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महाचंद्र सिंह की विधान परिषद् की सदस्यता खत्म
पटना : बिहार विधान परिषद् के सदस्य और जदयू के बागी महाचंद्र प्रसाद सिंह की सदस्यता खत्म कर दी गयी है. उन्हें दल विरोधी काम करने का दोषी पाया गया है. विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने बुधवार को सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. महाचंद्र प्रसाद सिंह के खिलाफ दल विरोधी काम […]
पटना : बिहार विधान परिषद् के सदस्य और जदयू के बागी महाचंद्र प्रसाद सिंह की सदस्यता खत्म कर दी गयी है. उन्हें दल विरोधी काम करने का दोषी पाया गया है. विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने बुधवार को सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. महाचंद्र प्रसाद सिंह के खिलाफ दल विरोधी काम करने की शिकायत सदन में जदयू के मुख्य सचेतक संजय कुमार सिंह उर्फ गांधी जी ने की थी.
महाचंद्र प्रसाद सिंह जदयू में रहते हुए हिंदुस्तानी अवाम मोरचा के टिकट पर हथुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे. इसी आधार पर पार्टी ने उनकी विधान परिषद की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी. इससे पहले भी पूर्व मंत्री महाचंद्र प्रसादसिंह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के खेमे में आ गये थे और हिंदुस्तानी अवाम मोरचा सेकुलर के गठन में उनका अहम योगदान था. महाचंद्र प्रसाद सिंह के साथ-साथ पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी, विधान पार्षद शिव प्रसन्न यादव व मंजर आलम दल विरोधी कार्य मामले पर सभापति कोर्ट में सुनवाई चल रही है. पांच िदसंबर को फैसला आयेगा.
सभापति कोर्ट का तुगलगी फरमान, हाइकोर्ट में देंगे चुनौती : महाचंद्र
बिहार विधान परिषद् से सदस्यता खत्म किये जाने के बाद पूर्व मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि यह फैसला तुगलकी ऑर्डर है. लड़ाई अभी बाकी है. इसके ऊपर कई स्टेजेज हैं.
सभापति कोर्ट के इस फैसले को पटना हाइकोर्ट में चुनौती देंगे. उच्च सदन में इस तरह का मौखिक निर्णय हो, यह चौकानेवाला है. इतिहास बदल दिया गया. शपथ खाते हैं कि राग-द्वेष से काम नहीं करेंगे, लेकिन कानून से परे काम हुआ. मैं अपनी कोई बात नहीं कह सका.
बिहार की जनता जदयू से पूछना चाहती है कि ललन सिंह ने 2010 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी, स्टार प्रचारक थे, पर क्या हुआ? अन्नू शुक्ला वैशाली से लोकसभा चुनाव लड़ीं और रेणु कुशवाहा के पति मधेपुरा से चुनाव लड़े थे. उनके अप्लीकेशन पर क्यों कार्रवाई नहीं हुई? उन्होंने कहा कि सभापति अवधेश नारायण सिंह ने जदयू के दवाब की वजह से भरे मन से यह निर्णय लिया होगा. यह निर्णय स्टेमेगमा हो गया संविधान पर. संविधान पर उंगली उठेगी कि किसी की बात सुने बगैर निर्णय सुना दिया गया.
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