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शैलेंद्र कुमार मश्रि को मिला भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मान

शैलेंद्र कुमार मिश्र को मिला भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मानलाइफ रिपोर्टर पटनाबहे पूर्वा बसंती बयार…, नैना से नैना मिले…, जैसे गानों पर बच्चों की प्रस्तुति देखने को मिली कालिदास रंगालय में. यहां गुरुवार को भिखारी ठाकुर नाट्य विद्यालय द्वारा सांस्कृतिक योद्धा भिखारी ठाकुर स्मृति समारोह का आयोजन किया गया. इस खास अवसर पर संस्था की छात्राओं […]

शैलेंद्र कुमार मिश्र को मिला भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मानलाइफ रिपोर्टर पटनाबहे पूर्वा बसंती बयार…, नैना से नैना मिले…, जैसे गानों पर बच्चों की प्रस्तुति देखने को मिली कालिदास रंगालय में. यहां गुरुवार को भिखारी ठाकुर नाट्य विद्यालय द्वारा सांस्कृतिक योद्धा भिखारी ठाकुर स्मृति समारोह का आयोजन किया गया. इस खास अवसर पर संस्था की छात्राओं ने कई सूहाने गीतों पर समूह नृत्य पेश कर दर्शकों का दिल जीत लिया. मंच पर छोटी-छोटी बच्चियां रंग-बिरंगे कपड़ों में सज-धज कर तैयार थी. सभी छात्राएं मिट्टी से जुड़े लोक नृत्यों को प्रस्तुत कर रही थी. इस कार्यक्रम की शुरुआत भिखारी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यांकन कर किया गया. इस दौरान रामदास राही की पुस्तक भिखारी ठाकुर की भक्ति भावना में लोग मंगल का आयाम का विमोचन किया गया.मिला भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मानइस सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान बलिया के चर्चित लोक गायक शैलेंद्र कुमार मिश्र को भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मान दे कर सम्मानित किया गया. ऐसे में इस शुभ अवसर पर शैलेंद्र कुमार ने लोगों को अपनी सुरीला आवाज को सुनाते हुए परम्परागत लोक गीतों को प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया. यहां उन्होंने बिदेसिया नाटक के गीतों को प्रस्तुत किया. इसमें उन्होंने पिया मोर गईले रे मोरिस देसवा…, जुग एगो बीतल रे सखिया…, छूटी गईले बाबा के नगरिया तोसे का रे कहूं…जैसे कई गीतों को गा कर भरपूर तालियां बटोरी. इस कार्यक्रम के दौरान रंगयात्रा नाट्य प्रस्तुति ब्रिटिश औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध गिरमिटिया मजदूरों की संघर्षगाथा भिनुसार नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक के लेखक व निर्देशक हरिवंश हैं. मौके पर कई वरीय कलाकार मौजूद थे. नाटक के बारे मेंयह नाटक लोक नाट्य विद्या पर आधारित है, जिसमें गिरमिटिया मजदूरों और भारत में छूट गये उनके परिजनों की संघर्ष गाथायें सामांतर चलती है. यह नाटक बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन इलाकों से गये भूमिहीन-गरीब लोगों, खेतिहर मजदूरों, हलवाहों, चरवाहों की कहानी है, जहां गन्ने की खेथी होती थी. ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश हुक्मरानों द्वारा छल-कपट से सोने का लालच दे कर इन मजदूरों को मॉरिशस, फिजी, दक्षिण-पूर्वी अफ्रीकी देशों के अलावा सूरीनाम, गियाना, त्रिनिदार, जैसे कई औपनिवेशक देशों में ले जाया गया है. ये मजदूर पिछड़ी और दलित जाती से आते थे. ऐसे दरिद्र और अभागे लोगों को देश से बाहर ले जा कर अन्तरहीन सा लगने वाले नारकीय हालत में मरने खपने के लिए मजबूर कर दिया गया था. उधर उनकी राह देखती औरतें भूख और उदासी की जिंदगी जीती थी. इसमें जुल्म और प्राकृतिक आपदाओं की कहानी दिखायी गयी है. नाटक को देखते हुए दर्शक खो गये थे. नाटक में दिखाये जा रहे कई दृश्य लोगों को भावुक कर रही थी. इसमें सभी कलाकारों ने अपनी कला का प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीत लिया.

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