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देश के 20% घरों में अनाज का दाना नहीं : प्रो द्रेज

पटना: अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता प्रो ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार भूख व मिस गवर्नेस की राजधानी है. यहां भूख व असुरक्षा की स्थिति सबसे अधिक है. छत्तीसगढ़ व ओड़िशा की स्थिति इतनी बुरी नहीं है. पेंशन योजनाओं के मामले में भी बिहार की हालत दयनीय है. ऐसी स्थिति में खाद्य सुरक्षा अधिनियम से […]

पटना: अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता प्रो ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार भूख व मिस गवर्नेस की राजधानी है. यहां भूख व असुरक्षा की स्थिति सबसे अधिक है. छत्तीसगढ़ व ओड़िशा की स्थिति इतनी बुरी नहीं है. पेंशन योजनाओं के मामले में भी बिहार की हालत दयनीय है. ऐसी स्थिति में खाद्य सुरक्षा अधिनियम से बिहार को बड़ा अवसर मिला है. अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान में ‘फूड सिक्युरिटी बिल एंड इट्स इंप्लीकेशन ऑन बैकवार्ड स्टेट्स’ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह को संबोधित करते हुए द्रेज ने कहा कि जनवितरण प्रणाली होने के बाद भी देश के 20 फीसदी घरों में अनाज का दाना नहीं है.

परिवारों का चयन समस्या

प्रो द्रेज ने कहा कि इस बिल को लागू करने में योग्य परिवारों के चयन करने की समस्या है. नौकरी व आयकर देनेवालों को अलग करना होगा. सामाजिक-आर्थिक व जाति आधारित जनगणना की स्थिति खराब है. खाद्य सुरक्षा के मामले में अभी तक परिवार को एक यूनिट माना गया है. इसे बदल कर प्रति व्यक्ति आय के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए. छोटे परिवार के लोग विरोध करेंगे. खाद्यान्न ढुलाई के खर्च की समस्या है. जनशिकायत निवारण और सबसे बड़ी चुनौती इस प्रणाली से माफियाओं को हटाने की होगी. सिस्टम को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना होगा.

गरीबों के लिए हितकर : सहाय

संस्थान के चेयरमैन डीएन सहाय ने कहा कि यह बिल गरीबों के लिए हितकर है. इसे लागू करने की जिम्मेवारी राज्य सरकार को दी गयी है. इसे लागू करने में कई चुनौतियां हैं. इसे सफल बनाने में नौकरशाही व सिविल सोसाइटी की प्रतिबद्धता काम आ सकती है. दरवाजे पर सेवा पहुंचे, डिलिवरी सिस्टम ठीक हो और जन शिकायत के लिए हेल्पलाइन केंद्र खुले, तो यह बेहतर हो सकता है. संरचना खड़ा करने में बड़ा खर्च होगा. मानव संसाधन, गोदाम व यातायात की व्यवस्था करनी होगी.

घट रही पैदावार : देविंदर शर्मा
कृषि विशेषज्ञ डॉ देविंदर शर्मा ने बताया कि बिहार सहित देश में जिस तरह से खेतिहर भूमि का सरकारी स्तर पर अधिग्रहण हो रहा है, उसका असर भी खाद्य उत्पादकता पर पड़नेवाला है. उत्तरप्रदेश में जिस हिसाब से भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, उससे 25 हजार गांवों के विलुप्त होने का खतरा है. बिहार की स्थिति भी कुछ इसी तरह की होनेवाली है. उत्पादकता घट रही है. खेती की भूमि का उपयोग गैर कृषि कार्यो में हो रहा है. यह चिंता का विषय है. योजना एवं विकास विभाग के प्रधान सचिव विजय प्रकाश ने बताया कि राज्य में मानक आधारित योजना शुरू की गयी है. मानव इंडिकेटर और कृषि रोड मैप में भी मानकों का ध्यान रखा गया है. खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने में दिक्कत है कि पर्याप्त गोदाम नहीं हैं. एक्शन प्लान, रूल्स बनाने की जरूरत है. आयोग बनाने का विचार भी परिपक्व नहीं हुआ है. दंड कैसे दिया जायेगा. दंड की राशि कहां रखी जायेगी. राज्य में आंगनबाड़ी केंद्र भी बड़ी चुनौती के रूप में हैं. अगर तीन वर्ष तक के बच्चों को पोषित आहार दे दिया जाये, तो कुपोषण की समस्या कम हो जायेगी. जो खाद्य दिया जा रहा है, उसकी पौष्टिकता की जांच की जानी चाहिए.

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