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कैसे हो उपचार, जब अस्पताल ही हों बीमार

कैसे हो उपचार, जब अस्पताल ही हों बीमार – मरीजों को नहीं मिलती राहत, जांच के लिए लगाने पड़ते हैं पैसे – बाहर से आनेवाले मरीजों को और ज्यादा होती है परेशानी संवाददाता, पटना बिहार के पीएचसी, अनुमंडलीय, रेफरल अस्पतालों में इलाज व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण मरीज मेडिकल कॉलेजों व शहरी अस्पतालों में […]

कैसे हो उपचार, जब अस्पताल ही हों बीमार – मरीजों को नहीं मिलती राहत, जांच के लिए लगाने पड़ते हैं पैसे – बाहर से आनेवाले मरीजों को और ज्यादा होती है परेशानी संवाददाता, पटना बिहार के पीएचसी, अनुमंडलीय, रेफरल अस्पतालों में इलाज व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण मरीज मेडिकल कॉलेजों व शहरी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं. लेकिन हकीकत यह भी है कि शहर के अस्पताल खुद बीमार हैं. बार-बार सरकारी घोषणाओं के बाद भी मरीजों को यहां सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. शहर के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी जांच बंद हैं. कुछ रेडियोलॉजी जांच भगवान भरोसे हैं. वहीं ऑटो एनालाइजर शायद ही किसी अस्पताल में ठीक से काम कर रहा हो. शहर के सरकारी अस्पतालों में कमियों पर एक रिपोर्ट : पीएमसीएच इमरजेंसी व वार्ड- मुख्य इमरजेंसी में बेड की नहीं है व्यवस्था – बेड पर न तो चादर और न ही रात में कोई देखने वाला- कई विभागों के यूनिट इंचार्ज को मरीजों की नहीं रहती जानकारी – यूनिट इंचार्ज के देखे बिना मरीज डिस्चार्ज या ऊपर चले जाते हैं – आपातकालीन व्यवस्था नहीं, अचानक घटना होने पर अफरातफरी – आइसीयू में भी बेड की कमी, मरीज बाहर पर डिपेंड – 110 की क्षमतावाली इमरजेंसी में रहते 250 मरीज – एमआरआइ नहीं होने से इमरजेंसी मरीजों को भी जाना पड़ता बाहर – सभी चिकित्सकों के पास बीपी मशीन तक नहीं शिशु विभाग – एनआइसीयू (न्यूनेटल इंटेनसिव केयर यूनिट ) : 20 बेड, पर बच्चों की संख्या 40 से अधिक, कम-से-कम 50 बेड होने चाहिए – ओपीडी : 200 के करीब हर दिन मरीज- शिशु मेडिकल इमरजेंसी : 35 से अधिक हर दिन मरीज- बेड की संख्या : 180, भरती बच्चों की संख्या 350 से अधिक- आइसीयू : महज 6 बेड, जरूरत 30 से अधिक बेड की – डॉक्टरों के बैठने की जगह नहीं – जहां डॉक्टर बैठते हैं, वहां पंखा ऐसा कि पसीना गिरना तय हैआइजीआइएमएस – एमआरआइ की सुविधा नहीं- मुख्य इमरजेंसी में महज 40 बेड, मरीजों की भीड़ काफी अधिक – ओपीडी में मरीजों को रजिस्ट्रेशन कराने में होती है परेशानी – कई विभागों में जांच की सुविधा नहीं – जो जांच परिसर में उपलब्ध, उसकी रिपोर्ट मिलने का समय तय नहीं – चिकित्सकों पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप, कई बार हुआ है खुलास – प्राइवेट प्रैक्टिस करने के कारण मरीजों को नहीं देते समय- इवनिंग राउंड नहीं होता, मरीज भगवान भरोसे – जेनरल वार्ड में गंदगी, परिसर में आता है बाहर का पानी – इमरजेंसी व ओपीडी में बाथरूम की सुविधा नहीं श्री गुरु गोविंद सिंह अस्पताल – अस्पताल का स्ट्रेचर व व्हील चेयर खराब – स्वीकृत बेड 394, वर्तमान में महज 127 बेड सही – अल्ट्रासाउंड मशीन बंद, आउट सोर्सिंग से चलनेवाली एक्सरे मशीन भी नियमित रूप से नहीं चलती – पैथोलॉजी में संसाधनों की कमी से केवल रूटीन जांच होती है – 25 चिकित्सकों व 38 पारा मेडिकल स्टॉफ में महज 20 चिकित्सक ही कार्यरत न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल – डॉक्टर तो पूरे लेकिन वे समय से नहीं आते – नर्स और चतुर्थवर्गीय स्टाफ की कमी – अल्ट्रासाउंड व एक्सरे के अलावा सभी पैथोलॉजी अधिकांश समय बंद, डिजिटल एक्सरे नहीं – पारा मेडिकल स्टाफ, ड्रेसर की कमी, कम-से-कम तीन की जरूरत – प्रसव की व्यवस्था, पर नहीं है ऐनेस्थेटिस – इमरजेंसी प्रसव की भी नहीं शुरू हुई व्यवस्था राजेंद्र नगर अस्पताल- डॉक्टरों का स्वीकृत पद 16, लेकिन कार्यरत आठ – नर्सों, कर्मचारियों के स्वीकृत पद 20 से अधिक, पर एक भी बहाली नहीं- इंडोर 50 बेड का होना है, पर अब तक 20 बेड का ही है- मरीजों को कई जांच अब भी बाहर से करानी पड़ती है – सुपरस्पेशियलिटी का दर्जा मिलने के बाद भी नहीं बढ़ी चिकित्सक व कर्मचारियों की संख्या राजवंशी नगर हॉस्पिटल – चिकित्सक 19, जरूरत 35 – कर्मचारी 26 व जरूरत 50 – नर्स 31, जरूरत 55 – बहुत सी जांच बाहर में – ब्लड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं – जेनरेटर नहीं रहने से ऑपरेशन के समय परेशानी – नर्स व महिला पारा स्टाफ 8, जरूरत 14- परिजनों के रूकने की व्यवस्था नहीं

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