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महागंठबंधन के पक्ष में चल रही मजबूत अंतर्धारा

राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री और जद यू नेता विजय कुमार चौधरी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में महागंठबंधन के पक्ष में एक मजबूत अंतर्धारा चल रही है. महिलाओं ने वोट में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया, वह सीधा महागंठबंधन के पक्ष में गया है. उनसे मिथिलेश की बातचीत. महागंठबंधन के पक्ष में रूझान महागंठबंधन […]

राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री और जद यू नेता विजय कुमार चौधरी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में महागंठबंधन के पक्ष में एक मजबूत अंतर्धारा चल रही है. महिलाओं ने वोट में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया, वह सीधा महागंठबंधन के पक्ष में गया है. उनसे मिथिलेश की बातचीत.
महागंठबंधन के पक्ष में रूझान
महागंठबंधन चुनाव जीतेगा और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनेगी. दोनों चरणोें में मतदाताओं का रूझान महागंठबंधन के पक्ष में दिख रहा है. एनडीए के लोगों को भी इसका अहसास हो चुका है. जो सूचनाएं मिल रही हैं, उसके हिसाब से 81 सीटों पर हुए चुनाव में अधिकतर सीटें महागंठबंधन के पक्ष में गयी हैं. दो-तीन चीजें इस मायने में अभूतपूर्व है. पहला, नीतीश कुमार के नेतृत्व में समाज के हर वर्ग की अटूट आस्था है. यह सभी मानते हैं कि बिहार जैसे गरीब प्रदेश का विकास नीतीश कुमार जैसा व्यक्ति ही कर सकता है. यह विचार और भी मजबूत तब हो जाता है, जब पिछले 10 साल की उपलब्धि के मद्देनजर बातें नीचे तक गयीं. महागंठबंधन बनने के बाद तो इसका सामाजिक प्रभाव और भी बढ़ गया है. लालू प्रसाद के सामाजिक आधार ने भी महागंठबंधन के पक्ष में माहौल बनाया है.
पुरानी पार्टी होने के कारण कांग्रेस का समाज के सभी वगार्ें में प्रवेश है. उसके साथ आने से महागंठबंधन की मजबूती बढ़़ी है. इन सभी कारणों से चुनाव के दोनों चरणों के जो संकेत आ रहे हैं कि एक मजबूत अंतर्धारा महागंठबंधन के पक्ष में चल रही है. जदयू, राजद और कांग्रेस तीनों दलों के जमीनी कार्यकर्ताओं ने दिल से महागंठबंधन को स्वीकारा है. जिस प्रकार महिलाओं ने वोट में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया, वह सीधा महागंठबंधन के पक्ष में गया है. नीतीश कुमार ने महिला सशक्तीकरण के लिए जितने कार्य किये, उसका असर मतदान के दिन दिखा.
हमारा मुद्दा न्याय के साथ विकास
एनडीए के नेताओं द्वारा साजिश रची जा रही है. लेकिन, चुनाव न्याय के साथ विकास यानि सुशासन के साथ सामाजिक न्याय के आधार पर लड़ी जा रही है. नीतीश कुमार के सर्व स्वीकार्य नेतृत्व के पीछे अवधारणा यही है. इसलिए चुनाव में विकास के मुद्दे पर भाजपा का नेतृत्व दोमुंही बातें कर रहा है. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास की बात तो करते हैं, लेकिन, जब मुद्दा उठाते हैं तो जंगलराज का. कभी 1992 की चिट्ठी को उठाया जाता है . ऐसे में मतलब साफ है कि भाजपा और एनडीए चुनाव को विकास के मुद्दे से भटकाना चाहती है. हालांकि, बिहार के जनमानस पर इसका कोई प्रभाव नहीं है.
भाजपा के प्रचार तंत्र से मुकाबला
