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सोसाइटी की आड़ में कहीं ठगी तो नहीं

पटना: कुछ संस्थानों के आम लोगों को कई तरह के झांसे या विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ठगी कर भागने के कुछ मामले सामने आये हैं. ये संस्थान एनबीसी (नॉन बैंकिंग कंपनी) या चिट फंड कंपनी नहीं हैं, बल्कि इनकी तरह ही काम करनेवाली ‘मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी (एमएससीएस)’ हैं. इन सोसाइटी या संस्थानों का […]

पटना: कुछ संस्थानों के आम लोगों को कई तरह के झांसे या विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ठगी कर भागने के कुछ मामले सामने आये हैं. ये संस्थान एनबीसी (नॉन बैंकिंग कंपनी) या चिट फंड कंपनी नहीं हैं, बल्कि इनकी तरह ही काम करनेवाली ‘मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी (एमएससीएस)’ हैं.

इन सोसाइटी या संस्थानों का रजिस्ट्रेशन बिहार में नहीं होने के कारण इनकी संख्या राज्य में कितनी है, इसका पता नहीं चलता है. सहकारिता विभाग के पास इन को-ऑपरेटिव संस्थानों से संबंधित कोई स्पष्ट आंकड़ा ही नहीं है. इस वजह से गड़बड़ी कर फरार होने पर इनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है. वित्त विभाग को अररिया, कटिहार, किशनगंज समेत अन्य जिलों में ऐसी एमएससीएस की गड़बड़ी के कुछ मामले मिले हैं, परंतु इनके खिलाफ कोई जानकारी नहीं होने और इनके खिलाफ किसी की शिकायत नहीं करने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पायी है. न ही कहीं कोई एफआइआर दर्ज हुआ, न ही गिरफ्तारी. जानकार बताते हैं कि चिट फंड कंपनी वाले इसे ठगी का नया माध्यम बन रहे हैं.

चिट फंड की गड़बड़ी देख नकेल की तैयारी : चिट फंड कंपनियों की धोखाधड़ी की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए राज्य सहकारिता विभाग ने ऐसे एमएससीएस का पता लगाने की कवायद शुरू की है. विभागीय निबंधक हुकुम सिंह मीणा ने सभी जिला सहकारिता पदाधिकारी (डीसीओ) को अपने-अपने जिले में कार्यरत मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी की पूरी जानकारी एकत्र करने का आदेश दिया है. साथ ही सभी डीसीओ को 21 बिंदुओं पर ऐसे संस्थानों की जांच कर रिपोर्ट तैयार करने को कहा है. सहकारिता विभाग ने केंद्रीय निबंधक से भी बिहार में कार्य करने का उल्लेख करनेवाली एमएससीएस की विस्तृत जानकारी मांगी है. गौरतलब है कि कुछ समय पहले केंद्रीय रजिस्ट्रार ने सभी एमएससीएस के लिए यह प्रावधान तय कर दिया है कि जिस-जिस राज्य में वे कार्य करेंगे, उन्हें उस राज्य के राज्य स्तरीय निबंधक से रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा. लेकिन अब तक किसी ने कोई जानकारी सरकार को नहीं दी है.

ऐसे करते हैं गड़बड़ी

मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी अपना रजिस्ट्रेशन कृषि मंत्रलय के अंतर्गत केंद्रीय रजिस्ट्रार से करवाते हैं. ऐसा करने से इन पर भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी (सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) का नियंत्रण पूरी तरह से खत्म हो जाता है. ऐसी संस्थाओं पर को-ऑपरेटिव एक्ट के तहत सभी नियम लागू होते हैं. मल्टी स्टेट के फॉमरूले को अपना कर केंद्रीय रजिस्ट्रार से निबंधन कराने की वजह से इन्हें एक साथ कई राज्यों में काम करने की छूट मिल जाती है. ये संस्थान राज्य सरकार को भी इसकी जानकारी नहीं देते हैं कि किन-किन जिलों में इनके कार्यालय हैं, जबकि नियमानुसार प्रत्येक वर्ष इन्हें अपना ऑडिट करवा कर इसकी रिपोर्ट केंद्रीय रजिस्ट्रार को भेजना होता है, जिसमें ये बड़ी आसानी से जालसाजी कर लेती हैं.

सदस्य बना करते हैं शिकार

ऐसे संस्थान नन बैंकिंग एक्ट के तहत नहीं आते. इससे आम जनता से किसी माध्यम या स्कीम से इन्हें पैसा लेने का कोई अधिकार नहीं होता है. लेकिन, ये एमएससीएस आम लोगों से पहले पांच या दस रुपये लेकर सदस्य बना लेते हैं. फिर अपनी स्कीम से जोड़ लेते हैं. ये संस्थान आवास या जमीन योजना के अलावा अन्य तरह के धनों की बढ़ोतरी की योजनाओं के जरिये आम लोगों को ‘वित्तीय स्वर्ग’ दिखाती हैं. फिर कुछ समय बाद सब समेट कर फरार हो जाती है. राज्य में इनका कोई अता-पता दर्ज नहीं होने से इन्हें खोजना काफी मुश्किल हो जाता है.

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