पटना: सिंचाई विभाग में सीनियर ड्राफ्टमैन पद पर रहते मनोरंजन नारायण सिंह ने पाई-पाई जमा कर अपने आशियाने के लिए जमीन तो जुगाड़ कर ली, लेकिन 23 वर्ष बाद भी वह जमीन उनके कब्जे में नहीं आ सकी. अपनी जमीन पर एक आशियाना बनाना अभी तक उनके लिए सपना बना है. 73 वर्षीय श्री सिंह आज भी किराये के मकान पर रह रहे हैं.
हाल ही में सरकार द्वारा दीघा की अवैध जमीन को वैध बनाने की दिशा में कार्रवाई की सुगबुगाहट ने उनकी बेचैनी बढ़ा दी है. वे सरकार से इस बात को जानने के लिए बेचैन हैं कि आवंटियों का क्या कसूर हुआ कि आवास बोर्ड ने जमीन आवंटित नहीं की.
खाली जमीन को आवास बोर्ड द्वारा आवंटियों को आवंटित करनी चाहिए. मनोरंजन नारायण सिंह को आवास बोर्ड के आदेश संख्या 923 (5 सितंबर, 1991) द्वारा 990 वर्ग फुट जमीन आवंटित हुई थी. बोर्ड द्वारा निकाली गयी लॉटरी से उन्हें सेक्टर 8 में 8एल/67 नंबर की जमीन मिली थी. जमीन की कीमत 35,491 रुपये आंकी गयी थी. आवंटी को पहली किस्त में जमीन की कुल कीमत की 20 फीसदी राशि जमा करनी थी. इसके बाद 60 मासिक किस्तों में 653 रुपये 30 पैसे जमा करने थे. श्री सिंह ने जमीन की कीमत की 60 फीसदी राशि जमा की. बाद में दीघा में उठ रहे बवाल को लेकर राशि देनी बंद कर दी. उन्होंने बताया कि जमीन आवंटन के बाद आवास बोर्ड ने जमीन आवंटित तो की, लेकिन कब्जा नहीं दिलाया. अब तक यह जानकारी नहीं हुई कि उनकी जमीन कौन-सी है.
अब पैसा लेकर क्या करेंगे
उन्होंने बताया कि अपना एक आशियाना होगा, यह सपना उनके मन में था. इस वजह से जमीन ली. फ्लैट की अधिक कीमत होने के कारण जमीन लेने का निर्णय लिया. जमीन नहीं मिलने के कारण अब तक अपना आशियाना नहीं बन सका. आज भी किराया के मकान में रहने को मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि आवंटियों का क्या कसूर है कि अब तक उन्हें जमीन नहीं मिली. सरकार को पहले आवंटियों को जमीन आवंटन करने के बारे में सोचना चाहिए. इसके बाद आगे का कोई निर्णय लेना चाहिए. आवास बोर्ड आवंटियों को सूद सहित राशि वापस करने की बात करता है. आखिर कोई क्यों लेगा वह राशि. जिस समय जमीन आवंटित हुई थी, उस समय व आज के समय में जमीन आसमान का अंतर है.