इकॉनोिमक सर्वे. लगातार दसवीं बार सरकार करेगी पेश
ऐसे होती है तैयारी
अगस्त में सभी विभागों के नोडल अफसरों की बैठक होती है. अक्तूबर के अंत तक सितंबर तक के डाटा एकत्र किये जाते हैं. नवंबर महीने के अंत तक आंकड़ों को कंपाइल किया जाता है. जनवरी के मध्य तक ड्राफ्ट प्रकाशन की तैयारी की जाती है. जनवरी के अंत में विभागों से ड्राफ्ट के प्रारूप का फीडबैक लिया जाता है. फरवरी के मध्य में इकोनोमिक सर्वे कों अंतिम रूप दिया जाता है.
चल रहा सूचना युद्ध का दौर, बनना होगा स्मार्ट
पटना : सूचना प्रौद्योगिकी के मौजूदा युग में जहां बहुसंख्यक सूचनाएं बिखरी पड़ी हैं. इन सूचनाओं का दुरुपयोग अपराधी भी बड़े स्तर पर करते हैं. ऐसे में पुलिस के सामने ‘सूचना युद्ध’ जैसी स्थिति बन गयी है. इस तरह के अपराध करने वाले लोग बेहद पढ़े-लिखे स्मार्ट होते हैं. इसलिए पुलिस को ज्यादा स्मार्ट या स्मार्टर बनने की जरूरत है. ये बातें जाने-माने सोशल मीडिया एक्सपर्ट बालाजी वेंकटेश्वर ने कही. वे पुलिस सप्ताह के मौके पर विधान सभा एनेक्सी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पुलिस पदाधिकारियों को सोशल
मीडिया से जुड़े क्राइम पर शिकंजा कसने के टिप्स दिये. सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग के कारण अपराध के आयाम भी बदले हैं, ऐसे में पुलिस को अपने अनुसंधान के तौर-तरीके भी बदलने की जरूरत है.
वेंकटेश्वर ने कहा कि ऑनलाइन, ट्वीटर या फेसबुक आतंकवाद जैसे अपराधों में सामान्य अपराध की तरह ही ऑनलाइन फारेंसिक विकसित करने की जरूरत है] ताकि अपराध से जुड़े सभी तथ्य और सबूत जुटाये जा सकें. विभिन्न तरह के डाटा को एकत्र कर डाटाबेस तैयार करने की जरूरत है.
गूगल भी इंटरनेट पर मौजूद सभी जानकारियों में से एक फीसदी से भी कम जानकारी सर्च करता है. फेसबुक के अंदर क्या कंटेंट मौजूद है, इसे गूगल सर्च नहीं कर सकता है, क्योंकि ये कैपचा या पासवर्ड से सुरक्षित होते हैं. ऐसे में हमें इसके इतर अन्य उन्नत तरीकों और तकनीकों का सहारा लेना होगा, ताकि किसी
अपराध की स्थिति में इनके अंदर से सूचनाएं निकाली जा सकें. इसके लिए रियल टाइम फारेंसिक जैसी तकनीकों की ट्रेनिंग पुलिस पदाधिकारियों को देने की जरूरत है.
बालाजी सुब्रमन्यम ने बताया कि इन दिनों ड्रग्स, हथियार समेत अन्य निषेध वस्तुओं का अवैध व्यापार करने के लिए ऑनलाइन का सहारा लिया जाता है. ऐसी वेबसाइट बनायी जाती हैं, जिन्हें गूगल या अन्य किसी तरह के सर्च इंजन से सर्च नहीं किया जा सकता है. इनके लेन-देने में ‘बिटक्वाइन (डिजिटल मुद्रा)’ का उपयोग होता है. हाल में ‘सिल्क रूट’ नामक ऐसे ही एक वेबसाइट के नेटवर्क का पर्दाफाश किया गया है, जिसका उपयोग मादक पदार्थों के व्यापार में किया जाता था.