सेमिनार को उर्मिलेश, दिलीप मंडल, महेंद्र सुमन, श्रीकांत, पूर्व विधान पार्षद प्रेमकुमार मणि, शांति यादव, मृगांक शेखर, भरत मंडल एवं मनीष रंजन आदि वक्ताओं ने संबोधित किया. सब ने माना कि नयी सदी में शिक्षा और स्वास्थ्य–ये दो बुनियादी चीजें हैं, जिसको हाशिये पर खड़े समूह प्राप्त करें. यही उन्हें दुर्दिन से निकाल सकते हैं. इस मौके पर बागडोर द्वारा बिहार चुनाव पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका ‘सबॉल्टर्न’ के प्रवेशांक का संयुक्त रूप से विमोचन भी किया गया.
प्रो कांचा इलैया ने कहा कि ब्राह्मणवाद ने इस देश को हमेशा यथास्थितिवाद में फंसाये रखा. उन्होंने लोगों से पढ़ने, लिखने और लड़ने की अपील की. सिर्फ कहने से हिन्दुस्तान का विकास नहीं होगा. देश का विकास तभी होगा, जब हम अपने अंदर बुद्धस्तिान की सोच पैदा करेंगे. वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि अपने देश में कबीर से लेकर फूले और आंबेडकर आदि बहुजन नायकों के विचार और कर्म में जो चमक रही है, वह ब्राह्मण समाज से आनेवाले नायकों में नहीं रही. उन्होंने सवाल खड़े किये किये कि इस देश के विभिन्न सेक्टरों में बहुजन कहां हैं? क्लबों, सबसे बड़ी ठेकेदारी और एडवोकेट्स में हमारे लोग क्यों नहीं हैं? अगर हमारी महत्वाकांक्षाएं हमें असंतुष्ट नहीं बना रही, तो हमें इससे ज्यादा नहीं मिलेगा.
उन्होंने कहा कि नेशन और नॉलेज को हमें क्लेम करना होगा कि यह हमारा है इसके असली बारिश हम हैं. रोहित बेमुला की चर्चा करते हुए उन्होंने सवाल खड़े किये कि रोहित का सवाल दलित और पिछड़े का ही सवाल क्यों है? जबकि निर्भया के सवाल पर पूरा राष्ट्र खड़ा हो जाता है, आखिर यह कैसा राष्ट्र है? समारोह की अध्यक्षता इतिहासकार ओपी जायसवाल ने की और संचालन संतोष यादव ने. धन्यवाद ज्ञापन राकेश यादव ने किया. कार्यक्रम के अंत में रोहित बेमुला की स्मृति में दो मिनट की संकल्प सभा की गई.