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हम चिंतित नहीं, तो प्रकृति कैसे करेगी हमारी चिंता
पटना: भूकंप जैसी कोई भयावह प्राकृतिक आपदा आने पर हम तुरंत अपने घरों से निकल कर इधर-उधर भागने लगते हैं, लेकिन हम पर्यावरण संरक्षण खासकर वायु प्रदूषण रोकने के प्रति इतने संवेदनशील क्यों नहीं होते हैं? भूकंप की आशंका मात्र से रात-रात भर मैदान में गुजारने को आतुर रहते हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण सवाल आज […]
पटना: भूकंप जैसी कोई भयावह प्राकृतिक आपदा आने पर हम तुरंत अपने घरों से निकल कर इधर-उधर भागने लगते हैं, लेकिन हम पर्यावरण संरक्षण खासकर वायु प्रदूषण रोकने के प्रति इतने संवेदनशील क्यों नहीं होते हैं? भूकंप की आशंका मात्र से रात-रात भर मैदान में गुजारने को आतुर रहते हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण सवाल आज हमारे सामने यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है, लेकिन इस पर ध्यान देने या कोई ठोस पहल करने के बजाये किसी आपदा के दौरान भाग कर तत्काल अपना समाधान ढूंढ़ने में यकीन रखते हैं. अगर पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हो, तो आपदा में इस तरह डर कर भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
: पर्यावरण असंतुलन का असर पिछले तीन साल के मॉनसून चक्र पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है. अब किसी भी मौसम में बरसात होने लगी है. अप्रैल-मई में असमय बरसात के साथ-साथ तूफान और तेज आंधी आना मौसम चक्र बिगड़ने का सबसे बड़े उदाहरण हैं. इस बार 22 अप्रैल को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के जारी पूर्वानुमान के अनुसार, इस बार भी मॉनसून करीब 30 प्रतिशत कमजोर रहेगा. जून से सितंबर महीने के बीच जरूरत के अनुसार बरसात नहीं होगी. बेमौसम बरसात और तूफान के कारण पिछले साल की तुलना में इस बार प्रशांत महासागर में ज्यादा ताकतवर ‘अलनीनो’ इफेक्ट पैदा होगा, जिससे दक्षिण-पश्चिम से आने वाला मॉनसून ज्यादा प्रभावित होगा. पिछले वर्ष भी इसी के कारण मॉनसून कमजोर आया था. इसके अलावा पर्यावरण असंतुलन के कारण समय पर बरसात नहीं होना, बिना किसी बिना किसी अनुमान के जरूरत से ज्यादा बारिश कुछ ही समय में हो जाना और जिस मौसम में बारिश होनी चाहिए, उस समय नहीं होता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि पर्यावरण असंतुलन के कारण कई वायरस जनित बीमारियों के वाहकों की संख्या भी तेजी से बढ़ती है, जिससे फ्लू, इंसेफ्लाइटिस जैसे रोगों की चपेट में सैंकड़ों लोग आते हैं.
प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है.
यह हो रहा इससे बड़ा नुकसान : बिहार की करीब 73 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है. यहां 53 लाख 31 हजार हेक्टेयर पर खेती होती है. इस पर 1.25 करोड़ परिवार जुड़े हुए हैं. परंतु मौसम में बदलाव के कारण कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी ओला और कभी तूफान से लाखों हेक्टेयर फसल हर साल बर्बाद होती है. इस बार रबी के मौसम में असमय बरसात के कारण गेहूं, चना, मसूर, मक्का, तेलहन समेत अन्य फसल बरबाद हो गयी थी. वर्ष 2014 और 2015 में सरकार ने करीब 1900 करोड़ रुपये आपदा से फसल क्षति में मुआवजा के तौर पर दिया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि मौसम चक्र बदलने से कितना बड़ा नुकसान हो रहा है.
बढ़ने लगा है प्रदूषण का स्तर
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मई, 2014 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, पटना देश में नयी दिल्ली के बाद दूसरा सबसे प्रदूषित शहर हो गया है. बिहार में प्रदूषण का स्तर पिछले पांच सालों में करीब ढाई गुणा बढ़ा है. हानिकारक गैसों की बढ़ती मात्र से हमारा वातावरण जहरीला होता जा रहा है. कुछ दिनों पहले राज्य के पर्यावरण एवं वन मंत्री पीके शाही ने विधान परिषद में इस बात का खुलासा किया था कि पटना में धूलकण की मात्र बढ़ कर 240 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है. जबकि मानक के अनुसार, यह 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के अंदर होना चाहिए. इसके अलावा अन्य हानिकारक गैसों कार्बन, सल्फर, ओजोन, एसपीएम (सस्पेंडेड पार्टिकल मैटेरियल) आदी की मात्र में भी करीब डेढ़ गुणा की बढ़ोतरी हुई है. पटना में प्रति घन मीटर हवा में कार्बन मोनो-ऑक्साइड का स्तर 1 मिली ग्राम, सल्फर डाय-ऑक्साइड का स्तर 3.5 मिली ग्राम, ओजोन गैसों का स्तर 23 मिली ग्राम पहुंच गया है. इस तरह बेतरतीब तरीके से प्रदूषण बढ़ने से कई तरह की जानलेवा बीमारियां महामारी के रूप में फैलने के अलावा प्राकृतिक आपदा समय-समय पर आने लगी हैं.
विशेषज्ञ की राय…..
पर्यावरण प्रदूषण के कारण मौसम बदल रहा है. मुफ्त में मिलने वाली वायु को स्वच्छ रखने के प्रति लोग संवेदनशील नहीं हैं. इससे होने वाले दूरगामी प्रभाव के प्रति विचार नहीं करते. हर आदमी अपने स्तर से कुछ प्रयास कर सकता है. लोगों को पर्यावरण के प्रति माइंड सेट और एटिट्यूड बदलने की जरूरत है. कूड़ा एकठ्ठा कर उसे जला देना, ज्यादा प्रदूषण करने वाली गाड़ी का धड़ल्ले से उपयोग करने जैसी आदतों को बदलने की जरूरत है. शहर में तेजी से ग्रीन बेल्ट खत्म हो रहा है. हरियाली कम होने से एसपीएम, कॉर्बन डॉय-ऑक्साइड जैसे तत्वों की मात्र हवा में बढ़ रही है. हवा और पानी दोनों रिचार्ज नहीं हो रहे. इससे पर्यावरण असंतुलित हो रहा, जिसके दुष्प्रभाव कई तरह के आपदा के रूप में सामने आ रहे हैं.
प्रो. आरके सिन्हा (डॉल्फिन मैन के नाम से प्रसिद्ध जाने-माने पर्यावरणविद)
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