पटना: हर वाहन में ड्राइवर की सीट का मतलब एक आदमी होता है, लेकिन राजधानी में चलनेवाले ऑटो व मिनीटोर में ड्राइवर की सीट का मतलब तीन सवारी है. जी हां, नियमों को ताक पर रख कर ऑटो चलानेवाले ये चालक पैसे की खातिर सवारी की जान को भी जोखिम में डाल देते हैं.
राजधानी में चलनेवाले ऑटो की हालत ऐसी होती है कि इसमें दोनों तरफ सवारी का आधा शरीर ऑटो से बाहर ही होता है. पिछले एक महीने से चलाये जा रहे विशेष जांच अभियान के बावजूद ट्रैफिक प्रशासन की नजर इस पर नहीं जाती. यही कारण है कि इन ऑटो चालकों की मानमानी जारी है.
हर रूट का यही हाल
यह हाल किसी एक रूट पर नहीं, बल्कि शहर के तमाम रूट पर चलनेवाले ऑटो का है. जंकशन से बोरिंग रोड हो या गांधी मैदान, गांधी मैदान से दानापुर हो या पटना सिटी, हर रूट पर चलनेवाले ऑटो या मिनीडोर में आपको ड्राइविंग सीट पर चार लोग बैठे दिख जायेंगे. मगर अफसोस की बात यह है कि प्रशासन की नजर इस पर नहीं जाती. ऑटो चालकों की मनमानी के आगे किसी की नहीं चलती. किसी यात्री के विरोध करने पर उनको बैठाया ही नहीं जाता. जल्ल्दी पहुचने की मजबूरीवश लोग ड्राइवर के बगल में बैठ कर सफर करते हैं.
सीट से दोगुना यात्री
नगर बस सेवा की बसों में भी आपको भेड़-बकरियों की तरह यात्री लदे दिख जायेंगे. इन बसों में बैठने की क्षमता महज 20 से 25 यात्रियों की होती है, मगर सीट के दोगुने से अधिक लोग सफर करते हैं. इस पर भी प्रशासन की नजर नहीं जाती.