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सियासी उठापटक के साइड इफेक्ट: विधानसभा के सामने पहली बार खड़े हुए कई पेचीदा सवाल

पटना: बिहार की सियासी हलचल का एक बड़ा केंद्र अब विधानसभा बन गया है. इस हलचल में विधानसभा सचिवालय के सामने पहली बार कुछ ऐसे पेचीदा सवाल खड़े हो गये हैं, जो अब तक नहीं आये थे. राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने जीतन राम मांझी सरकार को 20 फरवरी को विधानसभा में अपना बहुमत साबित […]

पटना: बिहार की सियासी हलचल का एक बड़ा केंद्र अब विधानसभा बन गया है. इस हलचल में विधानसभा सचिवालय के सामने पहली बार कुछ ऐसे पेचीदा सवाल खड़े हो गये हैं, जो अब तक नहीं आये थे. राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने जीतन राम मांझी सरकार को 20 फरवरी को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने को कहा है. इस लिहाज से विधानसभा पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं.

लॉबी डिवीजन या गुप्त मतदान?

राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कहा है कि वह 20 फरवरी को सदन में बहुमत के लिए लॉबी डिविजन या गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाएं. अगर गुप्त मतदान हुआ, तो मतों की गिनती सदन में मौजूद सदस्यों की उपस्थिति में करायी जाये. राज्यपाल ने ध्वनिमत से वोट कराने के बारे में कुछ नहीं कहा है. इसका मतलब यह है कि सदन में अब विधानसभाध्यक्ष को लॉबी डिविजन अथवा गुप्त मतदान में से किसी एक प्रक्रिया को अपनाना पड़ेगा.

क्या है प्रक्रिया

विधानसभा की कार्य संचालन नियमावली के नियम 56 के अनुसार किसी प्रस्ताव पर बहस खत्म हो जाने के बाद अध्यक्ष पूछेंगे कि प्रस्ताव के पक्ष में जो सदस्य हैं, वे ‘हां’ कहें और जो विरोध में हो वे ‘ना’ कहें. इसके बाद अध्यक्ष यह कहेंगे कि उनकी राय में ‘हां’ं के पक्ष में बहुमत है या ‘ना’ के पक्ष में. इस प्रक्रिया को ध्वनिमत से मत विभाजन कहा जाता है. फिर भी कुछ सदस्य वोटिंग की मांग कर सकते हैं. अगर अध्यक्ष की राय में वोटिंग की मांग अनावश्यक नहीं है, तो वह विधानसभा सचिव को तीन मिनट के लिए विभाजन की घंटी बजाने का निर्देश देंगे. इसके बाद सदन के दरवाजे बंद हो जाते हैं. सदन में जो प्रस्ताव आया हुआ रहता है, उस पर मत विभाजन कराया जाता है. इसके तहत प्रस्ताव का समर्थन करनेवाले सदस्यों की गिनती होती है. इसी तरह प्रस्ताव का विरोध करनेवाले सदस्यों की भी गिनती होती है. सदन में ‘हां’ पक्ष और ‘ना’ पक्ष के बीच सदस्यों का विभाजन होता है और वे अपनी सीट पर खड़े होकर अपनी गिनती कराते हैं. इसके लिए सभा सचिवालय के कर्मचारी पक्ष और विपक्ष के सदस्यों की गणना करते हैं. लॉबी डिविजन मतगणना की वह प्रक्रिया है, जिसमें अध्यक्ष की ओर से नियुक्त कर्मचारियों के जरिये प्रस्ताव के समर्थक और उसके विरोधी सदस्यों को अलग-अलग लॉबी में भेज कर उनकी गिनती करायी जाती है.

लॉबी डिवीजन पर हो चुका है विवाद

विधानसभा के इतिहास में 1967-68 में तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद की सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर लॉबी डिविजन के जरिये वोट कराया गया था. लेकिन, उस पर विवाद हो गया था. दोबारा सदस्यों को उनकी सीट पर खड़ा करा कर मत विभाजन कराया गया था, जिसमें महामाया प्रसाद पराजित हो गये थे. इसकी वजह से उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

क्या कहते हैं विधानसभाध्यक्ष

सदन में मांझी सरकार के बहुमत साबित करने की प्रक्रिया के बारे में राज्यपाल सचिवालय की ओर से विधानसभाध्यक्ष को पत्र लिखा गया है. इसके बारे में पूछे जाने पर विधानसभाध्यक्ष ने कहा कि मुङो राजभवन की चिट्ठी मिल गयी है. मैं उस पर विधिसम्मत फैसला करूंगा.

जदयू का सचेतक कौन

विधानसभा के भीतर जदयू के मुख्य सचेतक कौन होंगे? मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने जदयू से निष्कासित विधायक राजीव रंजन को जदयू का सचेतक बनाये जाने की सूचना दी है. दूसरी ओर सदन में अब भी जदयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार हैं. ऐसी स्थिति में जदयू का सचेतक किसे माना जायेगा?

फाइल स्पीकर के पास : सचिव

विधानसभा के सचिव हरेराम मुखिया ने सदन में मुख्य सचेतक को लेकर पूछे गये सवाल पर कहा कि हमने फाइल अध्यक्ष के पास भेज दी है. उन्होंने बताया कि जीतन राम मांझी सदन में असंबद्ध सदस्य होंगे. इसकी अधिसूचना पहले ही निकाली जा चुकी है. यह पहली बार है कि विधानसभा में कोई असंबद्ध सदस्य मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठेगा. जदयू ने मांझी को पार्टी से निकाल दिया है. इधर, सूत्रों ने बताया कि विधानसभाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री मांझी के पत्र के आलोक में मुख्य सचेतक की मान्यता देने के बारे में गुरुवार की देर शाम तक फैसला नहीं लिया था.

बहुमत साबित होने के बाद मिलनी चाहिए मान्यता

संसदीय मामलों के जानकारों का कहना है कि नये मुख्य सचेतक को मान्यता तब मिलनी चाहिए, जब मुख्यमंत्री मांझी सदन में अपना बहुमत साबित कर देंगे. क्योंकि अभी मांझी सरकार की प्राथमिकता बहुमत साबित करने

की है.

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