पटना: शहरी गरीबों को नये तरीके से परिभाषित करने की जरूरत है. भिखारी, कचरा चुननेवाले, घरेलू नौकर, सफाई कर्मी और दैनिक मजदूर स्वत: गरीब कहे जायेंगे. घरविहीन या प्लास्टिक के घर या एक कमरे के घर में रहनेवाले, ऐसे घर जिसमें बच्च घर का मुखिया हो और कोई स्वस्थ व्यक्ति कमानेवाला न हो.
जिस घर में महिला या विधवा घर की मुखिया हो सामाजिक गरीब होंगे. ये बातें योजना आयोग द्वारा गठित शहरी गरीबी के अर्थ व मापदंड के लिए गठित टास्क फोर्स के अध्यक्ष व यूपीएससी के पूर्व अध्यक्ष प्रो एसआर हाशिम ने कहीं. वे मंगलवार को डॉ एएन सिन्हा के 125वीं जयंती के मौके पर एएनएसआइएस में आयोजित ‘नगरीय निर्धरता के विशेष परिप्रेक्ष्य में गरीबी के अर्थ व मानक ’ व्याख्यान में बोल रहे थे.
हाशिम ने कहा कि चार पक्के कमरेवाले मकान, चार पहिया वाहन, वातानुकूल मीशन, कंप्यूटर या लैपटॉप, रेफ्रीजरेटर, बेसिक टेलीफोन, वाशिंग मशीन रखनेवाले लोग स्वत: गरीबी रेखा से ऊपर के माने जायेंगे. गरीबी के आकलन के लिए टास्क फोर्स ने इस प्रकार की अनुशंसा योजना आयोग को सौंप दी है, इसके आधार पर सामाजिक, आर्थिक गणना में गरीबों का नये सिरे से आकलन होगा.
गरीबों के लिए काम करते थे अनुग्रह बाबू : व्याख्यान का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल डॉ डीवाइ पाटील ने अनुग्रह बाबू के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि अनुग्रह बाबू हमेशा गरीबों के उत्थान के काम करते रहे.
वे अशिक्षा दूर करने की बात करते थे. अध्यक्षता करते हुए संस्थान के अध्यक्ष व पूर्व राज्यपाल डीएन सहाय ने कहा कि गांवों से शहरों में लोग रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं. बिहार, यूपी, ओडिशा, झारखंड व पश्चिम बंगाल में शहरी गरीबों की संख्या अधिक है. संस्थान के निदेशक प्रो डीएम दिवाकर ने वैश्वीकरण व उदारीकरण के युग में नगरीय परिप्रेक्ष्य में घनी व निर्धन के बीच बढ़ती खाई पर ध्यान आकृष्ट किया. संस्थान के कुलसचिव प्रो नील रतन ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
मौके पर राज्य योजना पर्षद के उपाध्यक्ष हरिकिशोर सिंह, प्रो नवल किशोर चौधरी, डॉ विजय कुमार सिंह व पुष्पराज सहित कई लोग मौजूद थे.
गरीबों की संख्या
1993-94 में ग्रामीण क्षेत्र में 50.1 व शहरी क्षेत्र में 31.8 प्रतिशत गरीब थे. 2004-5 में ग्रामीण इलाकों में 41.8 व शहरी इलाकों में 25.7 प्रतिशत गरीब थे. 2009-10 में ग्रामीण क्षेत्र में 33.8 व शहरी क्षेत्र में 20.9 प्रतिशत गरीब हैं.