दिल्ली से आये लोगों ने पटना को और भी किया समृद्धसोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पटना बैंकिंग और व्यापार के केंद्र के तौर पर स्थापित हो चुका था और साथ ही साथ ही यह ज्ञान और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र भी बन रहा था. यह वह वक्त था, जब बिहार के सूबेदार सैफ खान (1628-1632) ने यहां एक मदरसे की नींव रखी थी जो आगे चल कर अरबी तालीम का बड़ा केंद्र बना. बाद के दिनों में नवाब जैनुद्दीन अहमद खान ने एक विशाल लाइब्रेरी बनवाकर इसे और भी समृद्ध किया. इस मदरसे से अठारहवीं सदी के नामचीन विद्वान मौलाना सैयद कमालुद्दीन, मिर्ज़ा युसूफ ज़रीफ़, शेखपुरा के मोहम्मद नसीर, पटना के मोहम्मद अब्दुलाह इत्यादि जुड़े. उन्हीं दिनों और भी कई मशहूर खानकाहों, ख़ानक़ाह शाह बक़र हज़ीं, शाह अर्जन का ख़ानक़ाह, ख़ानक़ाह मंगल तालाब इत्यादि का निर्माण हुआ. फुलवारीशरीफ के ख़ानक़ाह ने भी नवाबों और कद्रदानों से मिले दान से अपने को समृद्ध किया. इस ख़ानक़ाह को शाह मोहम्मद मखदूम, उनकी बीबी वलियाह और इनके बेटे शाह अयातल्लाह जौहरी जैसे सूफी फकीर और विद्वानों ने मशहूर बनाया. इन मदरसों और सूफी खानकाहों ने इस्लामिक अध्ययन और साहित्यिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिसने आगे चल कर अठारहवीं सदी के कई लेखकों, शायरों और कवियों पर अपना प्रभाव डाला. अठारहवीं सदी के मध्य में पटना का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन और भी समृद्ध हो गया, जब दिल्ली में औरंगजेब के वंशजों में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष से गृहयुद्ध के हालात उत्पन्न हो जाने से बड़ी संख्या में कुलीन परिवारों, व्यापारियों, कवियों, शायरों, कलाकारों, सैनिकों और सूफी संतों ने पटना को अपना ठिकाना बनाया.अपनी पुस्तक ‘मर्चेंट्स, पॉलिटिक्स, एंड सोसाइटी इन अर्ली मॉडर्न इंडिया: बिहार, 1733-1820’ में कुमकुम चटर्जी लिखती हैं, ‘पटना में ऐसे लोग बड़ी संख्या में आये. ऐसे ही लोगों में मशहूर सूफी शायर मीर बक़र हज़ीं, सूफी फ़क़ीर रुकनुद्दीन इश्क़, मोहम्मद अली फिदवी, मोहम्मद ज़फर खान राग़िब थे. इसके साथ ही उन्हीं दिनों सिताब राय जैसे रईस और उन्नीसवीं सदी के मशहूर शायर शाद अज़ीमाबादी का परिवार भी मुग़लों की राजधानी दिल्ली को छोड़ पटना आ बसा था.’ कुमकुम चटर्जी ने आगे लिखा है, ‘जो कलाकार दिल्ली से विस्थापित होकर पटना आये थे, उन्होंने स्थानीय चित्रकला की एक शैली ‘पटना कलम’ को जन्म दिया.’ पटना सिटी के पूरब दरवाजा मोहल्ला को इन कुलीन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया. यह पूरा इलाका उनकी वजह से दिल्ली के किसी मोहल्ले की तरह दिखने लगा था. इन आप्रवासियों, जिनमें कवि, शायर, कलाकार, लेखक और रईस थे – दरबार उन्मुख संस्कृति से पटना को परिचित करवाया. इन लोगों ने यहां की उर्दू- फारसी साहित्यिक परंपरा को और भी समृद्ध किया. ———————– पटना 1830 —- चार्ल्स डी’ऑयली ( संलग्न तस्वीर )
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दल्लिी से आये लोगों ने पटना को और भी किया समृद्ध
दिल्ली से आये लोगों ने पटना को और भी किया समृद्धसोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पटना बैंकिंग और व्यापार के केंद्र के तौर पर स्थापित हो चुका था और साथ ही साथ ही यह ज्ञान और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र भी बन रहा था. यह वह वक्त था, जब बिहार के सूबेदार सैफ खान (1628-1632) […]
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