बिना सुधारे डीपीआर पर काम शुरू, इसलिए डूब गया शहर

पटना : पटना शहर को डूबाेने वाली आपदा में बुडको की लापरवाही खुलकर सामने आ है. शहर को जल जमाव से मुक्त करने के लिए मैनहट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के आधे-अधूरे डीपीआर में कई खामियां निकाली गयी थी और इसे सुधारते हुए फिर से तैयार करने की नसीहत दी गयी थी. परंतु इसका बिना पालन […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 11, 2019 7:11 AM

पटना : पटना शहर को डूबाेने वाली आपदा में बुडको की लापरवाही खुलकर सामने आ है. शहर को जल जमाव से मुक्त करने के लिए मैनहट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के आधे-अधूरे डीपीआर में कई खामियां निकाली गयी थी और इसे सुधारते हुए फिर से तैयार करने की नसीहत दी गयी थी. परंतु इसका बिना पालन किये ही दबाव पड़ने पर जैसे-तैसे लागू कर दिया गया और इसका नतीजा है कि इस बार शहर में भारी जलजमाव हो गया.

मैनहट कंपनी की तरफ से तैयार किये गये शहर के डीपीआर का रिव्यू करने के लिए डीएचवी कंपनी को जवाबदेही सौंपी गयी थी. कंपनी ने दिसंबर 2013 से नवंबर 2015 तक बुडको के साथ काम किया. इस दौरान कंपनी के कुछ जाने-माने अर्बन प्लानिंग एक्सपर्ट और इंजीनियर ने इस आधे-अधूरे डीपीआर में कई बड़ी खामियां उजागर की थी.
इसके अध्ययन में यह पाया गया कि इसे बिना टोपोग्राफिकल सर्वे करके ही इसे तैयार किया गया था. शहर में पानी के बहाव और नाले का डिजाइन तैयार करने में ग्रैविटी फ्लो (गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल) का ध्यान नहीं किया गया था. इस वजह से जो भी जहां-तहां नाले बनाये गये, उनमें पानी का बहाव सही से नहीं हो रहा है और न ही इनसे पानी बाहर निकल पा रहा है.
डीएचवी कंपनी के एक्सपर्ट ने यह भी कहा था कि इस डीपीआर को पूरा पटना का फिर से सर्वे करके तैयार करने की जरूरत है. इसके बिना पटना का ड्रेनेज सिस्टम और सीवरेज सिस्टम को सुधारा नहीं जा सकता है. इसमें शहर की किसी गली या लेन और मोहल्ले समेत अन्य किसी प्रमुख स्थानों से पानी की निकासी के किसी सटीक प्लान का उल्लेख नहीं था.
गलियों के नाले को मेनहोल से जोड़ने की व्याख्या भी सही तरीके से नहीं की गयी थी. शहर की सघन आबादी वाले इलाके में किस तरह का ड्रेनेज और सीवेज होना चाहिए तथा इसे कैसे निकालना चाहिए, इन तमाम बातों की कोई प्लानिंग ही नहीं की गयी थी.
एक्सपर्ट के इन सभी सुझावों को दरकिनार करते हुए बुडको ने इस पर कोई काम ही नहीं किया और मैनहट कंपनी के दिये प्लान को लेकर ही 10 साल से बैठे रहे. अगर इसे सुधार करके नये सिरे से लागू कर दिया जाता और इस पर शहर में काम होता, तो शहर की इतनी दुर्गति नहीं होती.
काम शुरू करने के समय एलएंडटी ने किया सुधार
डीपीआर में जहां-जहां एसटीपी और संप हॉउस बनाने का सुझाव दिया गया था, वहां हकीकत में जमीन नहीं थी या इसके लिए पर्याप्त स्थान ही नहीं थे. इसका खामियाजा एलएंडटी जैसी कंपनी को उठाना पड़ा, जब उसे एसटीपी बनाने का काम मिला. तब उसने फिर से इस डीपीआर में संशोधन करने के बाद काम शुरू किया.

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