पटना: तूफान व ओलावृष्टि से हुए भारी नुकसान के बाद अब 12 फीसदी तक मॉनसून के कमजोर रहने के पूर्वानुमान ने राज्य के किसानों की चिंता बढ़ा दी है. किसानों को अभी धान की बिचड़ा डालना है. बिचड़ा डालने का काम किसी तरह पटवन से कर लिया जायेगा, लेकिन धान की रोपनी के लिए पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता पड़ेगी ही.
यदि धान की रोपनी के समय वर्षा नहीं हुई, तो किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि बिहार में धान समेत अधिकतर खरीफ की फसल मॉनसून पर निर्भर है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बिहार में धान की रोपनी 15 जुलाई से शुरू हो जाती है. इस अवधि में बारिश की सख्त आवश्यकता पड़ती है. यदि इस अवधि में बारिश नहीं हुई, तो किसानों की हालत और खराब होगी. राज्य में कमजोर मॉनसून के कारण खरीफ फसलों की भारी क्षति की आशंका व्यक्त की जाने लगी है. फसल क्षति के अलावा लोगों को पीने की पानी की समस्या भी उत्पन्न होगी. आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी ने बताया कि मॉनसून आने के पूर्व ही दक्षिण बिहार के कई जिलों में भू गर्भ जल स्तर नीचे आ गया है. इसके कारण गया के कई जगहों पर पीने की पानी टैंकर से उपलब्ध कराया जा रहा है. अधिकारी ने बताया कि मॉनसून कमजोर पड़ा, तो राज्य के अधिकतर जिलों में भूगर्भ जल स्तर नीचे चला जायेगा. इससे निबटने के लिए सरकार को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
इधर बिहार सरकार अलर्ट, निबटने के लिए केंद्र को सौंपा एक्शन प्लान : 12 प्रतिशत कम बारिश के पूर्वानुमान के राज्य सरकार का कृषि विभाग अलर्ट हो गया है. विभाग किसानों के बीच वैकल्पिक खेती के लिए मक्का, बाजरा आदि की बीज बांटने की तैयारी में जुट गयी है. विभाग के निदेशक धर्मेद्र सिंह ने बताया कि सुखाड़ से निबटने के लिए विभाग पूर्व में ही एक्शन प्लान बना लिया है. सुखाड़ की समस्या आते ही हम उस एक्शन प्लान पर काम करने लगेंगे. उन्होंने बताया कि सुखाड़ से निबटने के लिए मंगलवार को ही केंद्र सरकार को एक्शन प्लान सौंपा गया है. विभाग किसानों को कम बारिश की स्थिति से निबटने के लिए वैकल्पिक खेती के लिए बीज उपलब्ध करायेगी.
आकलन में जुटा मौसम विज्ञान विभाग : 12 प्रतिशत कम बारिश की आशंका के बाद पटना स्थित मौसम विज्ञान विभाग इसके आकलन में जुट गया है. मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक एके सेन ने कहा कि पांच जून के बाद यह बताना संभव होगा कि राज्य में कहां सामान्य से कम या अधिक बारिश होगी. इसके बाद ही कहा जा सकेगा कि मौसम का हाल बिहार के जिलों में इस साल कैसा रहेगा. औरंगाबाद आदि जिलों में किसानों को धान की फसल बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
12 प्रतिशत कम बारिश से धान की खेती सबसे अधिक प्रभावित होगी. फिलहाल किसान बिचड़ा डालने के लिए पटवन का सहारा लेंगे, पर 15 जुलाई के बाद बारिश आवश्यक होगी. जुलाई से अगस्त के बीच यदि 12 प्रतिशत कम बारिश का वितरण सही हो गया, तो चिंता की कोई बात नहीं हे. यदि बारिश कभी अधिक और कभी कम होगी, तो किसानों को भारी क्षति हो सकती है. फिलहाल हमें 15 जुलाई तक मॉनसूनी बारिश का इंतजार करना चाहिए. कम बारिश हुई तो दक्षिण बिहार के गया, नवादा, औरंगाबाद आदि जिलों में किसानों को धान की फसल बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
अनिल झा, कृषि वैज्ञानिक