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आठ माह बाद भी नहीं मिला सैनिटरी नैपकिन

पटना : किशोरी छात्राओं की उचित देखभाल के लिए शिक्षा विभाग द्वारा स्कूली छात्राओं को सैनिटरी नैपकिन मुहैया करायी जानी थी, लेकिन घोषणा के आठ माह बाद भी अब तक उन्हें सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. दूसरी ओर सरकार द्वारा सैनिटरी नैपकिन निर्माण करनेवाली कंपनियां भी फंड के अभाव में बंद पड़ी […]

पटना : किशोरी छात्राओं की उचित देखभाल के लिए शिक्षा विभाग द्वारा स्कूली छात्राओं को सैनिटरी नैपकिन मुहैया करायी जानी थी, लेकिन घोषणा के आठ माह बाद भी अब तक उन्हें सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. दूसरी ओर सरकार द्वारा सैनिटरी नैपकिन निर्माण करनेवाली कंपनियां भी फंड के अभाव में बंद पड़ी हैं.
इससे सस्ती दरों में मिलनेवाली सैनिटरी नैपकिन का अभाव है. इसका असर किशोरियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. यूनिसेफ की ओर से वर्ष बीते वर्ष दिसंबर में बिहार के दो जिले नालंदा व वैशाली जिले के किशोरियों के स्वास्थ्य संबंधी खासकर मासिक चक्र के विषय में सर्वे कराया गया था. इसके अनुसार 59 } लड़कियां मासिक चक्र के दौरान स्कूल नहीं जा पाती हैं.
ठप पड़ी लाखों की मशीनरी
महिला विकास निगम की ओर महिलाओं को सस्ती दरों पर सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से फुलवारी में सैनिटरी नैपकिन बनाने का कारखाना खोला गया था, जो पिछले दो वर्षो से बंद पड़ा है. फंड के अभाव में लाखों रुपये की लागतवाली मशीनरी ठप पड़ी है. यहां तक कि निर्मित उत्पादों की उचित देखभाल नहीं होने के कारण मशीन रखी-रखी खराब हो गयी.
फंड के अभाव में बंद कारखाने
नयी दिशा फेडरेशन के हेड अमित कुमार ने बताया कि फं ड के अभाव में फुलवारी में चलनेवाले कारखाने बंद पड़े हैं. इसमें नैपकिन निर्माण करनेवाली महिलाएं अब बेरोजगार हैं. इससे ग्रामीण इलाकों की महिलाओं व किशोरियों को सस्ती दरों पर इसे उपलब्ध कराया जा रहा था, लेकिन कारखाना बंद पड़ने से इसका लाभ महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है.
दो जिलों में चल रहा प्रोग्राम
किशोरियों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए यूनिसेफ की ओर से पायलेट प्रोजेक्ट के तहत दो जिलों में ‘सामाजिक व्यवहार परिवर्तन’ कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं. इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के साथ मिल कर किशोरियों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा रहा है.
तीन लाख किशोरियों को किया जाना है जागरूक
यूनिसेफ की कार्यक्रम हेड निपुण गुप्ता ने बताया कि कार्यक्रम के अनुसार दो वर्षो में 2014-15 में 3800 फ्रंटलाइन वर्कर (आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता) शिक्षक द्वारा संचार व कॅम्यूनिटी मोबिलाइजेशन के जरिये 10 से 19 आयु वर्ष की लगभग तीन लाख किशोरियों को जागरूक किया जाना है. इसके जरिये उन्हें मासिक चक्र से संबंधित जानकारी दी जानी है.
सर्वे एक नजर में
– 59 फीसदी लड़कियां मासिक चक्र के दौरान नहीं जा पाती हैं स्कूल
– 96 फीसदी किशोरियां और महिलाएं गंदे कपड़े का करती हैं इस्तेमाल
– 15 फीसदी नहीं जानती सैनिटरी नैपकिन क्या है?
अब तक इस संबंध में सरकार द्वारा कोई सूचना नहीं मिली है. कई बार स्कूल की प्राचार्या द्वारा इस संबंध में बात की गयी है. हालांकि अब तक इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है.
– महेश प्रसाद सिंह, जिला शिक्षा पदाधिकारी

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