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निरर्थक होती सक्विल परंपरा

निरर्थक होती सिक्वल परंपराविनोद अनुपमहॉलीवुड में यदि सिक्वल बन रहे हैं, तो उसका एक सार्थक आधार तैयार किया जाता है. ऑस्कर को भले ही श्रेष्ठता का मापदंड हम न मानें, लेकिन ‘गॉडफादर-2’ का ऑस्कर से सम्मानित होना, वहां सिक्वल के प्रति गंभीरता को तो प्रदर्शित करता ही है. यहां ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी एक-दो फिल्मों […]

निरर्थक होती सिक्वल परंपराविनोद अनुपमहॉलीवुड में यदि सिक्वल बन रहे हैं, तो उसका एक सार्थक आधार तैयार किया जाता है. ऑस्कर को भले ही श्रेष्ठता का मापदंड हम न मानें, लेकिन ‘गॉडफादर-2’ का ऑस्कर से सम्मानित होना, वहां सिक्वल के प्रति गंभीरता को तो प्रदर्शित करता ही है. यहां ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी एक-दो फिल्मों को छोड़ दें, तो अधिकांश सिक्वल बस अपने ब्रांड के इस्तेमाल की भोंडी कोशिश के रुप में ही देखे जा सकते हैं. इस जादू पर हिंदी सिनेमा कितना आश्रित हो चुका है, यह इसी से समझा जा सकता है कि ‘प्यार का पंचनामा’ से लेकर ‘एम एस जी’ तक के सिक्वल आ गये. वर्ष के अंत तक ‘हेराफेरी-3’ और ‘हेट स्टोरी-3’ भी दर्शकों के सामने होंगे. हालांकि पहले सिक्वल की परंपरा इतनी अराजक नहीं हुई थी. ‘सरकार ’, ‘कोई मिल गया’ और ‘धूम’ के सिक्वल बन रहे थे, तो कहीं न कहीं कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश के साथ दर्शकों को कुछ नया कहने नया दिखाने की कोशिश भी हो रही थी, लेकिन समय के साथ यह अपने मूल अर्थ से भटक कर सिर्फ अपने ब्रांड के दोहन में लग गयी, तो ‘वेलकम बैक’ और ‘ए बी सी डी’ जैसी फिल्मों के भी सिक्वल आने लगे.महेश भट्ट ने 2004 में ‘मर्डर’ बनायी, ‘मर्डर-2’ के लिए निर्णय लेने में उन्हें सात साल का समय लग गया, जबकि ‘मर्डर-3’ बनाने में उन्होंने साल भर का भी समय नहीं लगाया. कतई आश्चर्य नहीं कि तीनों ही ‘मर्डर’ में कोई सरोकार ढूंढ़ना भी असंभव होता है. तीनों ही फिल्में एकदम स्वतंत्र फिल्म के रुप में दर्शकों के सामने आती हैं. ‘मर्डर’ ही नहीं, ‘जिस्म’, ‘गोलमाल’, ‘धमाल’, ‘जन्नत’, ‘राज’, ‘क्या कूल हैं हम’ जैसी दर्जनों फिल्मों के कई रिमेक के निहितार्थ को समझना कठिन हो जाता है. हालांकि यह भी एक अद्भुत सच्चाई है कि इनमें से अधिकांश फिल्में सफल ही नहीं रहीं, बल्कि सुपरहिट साबित हुई. वास्तव में यह ब्रांड का जादू है जो प्रोडक्ट के प्रति एक आश्वस्ति देता है. दर्शकों को अब सपरिवार एक फिल्म देखने के लिए एक हजार से ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जाहिर है वह पैसे वसूल होने की फुल गारंटी चाहता है जो उसे फिल्मों के ब्रांड बनते नाम से हासिल होते हैं. उसे पता होता है कि यदि ‘हेट स्टोरी’ के आवरण में फिल्म आ रही है तो क्या मिलेगा और ‘प्यार का पंचनामा’ के सीरिज में क्या मिलेगा.

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