यह सही है कि भाजपा धुआंधार प्रचार कर रही है. प्रधानमंत्री से लेकर अधिकतर केंद्रीय मंत्री, भाजपा और आरएसएस के सहयोगी संगठन बिहार में आकर प्रचार में लगे हैं. हम यह स्वीकारते हैं कि संसाधनों के मामले में हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते. देश की कॉरपोरेट शक्तियां पूरी तरह उनके साथ हैं. हम इसे स्वाभाविक मानते हैं. कारण, बिहार का यह चुनाव सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी दिशा देनेवाला साबित होगा. संकेत आ रहे हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनना तय है. केंद्र की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. महागंठबंधन गरीबों की लड़ाई लड़ रहा है. लेकिन, महत्वपूर्ण यह है कि चुनाव में निर्णय जनता के समर्थन से होता है, न कि संसाधन की उपलब्धता से.
लालू और जाति
महागंठबंधन के प्रमुख सहयोगी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद पर जातिवाद का आरोप भाजपा का दुष्प्रचार है. हम तो लालू और उनकी पार्टी राजद के समर्थन से सरकार चला रहे हैं. अब तक सहयोगी की ओर से ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा है, जिसमें सिद्धांतों को तोड़ने की बात कही गयी हो. सबसे बड़ी बात यह कि आज लालू प्रसाद और कांग्रेस ने नीतीश कुमार के नेतृत्व की सराहना की है और मिल कर सुशासन के कार्यकलापों को मजबूती से चलाना चाहती है तो इसमें भाजपा को परेशानी क्यों हो रही है.
परिवारवाद कोई मुद्दा नहीं
परिवारवाद आम लोगों के बीच कोई मुद्दा नहीं है. भाजपा को परिवारवाद सिर्फ लालू प्रसाद के मामले में दिखता है, जबकि परिवारवाद की सबसे बड़ी पोषक तो लोजपा है. राजद से अधिक पारिवारिक रिश्ते लोजपा में हंै. लोजपा का परिवारवाद अच्छा और लालू का परिवारवाद खराब. इस तरह की दोमुंही बातें तो भाजपा ही कर सकती हैं. लेकिन, लोगों की नजर में इसकी कोई अहमियत नहीं है.
चुनाव परिणाम
संभावित चुनाव परिणाम से भाजपा में खलबली मची है. यह भाजपा का अंदरूनी मामला है. लेकिन, जिस तरह की बातें भाजपा के अंदरखाने से छन कर बाहर आ रही हैं, उसके मुताबिक प्रधानमंत्री और अमित शाह के तानाशाही रवैये पर चोट पड़ने वाली है. जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी सरकार, पार्टी व संगठन को चला रही है, उससे सांसद, मंत्री, कार्यकर्ता सभी त्रस्त और आहत हैं. वे सब अपनी आहत भावना को आवाज देने का अनुकूल समय और मौसम खोज रहे हैं. बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम उन्हें वह स्थिति उपलब्ध करायेगा.
यदि महागंठबंधन हारेगा तो
यह काल्पनिक सवाल है. चुनाव के नतीजे बतायेंगे कि हम हर हालत में चुनाव जीतेंगे. जनता का फैसला महागंठबंधन के पक्ष में आयेगा. हर हाल में महागंठबंधन की एकता कायम रहेगी.
सीटें किसको अिधक
यह तो चुनाव के नतीजे बतायेंगे कि किसे कम और किसे अधिक सीटें मिलेंगी. तीनों पार्टियों की मौलिक समझदारी है . इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा. चुनाव तीनों पार्टियों ने मिल कर लड़ा है.
असंतुष्टों का असर
असंतुष्टों की गतिविधियों से महागंठबंधन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. कोई नुकसान नहीं दिख रहा है. तीनों दलों ने सभी सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार दिये हैं. पार्टी छोड़ने वालों की संख्या काफी कम है. जो हर हाल में चुनाव ही लड़ना चाहते हैं, उन लोगों ने दल को छोड़ा.
महागंठबंधन जीतेगा, क्योंकि…
1. नीतीश कुमार के नेतृत्व में विश्वसनीयता.
2. महागंठबंधन के तीनों दलों की मजबूत सामाजिक स्थिति और जमीनी पकड़.
3. पिछड़े, अति पिछड़े, दलित, महादलित, सवर्ण, महिला एवं युवा की महागंठबंधन के प्रति एकजुटता
4. सात सूत्री नीतीश निश्चय, जिसमें हर गांव को बिजली, गली-टोलों तक साफ पानी, छात्रों को क्रेडिट कार्ड और महिलाओं को नौकरी में 35 प्रतिशत का आरक्षण का वायदा, को जबरदस्त प्रशंसा मिली.
5. तीनों दलों के जमीन कार्यकर्ताओं ने महागंठबंधन की अनिवार्यता को दिल से स्वीकार्य किया.

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