पटना: एचआइवी पॉजिटिव मरीजों को लेकर समाज में अब भी कई तरह की भ्रांतियां हैं. लोगों को लगता है कि ऐसे मरीज को छूने से वे भी संक्रमित हो जायेंगे. इसे दूर करने के लिए सरकार व स्वास्थ्य विभाग कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं, पर विडंबना यह है कि जिन पर इस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेवारी है, वे भी इन भ्रांतियों के शिकार हैं.
आज भी जब कोई एचआइवी पॉजिटिव मरीज पीएमसीएच में पहुंचता है, तो कोई डॉक्टर उसका इलाज नहीं करना चाहता. उसे एक वार्ड से दूसरे वार्ड में टहलाया जाता है, जब तक कि उसकी जान न चली जाये या वह थक कर लौट न जाये.
क्या है नियम
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक एचआइवी मरीजों के लिए अलग से वार्ड नहीं बनाया जायेगा. वह एक ही वार्ड में अन्य बीमार मरीजों के साथ रहेगा. इसे लेकर सभी मेडिकल कॉलेजों को दिशा-निर्देश भी दिया गया है. इसके बावजूद जैसे ही डॉक्टरों को मालूम पड़ता है कि मरीज एचआइवी पॉजिटिव है, वे इलाज बंद कर देते हैं. उसे अपने पास आने भी नहीं देते.
सैकड़ों मरीज होते हैं परेशान
परिसर में इलाज के लिए आनेवाले मरीजों को अगर एचआइवी जांच करानी होती है, तो उसके लिए एक लड़के को रखा गया है. वह उनका ब्लड सैंपल लेता है. हालांकि, वह पूरी तरह से ट्रेंड नहीं है, जिसके कारण सैंपल निकालने में लोगों के शरीर में कई बार छेद करना पड़ता है. वहीं, मशीन के खराब होने से मरीज को बार-बार दौड़ाया जाता है. परिसर में दवा भी अचानक खत्म हो जाती है. हंगामा करने पर मरीजों को परिसर से बाहर निकाल दिया जाता है.