अगर भूकंप की तीव्रता का पैमाना थोड़ा भी अधिक होता, तो न सिर्फ कई भवन गिरते बल्कि जान-माल की भी भारी क्षति होती. भूकंप की संवेदनशीलता की दृष्टि से पटना जिला सिस्मिक जोन चार में आता है, जो कि अधिक क्षति जोखिम का क्षेत्र है. ऐसे क्षेत्र में आठ या उससे अधिक रिएक्टर पैमाने पर आनेवाला भूकंप सरकारी व निजी इमारतों को बड़ी क्षति पहुंचाने के साथ ही भारी तबाही मचा सकता है.
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अवैध निर्माण दे रहे तबाही को न्योता
पटना: शनिवार की दोपहर आये भूकंप के झटकों ने राज्य सरकार से लेकर शहरवासियों को फिर एक बार संभलने का मौका दिया है. इसके बावजूद अगर हम नहीं चेते, तो भविष्य में बड़ी अनहोनी हो सकती है. शनिवार को आये भूकंप के चलते कई भवनों में सिर्फ दरारें आयीं. अगर भूकंप की तीव्रता का पैमाना […]
पटना: शनिवार की दोपहर आये भूकंप के झटकों ने राज्य सरकार से लेकर शहरवासियों को फिर एक बार संभलने का मौका दिया है. इसके बावजूद अगर हम नहीं चेते, तो भविष्य में बड़ी अनहोनी हो सकती है. शनिवार को आये भूकंप के चलते कई भवनों में सिर्फ दरारें आयीं.
अवैध ढंग से बने मकान
अपनी अस्त-व्यस्त अवस्था को लेकर पटना शहर हमेशा चर्चा में रहा है. कोई प्लानिंग नहीं होने के कारण जिसने जहां चाहा मकान बना लिया. शहर में इस तरह अट्टालिकाएं खड़ी हैं कि तीव्र गति का भूकंप आने पर लोगों को भागने तक का कोई मौका नहीं मिलेगा. कंकड़बाग, राजेंद्र नगर, श्रीकृष्णापुरी व शास्त्री नगर के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश मुहल्ले की छोटी-छोटी गलियों में पतले व लंबे मकान खड़े कर लिये गये हैं. तेज झटके में इनके भर भरा कर गिरने की स्थिति है. इसके साथ ही कुछ सरकारी क्वार्टर भी जजर्र अवस्था में है.
गंगा किनारे बना लिये मकान
नगर निगम की रोक के बावजूद गंगा नदी के किनारे भी बड़ी संख्या में अपार्टमेंट व भवन बना लिये गये हैं. भूकंप में नरम महीन बलुआही मिट्टी के द्रवीकरण की आशंका अधिक होती है. साथ ही भवन अपने भर से नींव के नीचे की मिट्टी को दबाता है. कीचड़दार, नयी भरी गयी अथवा हल्की कमजोर मिट्टी पर आधारित नींव धंसती है और संरचना ढांचा क्षतिग्रस्त हो जाता है. मकान की सुरक्षा को लेकर मजबूत नींव का कितना इंतजाम हुआ होगा, इसका अंदाजा इन प्लॉट के व्यावसायिक इस्तेमाल को देख कर लगाया जा सकता है.
भूकंप में भवन को खतरा
एक अध्ययन से पता लगा है कि मिट्टी की दीवारवाले कच्चे मकान एमएसके नौ तीव्रता वाले भूकंप में ढह जायेंगे. एमएसके आठ तीव्रता वाले भूकंप में इन मकानों के गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने तथा आंशिक रूप से ढहने की आशंका है. मिट्टी के मसाले में जोड़ी गयी ईंट की दीवार वाले मकान एमएसके नौ तीव्रता वाले भूकंप में गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने तथा आंशिक रूप से ढहने की आशंका पैदा करते हैं. इस परिस्थिति को देखते हुए ही राज्य सरकार ने भी सरकारी भवन भूकंपरोधी बनाने की घोषणा की थी.
– साइस्मिक जोन पांच में शामिल जिले ( सर्वाधिक क्षति जोखिम क्षेत्र) : सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, अररिया, मधेपुरा, किशनगंज एवं अररिया.
– साइस्मिक जोन चार में शामिल जिले ( अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र) : पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, नालंदा, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, मुंगेर, भागलपुर, लखीसराय, जमुई, बांका एवं खगड़िया.
– साइस्मिक जोन तीन में शामिल जिले ( मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र) : बक्सर, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, अरवल एवं गया.
बिहार में आये बड़े भूकंप
वर्ष 1934 : जाड़े के मौसम में 15 जनवरी, 1934 को दिन में 2 बज कर 13 मिनट पर उत्तरी बिहार भारत के सर्वाधिक विध्वंसकारी एवं विशाल भूकंप की चपेट में आया था. रिएक्टर पैमाने पर 8.3 परिमाण की ऊर्जा उत्सरण करनेवाले इस भूकंप का उद्गम भूतल में बिहार की सीमा से सटे नेपाल था. नेपाल में काठमांडू से लेकर बिहार में मुंगेर तक बड़े पैमाने पर क्षति हुई थी. अगर यह भूकंप रात में आया होता तो असंख्य जानें जातीं. इस भूकंप से नेपाल में भटगांव और बिहार में मुंगेर पूरी तरह बर्बाद हो गये थे. बलुआही मिट्टी के द्रवीकरण के कारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा एवं पूर्णिया जिले के 300 किमी लंबे तथा 50 किमी चौड़े विस्तृत इलाके दलदली हो गये. इन जिलों में बहुत सारे मकान झुक गये या जमीन में धंस गये.
वर्ष 1988 : पुन: इसी क्षेत्र में 20 अगस्त, 1988 को 6.6 तीव्रता का भूकंप मॉनसून के दौरान आया. उस वक्त यह इलाके बाढ़ ग्रस्त थे. इससे भारत में 282 लोग मारे गये, जबकि 3766 लोग घायल हुए थे. नेपाल में भी 721 लोगों की मौतें हुई थीं. भारत में करीब डेढ़ लाख, जबकि नेपाल में एक लाख घर क्षतिग्रस्त भी हुए.
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