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मौके के अनुसार फैसले लेते हैं केशरीनाथ त्रिपाठी

लखनऊ से राजेन्द्र कुमार बिहार के कार्यवाहक राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायिक राजनीति की धाराओं के बीच बेहतर समन्वय के लिए जाना जाता है. वह संविधान के दायरे में रहकर ही कोई फैसला लेते हैं. उत्तरप्रदेश इसका उदाहरण रहा है. उनका सबसे महत्वपूर्ण फैसला अगस्त 2003 में आया था जो उन्होंने यूपी विधानसभा […]

लखनऊ से राजेन्द्र कुमार
बिहार के कार्यवाहक राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायिक राजनीति की धाराओं के बीच बेहतर समन्वय के लिए जाना जाता है. वह संविधान के दायरे में रहकर ही कोई फैसला लेते हैं. उत्तरप्रदेश इसका उदाहरण रहा है. उनका सबसे महत्वपूर्ण फैसला अगस्त 2003 में आया था जो उन्होंने यूपी विधानसभा के स्पीकर के तौर पर दिया था.
उस समय उन्होंने बसपा से अलग हुए गुट को मान्यता दी थी. उन्होंने कानून के आधार पर ही बसपा में जो विभाजन हुआ था, उसे दसवीं अनुसूची में विभाजन के अंदर विभाजन का नया सिद्धांत प्रतिपादित कर बसपा विधायक दल में विभाजन को मान्यता दी थी. आज भी उनके इस फैसले पर चर्चा होती है.
यूपी की विधानसभा में आत्माराम गोविन्द खेर के बाद केशरी ही ऐसे व्यक्ति हैं जो विधानसभा के तीन बार स्पीकर निर्वाचित हुए. केशरीनाथ त्रिपाठी एक राजनेता के साथ-साथ कवि भी हैं. केशरी जी के दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. दोहों की भी एक किताब है. वे उप्र हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे हैं. इलाहाबाद के मोहिसिन गंज मोहल्ले में 10 नवम्बर 1934 को जन्मे केशरीनाथ त्रिपाठी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम वकीलों में एक हैं. केशरी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1953 में स्नातक करने के बाद 1955 में एलएलबी की. 1956 में उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की. 1970 में वह पहली बार इलाहाबाद के झांसी विधानसभा क्षेत्र से जनता पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए थे. 18 जुलाई 2004 को वे उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने.
जन्म : 10 नवंबर 1934
1946 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने.
1952 में भारतीय जनसंघ में कार्य करने लगे और कश्मीर आंदोलन में भाग लेते हुए जेल गए.
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने के चलते 1990 में 23 अक्टूबर से 10 नवंबर तक जेल में बंद रहे.
इलाहाबाद विवि से 1953 में स्नातक व 1955 में एलएलबी किया.
एक वर्ष की वकालत करके 1956 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण कराया.
1958 में सुधा त्रिपाठी से विवाह हुआ, जिनसे एक पुत्र व दो पुत्रियां हैं.
1965 में इलाहाबाद बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव, 1987-88 एवं 1988-89 में उसके अध्यक्ष चुने गए.
1977 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद की झूंसी से निर्वाचित होकर वित्त एवं बिक्र ीकर मंत्री बने.
1989, 1991, 1993, 1996 व 2002 में भाजपा से इलाहाबाद दक्षिण से लगातार निर्वाचित और तीन बार स्पीकर अध्यक्ष बने.
2004 में यूपी भाजपा के अध्यक्ष बने.
24 जुलाई, 2014 को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने.
27 नवंबर, 2014 को उन्होंने बिहार के कार्यवाहक राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली.

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