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बच्चों की बेहतर प्रस्तुति से मिला बाल-विवाह रोकने का संदेश

बच्चों की बेहतर प्रस्तुति से मिला बाल-विवाह रोकने का संदेशपटनाआज मेरे यार की शादी है… अरेरे रूकिये, रूकिये किसी यार की शादी नहीं बल्कि यह नाटक का पहला दृश्य है और इसी गाने पर छोटे-छोटे बच्चे नाचते गाते अपने दोस्त की शादी में शामिल होने जा रहे हैं. इसके बाद छोटे-छोटे बच्चों की मनमोहक संवाद […]

बच्चों की बेहतर प्रस्तुति से मिला बाल-विवाह रोकने का संदेशपटनाआज मेरे यार की शादी है… अरेरे रूकिये, रूकिये किसी यार की शादी नहीं बल्कि यह नाटक का पहला दृश्य है और इसी गाने पर छोटे-छोटे बच्चे नाचते गाते अपने दोस्त की शादी में शामिल होने जा रहे हैं. इसके बाद छोटे-छोटे बच्चों की मनमोहक संवाद सभी दर्शकों को काफी गुदगुदाया. रंगीली की भुमिका में सुष्मिता कहती है कि ओ मेरे प्यारे रंगीले… ओ मेरे प्यारे रंगीले, न जाने कहां मर गया. तभी रंगीला का किरदार निभाने वाला सुदर्शन शर्मा कहता है कि क्या है रंगिली, तभी रंगीली कहती है – तू यहां क्यों आया? रंगीला – मैं यहां बाल-विवाह और साथ में तेरा नाच देखने आया हूं. तभी रंगीली कहती है- अरे रंगीले छैल छविले मारूंगी दो हाथ अगर करेगा हंसी, मंच पे फिर तू मेरे साथ. यह दृश्य सोमवार को प्रेमचंद रंगशाला में विनोद रस्तोगी लिखित व सुरेश कुमार हज्जु निर्देशित नाटक ‘पालकी पालना’ के मंचन का था. इंदिरा गांधी के पुण्य तिथि व जवाहर लाला नेहरू के जन्म तिथि पर 15 दिवसीय बाल नाट्य कार्यशाला चला है और इसी कार्याशाला की दूसरी कड़ी में यह नाटक का मंचन हुआ. बाल रंगमंच को जीवित रखने वाले सुरेश कुमार हज्जु द्वारा निर्देशित यह नाटक खूबसूरत कंपोजीशनों एवं मनोरंजन दृश्यों का एक पिटारा है. इसके खुलते ही बच्चों की अद्भूत प्रतिभा क्षमता एवं ऊर्जा बाहर निकल कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है. पालकी पालना नाटक आज हमारे समाज में लड़कियों, महिलाएं एक तरफ तो उन्नति की शिखर की ओर बढ़ रही है, परंतु दूसरा पहलू भी है जिसे नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता. भ्रूण हत्या, बाल-विवाह आदि ऐसी समस्याएं हैं जो आज भी हमारे समाज को जकड़े हुए हैं. नाटक इन्हीं समस्याओं में एक ‘बाल-विवाह’ को लेकर लिखी गयी है. बाल-विवाह जैसे कुरीति को अपने नाटक ‘पालकी-पालना’ में उजागर किया है. कहानी इस प्रकार कहानी एक बच्ची के इर्द-गिर्द घूमती है. बच्चों के माता-पिता अज्ञान वश उसकी शादी तय कर देते हैं. उस बच्ची की क्या भावनाएं हैं? इन सब बातों को यह नाटक स्पष्ट रूप से दर्शकों के सामने रखती है. अंत में नाटक के एक पात्र ‘नारद’ द्वारा बच्ची के पिता को समझाना कि बाल-विवाह से क्या-क्या समस्याएं पैदा हो सकती है. इसके बाद बच्ची के पिता के समझ में बात आती है और वो प्रतिज्ञा करता है कि उसे अपनी बच्ची को पढ़ाना है एवं आगे बढ़ाना है.

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