पटना: राज्य मानवाधिकार आयोग के नोटिस को वरिष्ठ अधिकारी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. आयोग ने जब भोजपुर के डीएम व डीइओ से एक सरकारी स्कूल के 31 छात्रों को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत राशि नहीं दिये जाने पर रिपोर्ट मांगी, तो नौ महीने बाद भी रिपोर्ट नहीं मिली. आयोग ने इस संबंध में भोजपुर के डीएम को चार बार रिमाइंडर भेजा.
इसी तरह सहरसा के बरियारी बाजार के प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका शुचिता कुमारी को 41 माह से निलंबित रखे जाने पर जब आयोग ने सहरसा के डीएम को नोटिस भेजा, तो एक साल बाद भी उसका जवाब नहीं मिला.
यही नहीं, अगस्त में मुजफ्फरपुर में एक बाल कैदी की संदिग्ध स्थिति में मौत के संबंध में आयोग ने जब वहां के डीएम व एसपी से इसकी संयुक्त जांच रिपोर्ट की मांग की, तो वह भी आयोग को नहीं मिली. आयोग ने इसके लिए विगत 5 सितंबर तक का ही समय दिया था. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इस संबंध में जांच रिपोर्ट आयोग को उपलब्ध करा दी है, लेकिन मुजफ्फरपुर के डीएम व एसपी की रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण मृत बाल कैदी के परिजनों को न्याय नहीं मिल पा रहा है.
जवाब नहीं मिलने से न्याय देने में मुश्किल
आयोग को समय पर रिपोर्ट उपलब्ध नहीं होने के कारण पीड़ित पक्षों को न्याय देने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. भोजपुर में एक स्कूल के छात्रों को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत अयोग्य करार देकर उन्हें साइकिल की राशि नहीं दिये जाने के संबंध में डीएम को अप्रैल, मई व जुलाई में रिमाइंडर भेजा गया था, लेकिन किसी भी नोटिस का जवाब नहीं आया.
नीलमणि, सदस्य, राज्य मानवाधिकार आयोग