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अधूरी रह गयीं 80 फीसदी योजनाएं

पटना: जिले में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास की 80 फीसदी योजनाएं लंबित हैं. पिछले दो वित्तीय वर्ष में इस योजना के अंतर्गत 619 योजनाओं को चुना गया,लेकिन इनमें मात्र 120 ही पूरी हो सकीं. 499 अधूरी रह गयीं. अधूरी योजनाओं में 218 टेंडर और एकरारनामा प्रक्रिया के इंतजार में है. इन योजनाओं पर 40.30 करोड़ रुपये […]

पटना: जिले में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास की 80 फीसदी योजनाएं लंबित हैं. पिछले दो वित्तीय वर्ष में इस योजना के अंतर्गत 619 योजनाओं को चुना गया,लेकिन इनमें मात्र 120 ही पूरी हो सकीं. 499 अधूरी रह गयीं. अधूरी योजनाओं में 218 टेंडर और एकरारनामा प्रक्रिया के इंतजार में है. इन योजनाओं पर 40.30 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

एक योजना भी पूरी नहीं
जिले के 25 विधायक-विधान पार्षद से अब तक दो वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2012-13 में सैकड़ों योजनाएं मांगी गयी, जिनमें 619 योजनाओं को अंतिम रूप से प्रशासनिक स्वीकृति मिली. स्वीकृत योजनाओं में 80 फीसदी अधूरी होने के बावजूद जिला प्रशासन ने वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए विधायकों को 30 सितंबर तक अंतिम रूप से अनुशंसा सौंप देने का आग्रह किया है. आंकड़ों को देखें तो ग्यारह विधान पार्षदों में से छह जबकि चौदह विधायकों में से दो विधायकों की एक योजनाएं भी अब तक पूरी नहीं हुई हैं.

टेंडर के बाद भी कई योजनाएं रद्द
विधायकों द्वारा अनुशंसित कई योजनाएं टेंडर होने के बाद भी रद्द हो गयीं. नंदकिशोर यादव की एक योजना विवादित, अनंत सिंह व श्याम रजक की एक-एक योजना स्थगित जबकि आशा देवी की एक और भाई वीरेंद्र व अरुण मांझी की दो-दो योजनाओं को अपरिहार्य कारण से रद्द कर दिया गया. भूमि उपलब्ध नहीं होने के चलते भाई वीरेंद्र और अरुण मांझी की क्रमश: तीन और दो योजनाएं शुरू नहीं हो सकी हैं. कई योजनाओं में पुनर्निविदा भी करायी गयी.

योजना लंबित होने का कारण
योजनाएं विलंब से शुरू होने के कारण ही लंबित हैं. वित्तीय वर्ष 2011-12 में योजनाएं ली तो गयी, लेकिन उन पर काम शुरू नहीं हो सका. अंतिम दौर में राशि सरेंडर हो गयी. इसके बाद वर्ष 2012-13 में दोनों साल की योजनाओं को मिला कर काम शुरू हुआ. दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 के बीच अधिकतर योजनाओं को प्रशासनिक स्वीकृति मिली. इसके बाद उनके टेंडर व एकरारनामा की प्रक्रिया की जा रही है. स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन के गठन में विलंब होने की वजह से भी समय पर काम शुरू नहीं हो सका. कुछ मामले में विधायक भी विलंब के लिए जिम्मेदार रहे. कभी उनकी अनुशंसा समय पर नहीं मिली तो कभी मनमाफिक व्यक्ति को टेंडर नहीं मिलने पर उसे कैंसिल भी करवा दिया गया.

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