संवाददाता, पटना राज्यपाल एक संवैधानिक पद है. वे कैबिनेट की सलाह पर ही कोई स्वीकृति देते हैं. कई बार अल्पमतवाली सरकार के मुख्यमंत्री के फैसले को राज्यपाल स्वीकृति नहीं देते हैं. कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आये हैं. ऐसी स्थिति में राज्यपाल मुख्यमंत्री को सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने को कहते हैं. विधानसभा भंग करने की राज्यपाल से अनुशंसा अल्पमतवाले मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने की है. उनकी सिफारिश विधि सम्मत नहीं है. कैबिनेट का मतलब सिर्फ एक व्यक्ति सीएम नहीं होता. राज्यपाल कैबिनेट की अनुशंसा पर यह भी ध्यान देते हैं कि सबकी सहमति है या नहीं. अब तो जदयू ने अपने विधायक दल का नया नेता नीतीश कुमार को चुन लिया है. यानी अब जीतन राम मांझी जदयू विधायक दल के नेता नहीं रहे. शरद यादव के विधायक दल की बैठक बुलाने पर जीतन राम की आपत्ति भी असंवैधानिक है. पार्टी की बैठक या विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को है. अब कैबिनेट की अनुशंसा पर राज्यपाल को देखना है कि अनुशंसा भेजनेवाला सीएम अल्पमत में हंै या बहुमत में. इसमें कोई दो राय नहीं कि मांझी कैबिनेट का फैसला विवादास्पद है. संवैधानिक दृष्टिकोण से मांझी कैबिनेट का फैसला राज्यपाल नहीं मानेंगे. यदि वे मान भी लेंगे, तो राष्ट्रपति नहीं मानेंगे.
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अल्पमतवाले सीएम की अनुशंसा नहीं मानेंगे राज्यपाल : योगेश चंद्र वर्मा-सं
संवाददाता, पटना राज्यपाल एक संवैधानिक पद है. वे कैबिनेट की सलाह पर ही कोई स्वीकृति देते हैं. कई बार अल्पमतवाली सरकार के मुख्यमंत्री के फैसले को राज्यपाल स्वीकृति नहीं देते हैं. कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आये हैं. ऐसी स्थिति में राज्यपाल मुख्यमंत्री को सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने को कहते हैं. विधानसभा […]
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