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तकनीकी शिक्षा व रोजगार, ये दो अहम मुद्दे हैं

निलेश कुमार जमुआर नवी मुंबई से हार और बिहारी, ये दो शब्द मेरे और मेरी तरह बिहार से बाहर रहने वालों की संवेदना का सबसे अहम हिस्सा हैं.सच यह है कि जब 20 साल पहले हम बिहार से निकल का नवी मुंबई आये और यहां सिविल इंजीनियरिंग का काम शुरू किया. तब तमाम व्यक्तिगत योग्यता, […]

निलेश कुमार जमुआर नवी मुंबई से
हार और बिहारी, ये दो शब्द मेरे और मेरी तरह बिहार से बाहर रहने वालों की संवेदना का सबसे अहम हिस्सा हैं.सच यह है कि जब 20 साल पहले हम बिहार से निकल का नवी मुंबई आये और यहां सिविल इंजीनियरिंग का काम शुरू किया. तब तमाम व्यक्तिगत योग्यता, प्रतिभा और क्षमता के बावजूद एक अजीब हीनता का भाव हमारे अंदर था. ऐसा नहीं है कि तब मेरे जैसे लोग मुंबई या महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों में नहीं रह रह रहे थे. रह रहे थे, मगर फिर भी अपने राज्य की स्थिति और छवि के कारण हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति कुछ अलग थी.
आज हम उस मनोदशा से बाहर आ चुके हैं. इसकी एक ही वजह है, बिहार में आया बदलाव. मेरे बड़े भाई, उनका परिवार और अम्मा-पापा पटना में हैं. समस्तीपुर जिले में अपने पुश्तैनी मकान और जमीन से अब भी हमारा सीधा सरोकार है. साल में दो-तीन बार बिहार जाना होता है. हमने महसूस किया है कि बिहार बदला है. सड़के और कानून व्यवस्था दुरुस्त हुई हैं. गांव-गांव तक पक्की सड़कों की पहुंच हुई है. छोटे-बड़े अनगिनत पुल बने हैं.
जीवन स्तर सुधरा है. अब तो आधी रात के बाद भी हम पटना की सड़कों पर सुरक्षित घूम पा रहे हैं. राज्य में रात में भी सफर कर पा रहे हैं. पहले न तो यह संभव था, न इसकी संभावना दिखती थी. यह बदलाव अद्भुत और अकल्पनीय है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं है. आर्थिक विकास वहां के बाजारों और लोगों के जीवन स्तर में साफ दिखता है.
इससे यह भी पता चल रहा है कि लोग उसी बिहार और खास कर पटना में कारोबार के क्षेत्र में भारी पूंजी निवेश कर रहे हैं, जहां छोटे-मोटे कारोबार करना भी निरापद नहीं था. ग्रामीण क्षेत्र में भी संपन्नता आयी है. वहां भी शहरी सुविधाएं एवं साधन पहुंचे हैं. जब हमने बिहार छोड़ा था, तब के हालात बदतर थे. हम पांच भाइयों में से तीन मुंबई में और एक दिल्ली में हैं. बिहार छोड़ना हमारी मजबूरी थी. छपरा से 10वीं और बाढ़ से 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद हमारे सामने आगे की शिक्षा और रोजगार की समस्या थी.
राज्य में तकनीकी शिक्षा का महौल नहीं था. सरकारी नौकरी नहीं थी. रोजगार के साधन नहीं थे. लिहाजा पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कर्नाटक और फिर रोजगार के लिए मुंबई आना पड़ा. ऐसा कई साथियों को करना पड़ा. जो किसी कारण से वहीं रह गये, वे आज भी इसकी कीमत चुका रहे हैं.
आज बिहार तेजी से बदल रहा है, लेकिन आधारभूत संरचना के विकास के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा, रोजगार के अवसर और सुरक्षा इन तीन मुद्दों पर सरकार को काम करना होगा. यह सच है कि मजदूरों के पलायन में कमी आयी है, लेकिन तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवाओं का पलायन अब भी कम नहीं हुआ है.
महाराष्ट्र के विकास में सबसे बड़ी भूमिका बिहार और उत्तर प्रदेश के तकनीकी और उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की है. ये यही काम अपने राज्य के लिए करना चाहते हैं, लेकिन अभी वहां यह माहौल और अवसर नहीं बन पाया है. सरकार और राजनतिक दलों को इस पर
सोचना चाहिए.

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