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मैं तो ढूंढ रहा हूं एक इंसान, कहां है मेरा देश महान…

मैं तो ढूंढ रहा हूं एक इंसान, कहां है मेरा देश महान… लाइफ रिपोर्टर, पटनास्थान कालिदास रंगालय, समय शाम के सात बज कर 10 मिनट पर पर्दा उठता है. लाल रौशनी के साथ बचाओ-बचाओ की आवाज करता पथिक भागता है. वो पथिक स्वयं को समाज की बुराईयों से बचाता भाग रहा है और कुछ लोग […]

मैं तो ढूंढ रहा हूं एक इंसान, कहां है मेरा देश महान… लाइफ रिपोर्टर, पटनास्थान कालिदास रंगालय, समय शाम के सात बज कर 10 मिनट पर पर्दा उठता है. लाल रौशनी के साथ बचाओ-बचाओ की आवाज करता पथिक भागता है. वो पथिक स्वयं को समाज की बुराईयों से बचाता भाग रहा है और कुछ लोग उसका पीछा कर रहे हैं. इसके बाद लोग उसे मारते हैं. तभी पथिक मार्मिक हो कर कहता है ‘ना ही मैं चोर हूं, ना ही मैं पॉकेटमार, पागल मुझको न समझो, छोड़ आया घर-बार. कोई मांगे धन-दौलत कोई मांगे सम्मान…, मैं तो ढूंढ रहा हूं एक इंसान, कहां है मेरा हिस्तुस्तान, कहां है मेरा देश महान…,’ वो पथिक जनसंख्या के इस विशाल समूह में एक सच्चे इंसान की तलाश में है जो उसे कहीं नहीं दिख रहा है. इसी क्रम में क्रमश: एक कामी प्रवृत्ति वाले मनुष्य, क्रोध, घृणा, लोभ जैसी बुराईयों को दर्शाने वाले लोग आते हैं और अपने कुकृत्य से संपूर्ण मानव सभ्याता को शर्मिंदा कर देते हैं. और उसके पीछे -पीछे कुछ लोग उसे मारने के लिए दौड़ते हैं. यह दृश्य देखर कर दर्शक भी कुछ देर के लिए अवाक रह जाते हैं. इस तरह के कई मार्मिक दृश्य के साथ सोमवार को सुरांगन संगीत नृत्य एवं नाट्य संस्थान द्वारा नृत्य नाटिका ‘शांति की चाह बुद्ध की राह’ की प्रस्तुति हुई. विश्वबंधु द्वारा लिखित इस नृत्य नाटिका का निर्देशन जीतेंद्र कुमार ने काफी बेहतर तरिके से किया. यह नाटक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार नयी दिल्ली द्वारा वित्तपोषित थी. पथिक के रूप में काफी ही बेहतर भूमिका खुद निर्देशक जीतेंद्र कुमार ने निभायी. वहीं नाटक में कई समाज पर हो रहे विभिन्न प्रकार के अत्याचार को दिखाते हुए पथिक कहता है ‘आदमी तू कैसा हो गया, तेरा सद्गुण ज्ञान ध्यान आज कहां खो गया, बालात्कार, हत्या, वंचकता ये कैसा जुनुन, अरे दरिंदा बन कर तू पीता मानव का खून. वहीं पथिक ‘अमन की प्यासी धरती को दो बुद्धदेव का अमर प्याम. सत्य अहिंसा के साये में, पायेगी दुनिया विश्राम.’ इसी संदेश के साथ करीब 50 मिटन तक चलने वाले नृत्य नाटिका का समापन होता है.

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