इसके कारण मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की 75 प्रतिशत कमी हो गयी है. अगर अगले तीन सालों में भी बहाली नहीं हुई, तो यह प्रतिशत बढ़ कर 90 तक पहुंच जायेगा. इस संबंध में भासा महासचिव डॉ अजय कुमार कहते हैं कि जिस तरह तेजी डॉक्टर रिटायर कर रहे हैं, वैसे में अगले तीन वर्षो तक बहाली नहीं हुई, तो इनकी संख्या महज 600 रह जायेंगी. उन्होंने कहा कि इनकी भरपाई के लिए सरकार को नियुक्ति की गति तेज करनी होगी. साथ ही अनुबंध पर बहाल चिकित्सकों को नियमित कर नयी बहाली करते रहना होगा. ऐसा नहीं होने पर हम राष्ट्रीय औसत के मामले में भी काफी पीछे हो जायेंगे और चिकित्सा व्यवस्था पकड़ से बाहर हो जायेगी.
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कैसे होगा इलाज: 4500 पदों के लिए अधिसूचना, महज 6000 आये आवेदन 15 साल में 600 डॉक्टर ही बहाल
पटना: बिहार में पिछले 15 वर्षो में महज 600 चिकित्सकों की बहाली हुई है. हालांकि 4500 पदों पर बहाली के लिए बिहार लोक सेवा आयोग ने अधिसूचना निकाली, जिसके एवज में महज 6000 चिकित्सकों ने आवेदन किया है. लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह है कि आयोग से चिकित्सकों की बहाली की अनुशंसा के लिए दो […]
पटना: बिहार में पिछले 15 वर्षो में महज 600 चिकित्सकों की बहाली हुई है. हालांकि 4500 पदों पर बहाली के लिए बिहार लोक सेवा आयोग ने अधिसूचना निकाली, जिसके एवज में महज 6000 चिकित्सकों ने आवेदन किया है. लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह है कि आयोग से चिकित्सकों की बहाली की अनुशंसा के लिए दो से आठ साल का समय लगता है. वहीं हकीकत यह भी है कि हर माह चिकित्सक रिटायर कर रहे हैं.
ये हैं मानक
भारतीय लोक स्वास्थ्य मानक के मुताबिक पीएचसी में तीन एमबीबीएस, सात स्पेशलिस्ट, एक डेंटल व एक आयुष डॉक्टर होने चाहिए, जबकि कहीं तीन एमबीबीएस व चार स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं, तो कहीं इनसे भी कम.
पीएचसी में इंडोर में 112 एवं आउटडोर में 33 दवाइयां देने का प्रावधान है. इसी तरह, 30 हजार की आबादी पर एक पीएचसी और एक लाख की आबादी पर एक रेफरल अस्पताल का होना जरूरी है.
सदर अस्पतालों में कमियां ही-कमियां
बिहार में 36 सदर अस्पताल हैं, जिनमें 500, 300 व 200 बेड बनाने की घोषणा सालों पहले सरकार ने की थी, लेकिन ये अस्पताल आज भी बेड के लिए तरस रहे हैं. ये अस्पताल 10-15 डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं. खासकर इन अस्पतालों में रात में ज्यादा परेशानी होती है. रात में मरीजों का इलाज नहीं हो पाता है. जांच किये बिना मरीजों को मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है. मानक के मुताबिक सदर अस्पतालों में स्पेशलाइज डॉक्टरों को रखना है, लेकिन इन अस्पतालों में स्पेशलाइज विभाग खोले गये हैं, पर चिकित्सक नहीं हैं.
अनुमंडलीय अस्पतालों का भी हाल बुरा
वित्तीय वर्ष 2009-10 में बिहार के 12 पुराने, 20 नये एवं 15 उत्क्रमित कुल 47 अनुमंडलीय अस्पतालों में पूर्व से सृजित पदों के अलावा 100 बेड करने का निर्णय लिया गया. आइपीएचएस मानक के अनुरूप प्रथम चरण में वित्तीय वर्ष 2009-10 में कुल 34 करोड़ 72 लाख 16 हजार 624 रुपये के अनुमानित व्यय पर विभिन्न कोटि के कुल 2250 पदों एवं दूसरे चरण में वित्तीय वर्ष 2010-11 में कुल 33 करोड़ 66 लाख 40 हजार 314 रुपये के अनुमानित व्यय पर विभिन्न कोटि के कुल 2291 पदों का चरणबद्ध रुप से स्थायी सृजन की स्वीकृति बिहार सरकार ने दी. वहीं हाल के दिनों में अनुमंडलीय अस्पताल की संख्या बढ़कर 55 हो गयी है, लेकिन इनमें स्वीकृत पदों पर बहाली नहीं हो रही है. पद खाली रहने से मरीजों को काफी प्रॉब्लम हो रही है.
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