टडीज द्वारा ‘भारत में राजनीतिक व सार्वजनिक जीवन में विकलांगों की सहभागिता’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन संबोधित कर रहे थे.
सरकार व समाज स्तर पर काम करना होगा
उन्होंने कहा कि विकलांगों को मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार व समाज को दोनों स्तर पर काम करना होगा, ताकि विकलांग लोग सामान्य जीवन जी सकें. उन्होंने कहा कि विकलांगों की समस्या को दूर करने के लिए एक्ट बनाया गया है.
एक्ट के सही क्रियान्वयन के लिए डिसेबिलीटी कमीशन का पद है, लेकिन कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उस पद पर रहना नहीं चाहते हैं. यह सही है कि एक्ट में संशोधन करने की जरूरत है, लेकिन जो एक्ट बना है उसे भी सही से लागू नहीं किया गया है.
विकलांग छात्रों को दस हजार का मिलता है अनुदान
पंचायती राज मंत्री भीम सिंह ने कहा कि राज्य के पढ़ने वाले विकलांग छात्र-छात्राओं को दस हजार रुपये का अनुदान दिया जा रहा है. इसके साथ ही राज्य सरकार की ओर से विकलांग लोगों के लिए कई योजनाएं चल रही है. संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए स्टडीज के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ जीएन कर्ण ने कहा कि देश के 15 प्रतिशत विकलांगों को संसद व विधान सभाओं में जगह नहीं मिल रही है. हम किसी राजनीतिक पार्टी से भीख नहीं मांग रहे हैं. राजनीति में जगह दो, वरना वोट नहीं देंगे.
संगोष्ठी में आये अतिथियों का स्वागत राज्य संयोजक डॉ पीएन लाभ ने किया. इस मौके पर खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्याम रजक, पूर्व न्यायाधीश राजेंद्र प्रसाद, नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति विश्वनाथ अग्रवाल, पूर्व सांसद आलोक मेहता, विधायक अरुण कुमार सिन्हा के साथ साथ अजय कुमार कर्ण, संजय कुमार, दीपक कुमार और संध्या कुमारी आदि लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये.