पटना: सूबे के पशु स्वास्थ्य व उत्पादन संस्थान में बैक्टेरियल वैक्सीन का उत्पादन 17 वर्षो से नहीं हो रहा है. वायरल वैक्सीन भी बनना पांच वर्षो से बंद है. इससे पशुओं में होनेवाली बीमारियों की रोकथाम ठीक से नहीं हो पा रही है. वैक्सीन निर्माण नहीं होने से राज्य को सालाना 10-12 करोड़ रुपये की क्षति हो रही है. संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों पर सालाना लगभग तीन करोड़ रुपये वेतन मद में खर्च के बावजूद उत्पादकता शून्य है.
फार्मेटर मशीने खराब
संस्थान की स्थापना 1953 में हुई थी. यहां पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए रिसर्च व वैक्सीन का निर्माण कराया जाता है. 1957 से पशुओं के लिए वैक्सीन का निर्माण शुरू हुआ. 1996 से संस्थान में बैक्टेरियल वैक्सीन का निर्माण फार्मेटर मशीन खराब होने के कारण बंद कर दिया गया. चारा घोटाले के मामले सामने आने के बाद इस मशीन की खरीदारी नहीं हो सकी. यहां 50 लाख पशुओं के लिए वैक्सीन का निर्माण होता था. निर्माण के लिए मुख्य मशीन फार्मेटर एवं ऑटो क्लेम मशीनें हैं. इनमें ऑटो क्लेम ठीक थी. तब नयी आधुनिक फार्मेटर मशीन 12 लाख में खरीद हो सकती थी.
2008 से वायरल वैक्सीन का भी निर्माण बंद हो गया. बाहर से इसे मंगाने में लगभग 15 करोड़ खर्च होते हैं. पूरे देश में इसका कम उत्पादन हो रहा है. हालांकि राज्य सरकार ने पिछले वर्ष ही वैक्सीन निर्माण कराने का निर्णय लिया है. इसके लिए आठ करोड़ की राशि का प्रावधान भी किया गया है, पर इस पर 20 करोड़ रुपये खर्च होंगे. संस्थान में वैक्टेरियल वैक्सीन में एचएस बीक्यू (गलघोंटू व लंगड़ी) एवं एंथ्रेक्स वैक्सीन का मुख्य रूप से निर्माण होता था. वायरल वैक्सीन में एफएमडी (खुरहा व मुंहपका) और रानीखेत वैक्सीन का निर्माण होता था. एचएस बीक्यू एवं एफएमडी टीका मुख्य रूप से गाय, बैल, भैंस के लिए बनाया जाता था. बकरी और मुरगी को भी बीमारी से बचाने के लिए टीका बनाया जाता था. पशुओं को इन बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जाता है. इसके लिए निविदा के आधार पर डेढ़ से दो करोड़ पशुओं का टीका दूसरे प्रदेशों आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक से मंगाना पड़ता है.