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अपनी अस्तत्वि की लड़ाई लड़ती सकीना

अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ती सकीना लाइफ रिपोर्टर, पटनासकीना को न ही पति का प्यार का मिलता है और न ही सास ससुर का. वह हर दिन अपने ही घर में खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है. दो बच्चों की इस मां को बच्चे के लिए घर में दूध तक नसीब नहीं होता. सकीना […]

अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ती सकीना लाइफ रिपोर्टर, पटनासकीना को न ही पति का प्यार का मिलता है और न ही सास ससुर का. वह हर दिन अपने ही घर में खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है. दो बच्चों की इस मां को बच्चे के लिए घर में दूध तक नसीब नहीं होता. सकीना रहती तो हशमत की बीबी है, लेकिन उसे प्यार मौलाना से मिलने लगता हैै. मजहबी सकीना की यह कहानी कालिदास रंगालय की मंच पर देखने को मिली, जहां बुधवार को चतुर्थ राष्ट्रीय प्रयास नाट्य मेला 2015 के समापन समारोह के दिन शमोएल अहमद की कहानी ‘ऊंट’ पर आधारित नाटक ‘मजहबी सकीना’ का मंचन हुआ. मिथिलेश सिंह की परिकल्पना व निर्देशन में बेहतर मंचन और जीवंत दृश्यों ने दर्शकों का दिल जीत लिया. नाटक धर्म के नाम पर फैला पाखंड एवं आम आदमी के शोषण के विरुद्ध प्रोटेस्ट दर्ज करता है. इस नाटक में कई ऐसे दृश्य है, जो थोड़े बोल्ड हैैं, लेकिन इस दृश्य में भी सकीना के दर्द को दिखाया गया है, जिसे देखने के लिए इस थियेटर में बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद थी, जो हर दृथ्य पर अपनी नजर गड़ाये हुए थीं. इस मौके पर हॉल पूरा भरा हुआ था. दर्शकों ने नाटक के सभी पात्रों को सराहा और अपनी भरपूर तालियों से कलाकारों का हौंसला बढ़ाया. मंचीय नाटक के साथ यहां कवि सम्मेलन की भी प्रस्तुति हुई, जिसकी अध्यक्षता व संयोजन बांके बिहारी साव और ऋषिकेश पाठक ने की. समापन समारोह के अवसर पर धनंजय नारायण सिन्हा को महावीर सिंह आजाद अवार्ड एंव पुंज प्रकाश को आर के गोल्डी अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया. सकीना के इर्द-गिर्द घूमती हैै नाटकनाटक की कहानी सकीना के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे समाज चरित्रहीन समझता है. सकीना दो बच्चों की मां है. उसका निकाह हशमत नामक युवक से हो जाता है, जो शराबी और जुआरी है. अपनी मजबूरियों के वास्ते समाज की नजरों में वह बदकिरदार है. मुफलिसी में जी रही सकीना पर मौलवी इमाम बरकतुल्लाह वारसी की नजर पड़ती है. दोनों एक-दूसरे के करीब आते हैैं. दो वह उसकी मुफलिसी का फायदा उठाकर उससे नाजायज संबंध बना लेते हैं. ऐसे में एक दिन सकीना को एहसास होता है कि यह गलत है. उसे यह संबंध जायज नहीं लगता. वह इमाम से इमामत छोड़ने या फिर उसे छोड़ने की बात कहती है. इमाम को यह शर्त कबूल नहीं होती है. इसी शर्त से उपजी कलह दोनों के बीच दीवार खड़ी कर देती है. मौलाना बरकतुल्लाह वारसी रूप और लिबास से मजहबी थे, मगर सकीना लिवास से नहीं, दिल से मजहबी थी. तभी तो मरते दम तक मजहब की हिफाजत के वास्ते कुर्बान हो गयी.नाटक में इन्होंने किया अभिनयमौलाना की भूमिका में मनीष महिवाल, सकीना-प्रीती सिन्हा, मुल्लानी- बबली कुमारी, रहमत अली- उदय साहर, बेगम रहमत- रजनी शरण, हश्मत अली- सिद्ध‌ांत कुमार के साथ सभी कलाकारों ने अपने अभिनय से लोगों का दिला जीत लिया.

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