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ऑटिज्म दिवस आज : रहें सावधान ! पटना में हर 100 में एक बच्चा है ऑटिज्म का शिकार, जानें
इस रोग के होने से बच्चे का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है, जिंदगी भर होती है परेशानी प्रेग्नेंसी के दौरान हल्का फुल्का बुखार होना कोई खतरे की बात नहीं होती है. लेकिन अगर प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीनें में आपको तेज बुखार आता है तो इससे आपके बच्चे पर बुरा असर […]
इस रोग के होने से बच्चे का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है, जिंदगी भर होती है परेशानी
प्रेग्नेंसी के दौरान हल्का फुल्का बुखार होना कोई खतरे की बात नहीं होती है. लेकिन अगर प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीनें में आपको तेज बुखार आता है तो इससे आपके बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इससे बच्चे का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है.
ऐसे में गर्भपात की भी समस्या सामने आ सकती है. सिर्फ इतना ही नहीं, हाल ही में किये गये एक शोध में यह बात भी सामने आयी है कि गर्भावस्था के दौरान मां अगर बुखार से पीड़ित होती है तो इससे बच्चे के ऑटिज्म का शिकार होने का खतरा काफी बढ़ जाता है.
जागरूकता का अभाव : बच्चा रोग विशेषज्ञ डॉ श्रवण कुमार ने कहा कि प्रदेश में ऑटिज्म को लेकर जागरूकता काफी कम है. पटना सहित पूरे बिहार में 2 से 9 वर्ष की आयु के बीच के तकरीबन एक से डेढ़ प्रतिशत ऑटिज्म बच्चे देखे हैं.
यही वजह है कि पूरे बिहार में प्रत्येक 100 में से एक बच्चा इसका शिकार है. ताजा सर्वेक्षण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के साथ मिल कर बिहार, तिरुअनंतपुरम, आंध्र प्रदेश, ओडिसा, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और गोवा आदि कुछ राज्य के मेडिकल कॉलेजों ने ऑटिज्म पर सर्वे भी किया है. जिसमें डॉक्टरों ने चिंता जाहिर की है.
क्या हैं ऑटिज्म के लक्षण?
-सामान्य तौर पर बच्चे मां का या अपने आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं, पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे नजरें मिलाने से कतराते हैं
-ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं
-ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी रुकावट का सामना करना पड़ता है
-इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही गुम रहते हैं वे किसी एक ही चीज को लेकर खोये रहते हैं
-उनकी सोच बहुत विकसित नहीं होती है, इसलिए वे समाज से दूर ही नजर आते हैं.
-अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाइए
-अगर बच्चा बोलने के बजाय अजीब-अजीब सी आवाजें निकाले तो यह समय सावधान होने का है
स्टेम सेल थेरेपी नहीं है कारगर इलाज
डॉ श्रवण कुमार ने बताया कि इन दिनों ऑटिज्म बच्चों का इलाज स्टेम सेल थेरेपी से किया जा रहा है. पांच से 15 साल तक के बच्चों को भी ठीक करने के दावे किये जा रहे हैं.
लेकिन यह गलत है, अगर बच्चा तीन साल से नीचे है तो थेरेपी से ऑटिज्म का इलाज हो सकता है, लेकिन तीन साल से उम्र अधिक है तो इलाज संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि बच्चों को टीबी, मोबाइल और वीडियो गेम से दूर रखना चाहिए.
खतरा 40 प्रतिशत
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ अमिता सिन्हा ने बताया कि प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में मां के बुखार से पीड़ित होने पर बच्चे में ऑटिज्म होने का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में नार्थ ईस्ट में किये गये एक शोध में 95,754 बच्चों को शामिल किया गया था, जिनका जन्म 2011 से 2016 का बीच में हुआ था.
इनमें से 583 बच्चे ऑटिज्म से पीड़ित पाये गये थे. इन बच्चों में 16 प्रतिशत बच्चों की माताओं ने अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान बुखार होने की समस्या को स्वीकार किया है.
डॉ अमिता ने कहा कि शोध से यह बात भी सामने आयी है कि जिन माताओं ने प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में बुखार होने की बात कही उनके बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस ऑर्डर के खतरे में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी.
सरकारी अस्पतालों में नहीं है इलाज
2 अप्रैल को ऑटिज्म दिवस पर शहर के तमाम मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. लेकिन सूबे के किसी भी सरकारी अस्पताल में खासकर ऑटिज्म बच्चों के इलाज को लेकर कोई उचित व्यवस्था नहीं है. अलग से विभाग नहीं होने के कारण परिजनों को प्राइवेट अस्पताल या फिर महानगरों में जाना पड़ रहा है.
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