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जब जागो, तभी सवेरा में दिखी किसानों की दुर्दशा

जब जागो, तभी सवेरा में दिखी किसानों की दुर्दशालोक पंच की दो दिवसीय प्रस्तुति में आज देखें ‘तू छुपी है कहां’ स्थान कालिदास रंगालय में 6.30 बजेलाइफ रिपोर्टर.पटनाखेती अब किसानों के लिए आजीविका चलाने लायक रोजगार नहीं रहा. कृषि लागत बढ़ गयी है. देशी बीज पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है. सरकार द्वारा किसी प्रकार […]

जब जागो, तभी सवेरा में दिखी किसानों की दुर्दशालोक पंच की दो दिवसीय प्रस्तुति में आज देखें ‘तू छुपी है कहां’ स्थान कालिदास रंगालय में 6.30 बजेलाइफ रिपोर्टर.पटनाखेती अब किसानों के लिए आजीविका चलाने लायक रोजगार नहीं रहा. कृषि लागत बढ़ गयी है. देशी बीज पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है. सरकार द्वारा किसी प्रकार की सब्सिडी या अन्य सुविधाएं विश्व व्यापार संगठन के दबाव के तहत या तो बंद कर दी गयी है या कम की जा रही हैं. हताश-निराश किसान खेती को छोड़ कर जीविका के अन्य साधनों की तलाश में हैं. एक कृषि प्रधान देश के लिए इससे बढ़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि उसके यहां किसानों को उसका सम्मान नहीं मिल रहा. बाजारवाद किस प्रकार किसानों पर हावी हो गया है. बाजार भी किसानों को बहलाने में लगा है. बड़ी-बड़ी कंपनियां किस प्रकार खेतों पर अपना राज कायम कर रही है और किसानों की दुर्दशा को बढ़ावा दे रही हैं. किसानों की ऐसी ही समस्याएं, उनके दर्द पहली बार किसी मंच पर देखने को मिले. रविवार को कालिदास रंगालय में लोक पंच की दो दिवसीय प्रस्तुति के पहले दिन नाटक ‘जब जागे तभी सवेरा’ के मंचन में इन्हीं बातों को दिखाने का प्रयास किया गया. लेखक इश्तियाक अहमद और मनीष महिवाल के निर्देशन में यह नाटक किसान की वर्तमान स्थिति पर चोट करता है. संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से इस नाटक के जरिये लोगों को पहली बार मंच पर किसान की दुर्दशा देखने का मौका मिला. बिल्कुल खाटी ग्रामीण भाषा में लिखित नाटक दर्शकों को खूब पसंद आया. इसमें एक जिन्न के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया कि किसानों को कंपनियों के एजेंट कैसे बेवकूफ बना रहे हैं और कह रहे हैं कि फलां बीज लगायें तो पैदावार पांच गुना होगा. गरीबी की मार झेल रहे किसान उनके झांसे में आ जाते हैं. मशीनों और रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल से जमीन बंजर हो जाती है और खेती के अलाभकारी होने के कारण किसान उदासीन हो जाते हैं. किसान लोभ में आकर अधिक पैसे कमाने के चक्कर में परंपरागत खेती को छोड़ कर नकदी खेती करनी शुरू कर देते हैं. किसान का लोभ दुगना हो जाता है. बाजार में निरवंश बीज और महंगे उत्पादक समान से कृषि लागत कई गुना बढ़ गयी है. फसल होने के बाद बाजार में समर्थन मूल्यों का अभाव एवं घर में सामाजिक सुरक्षा के अभाव में जी रहे किसान के ऊपर बैंक वालों व महाजन ने कृषि ऋण वापसी के लिए जब शिकंजा कसना शुरू किया, तो बेचारे गरीब किसान को आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा मार्ग दिखायी नहीं दिया और किसान आत्महत्या कर लेता है. नाटक के माध्यम से यही दिखाने का प्रयास किया गया है कि आज भी किसानों की आत्महत्या जारी है. यदि समय रहते किसानों की समस्याओं का निदान नहीं किया गया तो देखते ही देखते खेती से लोगों का मन उचट जायेगा. जिसका सीधा असर देश की उत्पादन क्षमता पर पड़ेगा. नाटक के बारे में किशन एक मेहनती किसान है, जो अपनी पत्नी धनिया के साथ मिलकर कुदरती खेती करता है. अपने बनाये खाद और कीटनाशक के इस्तेमाल से उसकी खेती किसानी मजे में चल रही है. एक दिन जुताई के समय उसे एक चिराग मिलता है, जिससे जिन्न निकलता है. वह किशन को जादुई बीज की एक पोटली देता है और समझाता है कि अगर वह जिन्न के बताये तरीके से खेती करेगा तो जल्द ही एक धनी और प्रगतिशील किसान बन जायेगा. जिन्न दबाव बनाकर किशन को रासायनिक खाद, कीटनाशक और खर्चीली मशीनों की मदद से खेती करने के लिए तैयार कर लेता है. धनिया के बार-बार मना करने के बावजूद किशन जिन्न के बताये तरीके से खेती करता है. इसके बाद ‘जियो हो किसान के लाला…जिया तू हजार साला, जरी नाची गायी अपन बैल बेच के खेत गिरमी रख कर, कर्जा पैचा लेकर अपन मान बढ़ावा हो किसान भैया…’ गीत के माध्यम से गांव के लोग उसे चिढ़ाते हैं. इसके बाद किसाने कर्ज के मारे आत्महत्या कर लेता है.

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