पटना: बिहार विधानसभा के स्थापना दिवस समारोह सह बिहार विधानमंडल के सदस्यों के प्रबोधन कार्यक्रम में स्पीकर विजय कुमार चौधरी ने कहा कि प्रजातंत्र की आत्मा विधायिका में ही निवास करती है. सबकी अपेक्षाएं बढ़ी होती रहती हैं और लोगों का जो फैसला होता है प्रजातंत्र में उसका बड़ा स्थान होता है.
कानून को लागू करने और उसकी व्याख्या करने के लिए न्यूनतम योग्यता तो होती है, लेकिन कानून को बनाने के लिए न्यूनतम योग्यता नहीं होती. यही प्रजातंत्र का सबसे बड़ा सम्मान है. जनता हमें चुनती है और इसी विश्वास से हम काम करते हैं. विजय चौधरी ने कहा कि गुजरात के अहमदाबाद में पिछले महीने एक सभा हुई थी. इसमें ‘आम लोगों में प्रतिनिधिजन संस्थाओं की गिरती साख व विधायकों की भूमिका’ और ‘सदन में सदस्यों की उपस्थिति या कम-से-कम कितनी बैठकें हो’ विषय पर चर्चा की गयी थी. इसपर हम लोग मिल जुल कर सुधार ला सकते हैं.
जनता का जो विश्वास है वह सदन में आगे बढ़े और लक्ष्य को पूरा कर सकें. उन्होंने कहा कि कुछ विधायकों को आवास नहीं मिल सका है, जबकि कुछ को आवास मिला है, वह रहने लायक नहीं है. सरकार आर ब्लॉक, दारोगा राय पथ, बहादुरपुर परिसर में नागरिक सुविधा देने की आवश्यकता है. विधायकों की परेशानी से हम सब वाकिफ हैं, उसे दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. थोड़े दिन और झेलना होंगे, आगे रास्ता निकाला जायेगा. स्पीकर ने बिहार विधानसभा के इतिहास की भी चर्चा की.
मुख्यमंत्री को राजनीतिक गुरु के रूप में देखते हैं : तेजस्वी
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि विधायकों के प्रबोधन के लिए वह पहले से ही एक्साइटेड थे. उनके जैसे नौजवान और पहली बार जीत कर आये विधायकों के सीखने का बड़ा मौका है. हममें सीखने की भूख होनी चाहिए. अवसर का लाभ उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम सभी लोगों से ज्ञान प्राप्त करेंगे और सीखेंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तो वे अपने राजनीतिक गुरु के तौर पर देखते हैं. नीतीश कुमार जैसी गवर्निंग चला रहे हैं, उससे हम सभी को सीखना चाहिए. सारी अच्छी चीजें हैं. हमें तय करना है कि हम क्या सीखें? नयी सरकार है. हमलोगों का जो आचरण होगा, वही जनता तक जायेगा. विस के बाहर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि बिहार में अपराधियों का मनोबल नहीं बढ़ रहा है. सरकार अपराधियों की गिरफ्तारी के साथ-साथ उनके घरों की कुर्की जब्ती भी कर रही हैै, तो मनोबल कैसे बढ़ रहा है. विपक्ष खाली पीछे से हवा देने का काम कर रहा है. अगर इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा उपाय है, तो बताएं.
झलकियां
01 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि वे और पूर्व मंत्री व राजद नेता जगदानंद सिंह अगल-बगल में रहते थे. हम दोनों रिक्शा से सदन की कार्यवाही में भाग लेने आते थे. एक दिन वे भाड़ा देते थे और एक दिन हम. सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले हम दोनों पहुंच जाते थे और सदन की कार्यवाही के बाद फिर रिक्शा से ही लौट जाया करते थे.
02 मुख्यमंत्री ने कहा कि वे लोकदल में थे और स्पीकर विजय चौधरी उस समय कांग्रेस में थे. हमलोग युवा थे. उस समय जनहित के मुद्दों को दूसरे दलों के सदस्य भी समर्थन करते थे. अगर हम जनहित से जुड़ा सवाल करते तो सभी युवा नेता दल से उपर उठकर उसका समर्थन करते थे. तब सरकार भी उस पर सोचने को मजबूर होती थी.
03 सीएम ने कहा कि सदन में रुलिंग, अपोजिशन व स्पीकर पार्टी होती है. स्पीकर के पास जो लोग ज्यादा बैठते हैं उन्हें स्पीकर पार्टी कहा जाता है, ताकि वे उन्हें पहचान सकें व बोलने का ज्यादा मौका दें. मुझे मौका मिलता गया अौर मैंने उसका फायदा उठाया और लोकसभा तक पहुंचा. जब लोकसभा में थे तो सुबह ही पहुंच जाते थे. वहां प्रश्नों का जवाब सीधे पटल पर रख दिया जाता था. पहले ही जवाब पढ़ना पड़ता था, ताकि उसके पूरक प्रश्न पूछे जा सकते.
सत्रों में विधानमंडल का कार्य दिवस बढ़े : प्रेम
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि जनता का विश्वास लेकर विधायक आते हैं. इनसे लोगों की अपेक्षा होती है कि वे जनसमस्याओं पर सरकार का ध्यान दिलायेंगे. इसके लिए कार्य संचालन नियमावली को पढ़ना जरूरी है. तभी समस्याओं को उठाने में आसानी होगी. प्रेम कुमार ने सरकार से सत्रों में विधानमंडल के कार्यदिवस बढ़ाने का सुझाव भी दिया. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में समस्याएं बहुत होती हैं. सभी लोग अपने-अपने क्षेत्र की समस्या नहीं उठा सकते हैं. शून्यकाल में भी 15 की जगह ज्यादा सदस्यों को मौका दिया जाये. सदन में सरकार की जो कमियां उसे उजाकर करें, ताकि उन कमियों को दूर किया जा सके.
जनप्रतिनिधियों के आचरण पर जनता की पैनी नजर : अवधेश
बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि बिहार में सदन की सबसे ज्यादा बैठकें होती हैं. इसका पता अहमदाबाद में आयोजित सम्मेलन में चला है, जहां सभी राज्यों के विधानसभा व विधान परिषद के प्रतिनिधि आये हुए थे. सदन में आये नये लोगों के संसदीय कार्यप्रणाली के बारे में सीखना पड़ता है. जनप्रतिनिधियों के आचरण, बोल-चाल, रहन-सहन पर जनता की पैनी नजर होती है. इसलिए उन्हें अपने संसदीय जीवन में कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है. उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों की क्षेत्र ही नहीं, राज्य के प्रति भी जिम्मेदारी भी दो गुनी हो जाती है.
सदन में सदस्यों की उपस्थिति बरकरार रहनी चाहिए. खास कर दूसरी पाली में भी सदस्य सदन की कार्यवाही में हमेशा भाग लें. प्रश्नकाल जो होता है वह विधायकों का होता है. इसमें जो काम छह महीने में होना होता है, वह तुरंत हो जाता है. किसी भी सदन का सदस्य होना गौरव की बात है, जिस सदन के सदस्य होते हैं अपने आचरण से उसकी गरिमा बढ़ानी चाहिए.