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एनडीए का 14 जिलों में नहीं खुला खाता
पटना : भाजपा और उसके सहयोगी दलों का 14 जिलों में खाता भी नहीं खुल सका. ये जिले हैं: शिवहर, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, मुंगेर, शेखपुरा, भोजपुर, बक्सर, जहानाबाद और अरवल. भाजपा कमोबेश नब्बे के दशक वाली स्थिति में लौट गयी. 1990 में उसे 39 सीटें हासिल हुई थीं और 1995 में […]
पटना : भाजपा और उसके सहयोगी दलों का 14 जिलों में खाता भी नहीं खुल सका. ये जिले हैं: शिवहर, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, मुंगेर, शेखपुरा, भोजपुर, बक्सर, जहानाबाद और अरवल. भाजपा कमोबेश नब्बे के दशक वाली स्थिति में लौट गयी.
1990 में उसे 39 सीटें हासिल हुई थीं और 1995 में 41. इस चुनाव में उसे 53 सीटों पर कामयाबी मिली. इस सदी के चार चुनावों में उसका इस बार सबसे खराब प्रदर्शन रहा. हालांकि उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है. 1980 से अब तक के विधानसभा चुनावों में उसे सब से अधिक वोट मिले हैं.
हम के प्रदेश अध्यक्ष शकुनी चौधरी और लोजपा के राज्य अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस को हार का सामना करना पड़ा. इस बार 14 नेता पुत्र चुनाव मैदान में थे. इनमें से केवल चार को जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना. इनमें लालू प्रसाद के दोनों बेटे तेज प्रताप व तेजस्वी, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी, भाजपा नेता गंगा प्रसाद के बेटे संजीव चौरसिया शामिल हैं. जिन बड़े नेताओं के बेटे हार गये, उनमें अश्विनी चौबे के बेटे अजिर्त शाश्वत, डॉ सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर व जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार शामिल हैं.
पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के दोनों पुत्र चुनाव हार गये. वाम दलों की एकता काम नहीं आयी. उसके सीटों की संख्या एक से बढ़ कर तीन हुईं. तीनों सीटें भाकपा-माले को मिली हैं. भाकपा ने अपनी सीट खोयी. वाम ब्लॉक में माले के अलावा भाकपा, माकपा, फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और एसयूसीआइ शामिल थी.
एमआइएम , जनाधिकार पार्टी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, बसपा का इस चुनाव में खाता भी न खुल सका. इस बार भी निर्दलीय चार पर सिमट गये. पिछले चुनाव में भी इनकी संख्या इतनी ही थी.
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